Jan २५, २०२३ १९:३२ Asia/Kolkata
  • गुजरात दंगा डॉक्यूमेंट्री से ध्यान हटाने की साज़िश हुई शुरू, जेएनयू, जामिया और पंजाब युनिवर्सियों के छात्र बने शिकार, अभी तो शुरुआत है आगे-आगे देखिए होता है क्या!

गुजरात दंगों के लेकर बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री से जहां पूरी दुनिया में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की पूरी तरह पोल खोल दी है, वहीं अब इस डॉक्यूमेंट्री से लोगों के ध्यान को भटकाने के लिए साज़िशें शुरु हो गईं हैं। इस साज़िश का सबसे पहले शिकार विश्वविद्यालयों के छात्र बने हैं।

प्राप्त समाचारों के मुताबिक़, भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालों में से जवाहर लाल नेहरू,जामिया इस्लामिया और पंजाब यूनिवर्सटी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर बवाल हो गया है। जामिया यूनिवर्सिटी में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर 4 छात्र हिरासत में लिए गए हैं। दिल्ली पुलिस ने बुधवार 25 जनवरी को कहा कि जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बाहर कथित तौर पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर हंगामा करने के आरोप में चार छात्रों को हिरासत में लिया गया है। वहीं इससे पहले बीती शाम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भी हंगामा हुआ था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने मंगलवार रात 9 बजे इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग का एलान किया था। हालांकि स्क्रीनिंग से पहले छात्रसंघ के कार्यालय की बत्ती गुल हो गई थी। छात्रों ने आरोप लगाया था कि प्रशासन ने बिजली और इंटरनेट काटा था। बाद में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया और दावा किया कि जब वे अपने मोबाइल फोन पर डॉक्यूमेंट्री देख रहे थे, तब उन पर हमला किया गया। इसी तरह पंजाब विश्वविद्याल से भी हंगामे की ख़बरें सामने आ रही हैं। बता दें कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" को लेकर विवाद हो रहा है। यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर बनी है जब नरेंद्र मोदी गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री थे। यह डॉक्यूमेंट्री भारत में नहीं दिखाई जा रही। हालांकि, यूट्यूब पर इसके वीडियो अपलोड किए गए हैं। सरकार ने शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को इस डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था। भारत सरकार की ओर से इस सीरीज़ की निंदा की गई है।

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के चार छात्रों को हिरासत में लिया गया। 

इस बीच बीबीसी द्वारा प्रकाशित की गई डॉक्यूमेंट्र अब मोदी सरकार के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है। यही कारण है कि हर स्तर पर भारत सरकार इस डॉक्यूमेंट्री को बैन करने की कोशिश कर रही है। जबकि बीबीसी ने इस डॉक्यूमेंट्री का दूसरा भाग भी प्रकाशित कर दिया है। इस डॉक्यूमेंट्री ने भारत समेत पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। भारत सरकार के साथ-साथ भारतीय मीडिया भी इस डॉक्यूमेंट्री पर बढ़ते हंगामे को लगातार दबाने की कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन वह किसी भी तरह इसमें सफल होता नहीं दिखाई दे रहा है। इस बीच अब सरकार और मीडिया दोनों ने मिलकर इस डॉक्यूमेंट्री से ध्यान हटाने के लिए उसी पुरानी योजना पर काम शुरु कर दिया है, जिसमें वे किसी भी मुद्दे के मुक़ाबले में एक नया मुद्दा सामने लाते हैं और उसपर सारी बातें होने लगती हैं। इस काम के लिए सबसे उचित और आसान छात्रों को निशाना बनाना होता है। इससे पहले भी कई अन्य विवादों में छात्रों के साथ हुई हिंसा और विश्वविद्यालयों पर पुलिस द्वारा किए गए हमलों ने मुख्य मुद्दों से आम जनमत के ध्यान को भटका दिया था। एक बार फिर वैसा ही प्रयास शुरु हो गया है। लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि सरकार और मीडिया अपनी योजना में कामयाब नहीं होने वाले हैं, क्योंकि यह मुद्दा राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बन चुका है।

कुल मिलाकर अब यह देखने वाली बात होगी कि बीबीसी द्वारा गुजरात दंगों पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्र और उसमें भारत के प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर दंगों का ज़िम्मेदार ठहराए जाने के बाद, भारतीय मीडिया और मोदी सरकार किस-किस पैंतरे का इस्तेमाल करती है। वैसे तो भारत सरकार ने गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका रेखांकित करने वाली बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को यूट्यूब और ट्विटर से हटाने के निर्देश जारी किए हैं। लेकिन हर तरह के प्रयासों के बावजूद उस डॉक्यूमेंट्री को भारत समेत दुनिया भर में देखा जा रहा है। ग़ौरतलब है कि गुजरात दंगा भारत पर लगा एक ऐसा काला दाग़ है कि जिसको मिटाया नहीं जा सकता है। हज़ारों मुसलमानों का नरसंहार, महिलाओं का बलात्कार, लूटपाट और इंसानियत को शर्मसार करने देने वाली ऐसी घटनाएं हैं कि जिसने भारत की साख को भारी नुक़सान पहुंचाया है। ध्यान योग्य बात यह है कि दो दशक बीत जाने के बाद भी गुजरात दंगों के ज़ख्मों को स्वयं भारत सरकार कभी बलात्कारियों को रिहा करके तो कभी हत्यारों को जेल से आज़ाद करके ताज़ा रखे हुए हैं। (रविश ज़ैदी- RZ)

नोटः लेखक के विचारों से पार्स टुडे हिन्दी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।

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