Jul ०८, २०२१ १९:२८ Asia/Kolkata
  • इराक़ और सीरिया के भीतर अमरीकी छावनियों पर बड़े हमलों के बाद क्या अब अमरीकी सैनिकों को बाहर निकालने के लिए महायुद्ध की शुरुआत हो गई है? क्या होगा अमरीका का जवाब?

एसा लगता है कि इराक़ी स्वयंसेवी फ़ोर्सेज़ और अमरीकी सेना के बीच अब महायुद्ध छिड़ने वाला है। बुधवार को अमरीकी ठिकानों पर कम से कम दस हमले हुए हैं। इन हमलों में अमरीकी दूतावास, एनुल असद छावनी और दूसरी कई अमरीकी छावनियों को निशाना बनाया गया।

अमरीकियों के प्रयोग वाली सबसे बड़ी छावनी एनुल असद पर तो 14 मिसाइल फ़ायर कर दिए गए जबकि कुर्दिस्तान के शहर अरबील के एयरपोर्ट के भीतर स्थित अमरीकी छावनी पर कई ड्रोन विमानों से हमला हो गया। इससे थोड़ी ही दूर पर अमरीकी वाणिज्य दूतावास स्थित है। मंगलवार को बग़दाद में अमरीकी दूतावास के ऊपर उड़ने वाले ड्रोन विमान को गिराया गया। दूसरी ओर सीरिया के भीतर दैरुज़्ज़ूर के इलाक़े में भी अमरीकी ठिकाने पर कई ड्रोन विमानों से हमले हुए।

यह सारे हमले अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन को खुला संदेश दे रहे हैं कि इराक़ और सीरिया के भीतर अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी ग़ैर क़ानूनी है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा इसलिए अमरीका को चाहिए कि तत्काल इन सैनिकों को इराक़ी संसद में पारित होने वाले प्रस्ताव के अनुसार इन इलाक़ों से बाहर निकाल ले।

राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सारे सैनिकों को 11 सितम्बर से पहले ही निकाल लेने का फ़ैसला किया। यानी बाइडन ने अमरीका की हार स्वीकार कर ली। अब इराक़ी फ़ोर्सेज़ भी तालेबान की शैली पर काम करते हुए अमरीका को इराक़ से मार भगाने की कोशिश कर रही हैं।

अमरीकी नेतृत्व वाले सैनिक गठबंधन के प्रवक्ता वाएन मार्थो ने स्वीकार किया है कि सीरिया और इराक़ में एक साथ यह हमले हुए हैं लेकिन उन्होंने दावा किया कि इन हमलों में केवल तीन सैनिकों को मामूली चोटें आई हैं। हमें इससे ईरान के उस हमले की याद आती है जो उसने जनरल क़ासिम सुलैमानी का इंतेक़ाम लेने के लिए एनुल असद छावनी पर किया था। अमरीकी नेतृत्व ने पहले दावा किया था कि हमले में कोई हताहत या घायल नहीं हुआ मगर बाद में पता चला कि हमले के चलते 100 से अधिक सैनिक और कमांडर घायल हुए थे जबकि छावनी को बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचा था। सीएनएन ने छावनी के भीतर जाकर वहां हुई तबाही की तसवीरें दिखाई थीं।

हमारी समझ में यह बात नहीं आती कि इराक़ के भीतर अमरीका की सैनिक छावनियां होने का क्या तुक है। इराक़ी राष्ट्र कैसे सहन कर सकता है कि वही अमरीका इराक़ के भीतर सैनिक छावनी बनाए जिसने इराक़ पर हमला किया और उस पर कई साल तक क़ब्ज़ा किए रखा। जिस अमरीका के चलते लाखों इराक़ियों की जानें गईं।

सबसे बड़ी बेशर्मी तो यह है कि अमरीका ने सीरिया के दैरुज़्ज़ूर इलाक़े में छावनी बनाई है जहां तेल और गैस के भंडार हैं। अमरीका तेल की सप्लाई में रुकावट डाले हुए है और सीरियाई जनता ईंधन के गंभीर संकट से जूझ रही है।

हमें यह यक़ीन है कि इराक़ी फ़ोर्सेज़ ने ईरानी नेतृत्व से समन्वय के बाद ही यह हमला किया होगा।

अब इराक़ में अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी का समय बहुत कम बचा है। अगर कुछ ही हफ़्तों या महीनों के भीतर अमरीकी राष्ट्रपति बाइडन एलान करते हैं कि वह इराक़ से अपने सैनिकों को निकाल रहे हैं तो हमें ताज्जुब नहीं होगा। इससे पहले भी जब इराक़ में अमरीकी सैनिकों पर चारों तरफ़ से हमले होने लगे थे तो पूर्व राष्ट्रपति ओबामा को अपनी सेना इराक़ से निकालनी पड़ी थी।

इराक़ी जनता कभी भी अमरीकी सैनिकों के हाथों क़त्ल होने वाले अपने शहीदों को नहीं भूलेगी। इराक़ी जनता कभी नहीं भूलेगी कि इसी अमरीका ने इराक़ का 12 साल तक परिवेष्टन किए रखा।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार

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