इज़राइल का उभरता संकट, 25 प्रतिशत सैनिकों को नशीली दवाओं की लत और रिकॉर्ड तोड़ मानसिक बीमारियों में वृद्धि
पार्सटुडे- ज़ायोनी शासन के चिकित्सा स्रोतों ने ग़ज़ा युद्ध के बाद ज़ायोनियों विशेषकर सैनिकों के बीच नशीली दवाओं की लत में तेज़ी से वृद्धि की सूचना दी।
7 अक्टूबर, 2023 को तूफ़ान अल-अक़्सा ऑपरेशन के बाद मानसिक और मनोवैज्ञानिक बीमारियों में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ ही ज़ायोनियों के बीच नशे की लत का संकट मुंह खोले खड़ा है जिसकी वजह से अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के स्वास्थ्य विभाग से संबंधित सूत्रों ने बताया कि ग़ज़ा युद्ध के बाद इज़राइलियों में नशीली दवाओं का इस्तेमाल बहुत ज़्यादा बढ़ गया है।
पार्सटुडे के अनुसार मनोवैज्ञानिक और मानसिक रोगों के विशेषज्ञ और और नेतन्या शहर में इस्राईल के ड्रग्स और मानसिक स्वास्थ्य केंद्र के संस्थापक डॉक्टर शॉल लोरन ने एक बातचीत में कहा: ग़ज़ा युद्ध के बाद, हमने विभिन्न पेन किलर्स दवाओं के इस्तेमाल में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, चाहे वह प्रिस्क्रिप्शन दवाएं हों, अवैध दवाएं हों या शराब हों। इसके साथ ही इजराइलियों में जुए की लत भी खूब पड़ चुकी है जो मनोवैज्ञानिक दबाव पर काबू पाने के लिए एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया समझा जाता है।
उन्होंने एएफ़पी से बात करते हुए कहा: एडिक्शन एंड मेंटल हेल्थ सेंटर की टीम ने इज़राइल की विभिन्न आबादी के लगभग 1000 लोगों पर एक शोध किया, जिससे पता चलता है कि ग़ज़ा युद्ध के बाद उनमें नशे की लत वाले पदार्थों की खपत लगभग 25 प्रतिशत बढ़ गई है।
वास्तव में, ग़ज़ा युद्ध की शुरुआत के बाद से चार में से एक इज़राइली ने नशीली दवाओं का इस्तेमाल बढ़ा दिया है।
मनोवैज्ञानिक और मानसिक मामलों के इस विशेष डॉक्टर ने ज़ोर दिया: ग़ज़ा में युद्ध के बाद, नवम्बर 2023 और दिसम्बर 2023 के महीनों में नींद की गोलियों और पेनकिलर्स दवाओं की खपत क्रमशः 180 प्रतिशत और 70 प्रतिशत बढ़ गई। कई ग्राहक ऐसे हैं जिनके बच्चे युद्ध के लिए ग़ज़ा चले गए और उनका कहना है कि चिंता के कारण उन्हें नींद नहीं आती।
यूनी ने (एक ज़ायोनी नौजवान का बदला हुआ नाम) जिसे सेना द्वारा सैन्य सेवा के लिए बुलाया गया था, अपनी ज़्यादा नशीली दवाओं की लत की वजह से सेना में अपनी इंट्री कैंसिल करा दी।
19 साल का यह ज़ायोनी युवक कहता है: मैंने कोरोना संकट की शुरुआत से ही ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था, लेकिन ग़ज़ा युद्ध शुरू होने के बाद मेरी हालत बहुत ख़राब हो गई।
उसका कहना था, ड्रग्स का इस्तेमाल असल में वास्तविकता से भागने का एक तरीक़ा है।
युद्ध के पहले महीनों में, मैंने एक्स्टसी, एमडीएमए और एलएसडी गोलियां जैसी एनर्जी पैदा करने दवाएं लेना शुरू कर दिया और समय गुज़रने के साथ ही इन गोलियों की खपत बढ़ गई। अब मुझे पता है कि मैं इन दवाओं का का आदी हो गया हूं, मुझे नशे की लत पड़ गयी है और इलाज के लिए मुझे पुनर्वास केंद्र जाना होगा।
ग़ज़ा पट्टी में इस्राईली सेना के एक रंगरूट यशीर मतान ने एएफ़पी से बातचीत में कहा: मैं दवाएं लेकर सब कुछ भूलने की कोशिश करता हूं, हम जानते हैं कि युद्ध किसी काम का नहीं है लेकिन हमें इसमें भाग लेना ही होगा।
एएफ़पी से अपनी बातचीत जारी रखते हुए, डॉ. लॉरेंट ने ज़ोर देकर कहा: एक शोध के आधार पर, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हम एक विनाशकारी महामारी के कगार पर हैं और नशीली दवाओं की लत में वृद्धि से इजराइली समाज का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है।
दूसरी ओर हिब्रू भाषा के अखबार हारेत्ज़ ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में बताया कि इजराइली विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के प्रोफेसरों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि 7 अक्टूबर यानी तूफ़ान अल-अक़्सा ऑप्रेशन के बाद कम से कम 40 प्रतिशत इजराइली अवसाद सहित मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हो गये हैं।
ज्ञात रहे कि हिब्रू भाषा का मीडिया ग़ज़ा युद्ध में भाग लेने वाले ज़ायोनी सैनिकों के बीच मानसिक समस्याओं के गंभीर फैलाव पर रोशनी डालता है।
येदियेत अहारनोत अख़बार ने हाल ही में घोषणा की कि ज़ायोनी सैनिकों के बीच मानसिक और भावनात्मक समस्याओं के फैलने की वजह से सेना के चिकित्सा अधिकारियों ने सैनिकों के मानसिक पुनर्वास के लिए एक विशेष विभाग बनाया है जबकि कई मनोचिकित्सकों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया गया है।
अहारनोत के मुताबिक, इस फैसले की एक वजह इजराइली सैनिकों में आत्महत्या करने की इच्छा में भारी बढ़ोत्तरी है।
कीवर्ड्ज़: ग़ज़ा युद्ध, इजराइली युवा, इजराइली संकट, फ़िलिस्तीन में युद्ध (AK)
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