इस समय आप इतिहास की सही दिशा में खड़े हैं" अमेरिकी छात्रों को संबोधित करते हुए इमाम ख़ामेनेई
इस समय आप इतिहास की सही दिशा में खड़े हैं" अमेरिकी छात्रों को संबोधित करते हुए इमाम ख़ामेनेई
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के पत्र का टेक्स्ट इस प्रकार है
बिस्मिल्लाहिर्रहमाने अर्रहीम
यह पत्र मैं उन जवानों के नाम लिख रहा हूं जो अपनी ज़िन्दा अंतरआत्मा के साथ ग़ज़्ज़ा के मज़लूम बच्चों और महिलाओं के समर्थन के लिए उठ खड़े हुए हैं।
संयुक्त राज्य अमरीका के प्रिय जवान छात्रों! यह हमारी आपसे सहृदयता और समरसता का संदेश है।
इसी प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पश्चिम एशिया की संवेदनशील स्थिति के परिवर्तन की ओर संकेत किया और बल देकर कहा कि दुनिया का इतिहास पन्ना पलट रहा है और आप इस समय इतिहास की सही दिशा में खड़े हैं।
आज आप प्रतिरोध के मोर्चे का एक भाग बन गए हैं और आपने अपनी सरकार के बेरहम और निर्दयी दबाव के बावजूद आपने एक शरीफ़ाना जिद्दोजहद आरंभ कर दिया है जबकि आपकी सरकार खुलकर अतिग्रहणकारी और क्रूर व बेरहम ज़ायोनी सरकार का साथ दे रही है।
प्रतिरोध का बड़ा मोर्चा आपसे बहुत दूर एक इलाक़े में आज आपकी इसी समझ और भावनाओं के साथ सालों से संघर्ष कर रहा है। इस संघर्ष का उद्देश्य उस खुले अत्याचार को रुकवाना है जो ज़ायोनिस्ट नाम के एक आतंकवादी व निर्दयी नेटवर्क ने बरसों पहले फ़िलिस्तीनी क़ौम पर शुरू किया और उसके देश पर क़ब्ज़ा करने के बाद, उसे सबसे सख्त दबाव और यातना का शिकार बना दिया है।
आज अपारथाइड ज़ायोनी सरकार के हाथों हो रहा जातीय सफ़ाया व नस्ली सफ़ाया पिछले दसियों साल से जारी घोर अत्याचारपूर्ण रवैये के ही क्रम का एक भाग है।
फ़िलिस्तीन एक स्वाधीन सरज़मीन है जो लंबे इतिहास की मालिक एक क़ौम की सरज़मीन है जिसमें मुसलमान, ईसाई और यहूदी शामिल हैं।
ज़ायोनी नेटवर्क के पूंजीपतियों ने विश्व युद्ध के बाद ब्रितानी सरकार की मदद से कई हज़ार आतंकवादियों को धीरे-धीरे इस सरज़मीन पर भेजा, जिन्होंने फ़िलिस्तीन के शहरों और देहातों पर हमले किए, दसियों हज़ार लोगों को क़त्ल कर दिया या उन्हें पड़ोसी मुल्कों की ओर भगा दिया, उनके घरों, बाज़ारों और खेतों को उनसे छीन लिया और क़ब्ज़ा की गयी फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर इस्राईल नाम की एक सरकार बना दी।
ब्रिटेन की आरंभिक मदद के बाद इस अतिग्रहणकारी सरकार की सबसे बड़ी मददगार संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार है जिसने इस सरकार की राजनैतिक, आर्थिक और हथियारों की मदद लगातार जारी रखी है यहाँ तक कि नाक़ाबिले माफ़ी असावधानी बरतते हुए परमाणु हथियारों की तैयारी की राह उसके लिए खोल दी और इस संबंध में उसकी मदद की है।
ज़ायोनी सरकार ने पहले ही दिन से निहत्थे फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ निर्दयी व क्रूर रवैया अपनाया और सभी मानवीय और धार्मिक मूल्य और दिली एहसास की अनदेखी व उपेक्षा करते हुए उसने दिन- प्रतिदिन अपनी बर्बरता, आतंकवाद व हत्या और दमनकारी गतिविधियों में वृद्धि कर दी।
अमरीकी सरकार और उसके घटकों ने इस सरकारी आतंकवाद और और लगातार जारी अत्याचार पर ज़रा सी नाराज़गी तक का इज़हार भी नहीं किया। आज भी ग़ज़्ज़ा के भयानक अपराधों के सिलसिले में अमरीकी सरकार के कुछ बयान हक़ीक़त से ज़्यादा दिखावा होते हैं।
प्रतिरोध के मोर्चे ने इस अंधकारमय व निराशा से भरे माहौल में सिर उठाया और उसे ईरान में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के गठन से बढ़ावा और शक्ति मिली।
अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनीवाद के सरग़नाओं ने, जो अमरीका और यूरोप के ज़्यादातर मीडिया के या तो मालिक हैं या ये मीडिया उनके पैसों और रिश्वत के प्रभाव में है, इस मानवीय व वीरता भरे रेज़िस्टेंस को टेररिज़्म का नाम दे दिया। क्या वह क़ौम जो क़ाबिज़ ज़ायोनियों के अपराध के मुक़ाबले अपनी सरज़मीन में अपनी रक्षा कर रही है, आतंकवादी है? क्या इस क़ौम की मानवीय मदद और उसकी भुजाओं को मज़बूत करना, आतंकवाद की मदद है?
निर्दयी वैश्विक साम्राज्यवाद के सरग़ना, मानवीय मूल्यों तक पर रहम नहीं करते। वह इस्राईल की आतंकवादी व निर्दयी सरकार को, आत्म रक्षा करने वाली क़रार देते हैं और फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस को जो अपनी आज़ादी और भविष्य के निर्धारण के अधिकार की रक्षा कर रहा है, आतंकवाद कहते हैं।
मैं आपको यह यक़ीन दिलाना चाहता हूँ कि आज स्थिति बदल रही है। एक दूसरा भविष्य, पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाक़े की प्रतीक्षा में है। विश्व स्तर पर बहुत सी अंतरात्माएं जाग गई हैं और सच्चाई सामने आ रही है। प्रतिरोध का मोर्चा भी ताक़तवर हो गया और ज़्यादा ताक़तवर होगा। इतिहास भी करवट ले रहा है।
संयुक्त राज्य अमरीका की दसियों यूनिवर्सिटियों के आप स्टूडेंट्स के अलावा दूसरे मुल्कों में भी यूनिवर्सिटियाँ और लोग उठ खड़े हुए हैं। प्रोफ़ेसरों की ओर से आप स्टूडेंट्स का साथ और आप का समर्थन एक अहम व प्रभावी घटना है। यह चीज़, सरकार के पुलिसिया रवैये और आप पर डाले जाने वाले दबाव में किसी हद तक कमी कर सकती है। मैं भी आप जवानों से एकजुटता का इज़हार करता हूं और आपकी दृढ़ता की क़द्र करता हूँ।
हम मुसलमानों और दुनिया के सभी लोगों को क़ुरआन का पाठ है, सत्य की राह में मज़बूती से डट जाना। "तो (ऐ रसूल) जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है, साबित क़दम रहें।" (सूरए हूद, आयत-112) और मानवीय संबंधों के बारे में क़ुरआन का पाठ यह हैः "न किसी पर ज़ुल्म करो और न ही ज़ुल्म सहो।" (सूरए बक़रह, आयत-279)
प्रतिरोध का मोर्चा इन आदेशों और ऐसी ही सैकड़ों शिक्षाओं को सीख कर और उन पर अमल करके आगे बढ़ रहा है और अल्लाह की इजाज़त से विजयी होगा।
मैं सिफ़ारिश करता हूँ कि क़ुरआन को समझिए।
सैयद अली ख़ामेनेई
30.5.2024
कीवर्ड्सः इमाम ख़ामेनेई कौन हैं? अमेरिकी छात्र, अमेरिका और फ़िलिस्तीन, अमेरिका व इस्राईल, ईरान, प्रतिरोध मोर्चा, फ़िलिस्तीन, ग़ज़्ज़ा
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