Aug १४, २०२४ १७:२४ Asia/Kolkata
  • कोरस्क पर यूक्रेन का हमला और जर्मन सरकार की रूस के ख़िलाफ़ शक्ति प्रदर्शन की बढ़ती चाहत
    कोरस्क पर यूक्रेन का हमला और जर्मन सरकार की रूस के ख़िलाफ़ शक्ति प्रदर्शन की बढ़ती चाहत

पार्सटुडे- कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यूक्रेन में रूसी क्षेत्रों पर हमला करने का साहस नहीं था और अमेरिकी सरकार जैसे मज़बूत विदेशी उकसावे ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया।

इन दिनों जिन घटनाओं पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है उनमें से एक अमेरिका और जर्मनी के समर्थन से रूस के एक हिस्से पर यूक्रेनी सेना का हमला है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी अख़बार ख़ुरासान ने लिखा: यूक्रेन के राष्ट्रपति विलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने रूस के कोरस्क क्षेत्र में हालिया आप्रेशन्ज़ का जिक्र करते हुए सोमवार को कहा कि रूस ने दूसरों पर युद्ध थोपा है और अब युद्ध उसके ख़ुद के घर (रूस) में लौट आया है।

ज़ेलेंस्की ने कहा: रूसी राष्ट्रपति विलादिमीर पुतिन पूरी दृढ़ता से युद्ध चाहते हैं और मॉस्को को केवल "ताक़त" द्वारा शांति स्वीकार करने के लिए ही मजबूर किया जा सकता है।

दूसरी ओर, रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतिन ने क्षेत्र की ताज़ा स्थिति की समीक्षा के लिए वरिष्ठ रूसी रक्षा और सुरक्षा अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इस बैठक में उन्होंने कहा कि रूसी धरती पर ऑपरेशन चलाने का यूक्रेन का लक्ष्य, भविष्य की शांति वार्ता में बेहतर स्थिति हासिल करना है।

पुतिन ने कहा कि कीव ने सोचा था कि इस ऑपरेशन से रूस में अराजकता और अशांति फैल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

रूस के राष्ट्रपति के अनुसार, यूक्रेन पर हाल ही में हुए हमले के बाद युद्ध के मैदान में स्वेच्छा से भाग लेने वाले इस देश के नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि रूसी सेना पूर्वी यूक्रेन में अपना अभियान जारी रखेगी।

अधिकांश विश्लेषकों का मानना ​​है कि रूस जल्द ही यूक्रेनी सेनाओं को अपने क्षेत्र से बाहर निकाल देगा लेकिन फिर भी यूक्रेनवासी क्रेमलिन नेताओं को यह संदेश देना चाहते थे कि यदि युद्ध लंबा चला तो रूस की सीमाओं में भी असुरक्षा फैल सकती है।

यूक्रेन का जवाबी हमला अस्थायी प्रतीत होता है क्योंकि यूक्रेन के पास लंबे समय से आवश्यक सेना नहीं है, और उसने ऐसा केवल डोनबास की अग्रिम पंक्ति से रूसी सेना को हटाने और रूसी सैनिकों के बीच भय पैदा करने के मक़सद से किया है।

 

अमेरिकी उकसावा

 

कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यूक्रेन में रूसी क्षेत्रों पर हमला करने का साहस नहीं था और अमेरिकी सरकार जैसे मज़बूत विदेशी उकसावे ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया।

एक विश्लेषण के मुताबिक, अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव की पूर्व संध्या पर देश की जनता के सामने यह दिखावा करने की कोशिश कर रहा है कि उनकी नीतियां यूक्रेन के युद्धक्षेत्र में उपयोगी और प्रभावी रही हैं।

यही वजह है कि पेंटागन की प्रवक्ता सबरीना सिंह ने कोरस्क पर हमले का बचाव किया और दावा किया कि यूक्रेनी सेना के हमले, अमेरिकी नीति के अनुरूप हैं, इससे क्षेत्र में तनाव नहीं बढ़ा है और अब तनाव को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी विलादीमीर पुतिन की है।

 

 क्रेमलिन का जर्मनी पर पहला आरोप

 

चूंकि यूक्रेन ने रूस पर अपने हमलों में पश्चिमी हथियारों का इस्तेमाल किया है इसलिए मास्को के नेताओं ने हथियार भेजने वालों को परिणामों के बारे में चेतावनी दी।

कोरस्क पर हमले में यूक्रेनी सेना द्वारा जर्मन टैंकों के इस्तेमाल का ज़िक्र करते हुए, रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के डिप्टी दिमित्री मेदवेदेव ने एक्स सोशल मीडिया पर एक संदेश में लिखा: जर्मन बिल्ड अखबार ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उसने गर्व से रूसी भूमि पर जर्मन टैंकों की वापसी का एलान किया है।

रूसी क्षेत्र पर यूक्रेन के हमले के लिए जर्मनी के समर्थन के जवाब में, मास्को सबसे आधुनिक रूसी टैंकों को बर्लिन के मैदान तक पहुंचाने लिए सब कुछ करेगा।

कोरस्क में जर्मन टैंकों की उपस्थिति, नैटो के सदस्य देशों द्वारा रूस के ख़िलाफ सभी सुरक्षा मुद्दों को छोड़ने और कीव को रूसी क्षेत्र पर हमला करने के लिए पश्चिमी हथियारों का उपयोग करने की अनुमति देने के बाद हुई।

रूस को पीछे धकेलने के उद्देश्य से उठाए गए इस कदम से नैटो और मॉस्को के बीच सीधे टकराव की संभावना और भी बढ़ सकती है। कुछ जर्मन अधिकारियों ने बर्लिन को परिणामों की चेतावनी दी है।

इस संबंध में, जर्मन फ़ेडरल राज्य ज़ैक्सनी के प्रधानमंत्री माइकल केर्चमर ने ज़ोर दिया: यदि कोरस्क क्षेत्र पर यूक्रेनी सशस्त्र बलों के हमले में जर्मन टैंकों का इस्तेमाल किया गया था, तो यह रेड लाइन का एक और उल्लंघन है। दो वर्षों से हमने देखा है कि जर्मन अधिकारियों द्वारा घोषित की गई हर बात व्यवहारिक रूप से लागू नहीं होती है।

हम यूक्रेन में संघर्ष में एक पक्ष बनने के करीब पहुंच रहे हैं और लोग इसे लेकर चिंतित हैं। ज़ैक्सनी राज्य के प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बर्लिन को यूक्रेन के सशस्त्र बलों को सैन्य सहायता भेजना बंद कर देना चाहिए।

नैटो द्वारा रूस की रेड लाइनों को एक एक के पार करने से न केवल संकट को हल करने में मदद नहीं मिलती है, बल्कि यह तीसरे विश्व युद्ध को भड़का सकता है जिसमें परमाणु शक्तियों की उपस्थिति में कोई विजेता नहीं रहेगा।

 

कीवर्ड्ज़: जर्मन-रूस युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी, जर्मनी और यूक्रेन, जर्मनी और अमेरिका (AK)

 

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