Aug १४, २०२४ १८:०५ Asia/Kolkata
  • मिडिल ईस्ट आई: इज़राइल ने अमेरिका से सीखा है कि फ़िलिस्तीनी युद्धबंदियों को किस तरह सेक्शुअल हैरेसमेंट का शिकार बनाया जाए
    मिडिल ईस्ट आई: इज़राइल ने अमेरिका से सीखा है कि फ़िलिस्तीनी युद्धबंदियों को किस तरह सेक्शुअल हैरेसमेंट का शिकार बनाया जाए

पार्सटुडे - मिडिल ईस्ट आई के अनुसार, फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के सेक्शुअल हैरेसमेंट की प्रकाशित रिपोर्टों पर पश्चिम का आश्चर्य एक शो बाज़ी और दिखावे का ड्रामा है।

मिडिल ईस्ट आई मीडिया ने यातना के अमेरिकी और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के लंबे रिकॉर्ड के साथ ही ज़ायोनी शासन की जेलों में फ़िलिस्तीनियों की यातनाओं के बारे में मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के सेक्शुअल हैरेसमेंट की तस्वीरों के सामने आने पर पश्चिमी देशों द्वारा किया गया आश्चर्य सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दिखावा है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन की जेलों में फ़िलिस्तीनियों के सेक्शुअल हैरेसमेंट के मुद्दे को जिसमें इस शासन के नौ सैनिकों को फ़िलिस्तीनी पुरुषों की शारीरिक और यौन यातना के आरोप में गिरफ्तार किया गया था जिन्हें कुछ ही दिन बाद ज़मानत पर आज़ाद कर दिया और घर में नजरबंद कर दिया गया, पश्चिमी मीडिया में इस तरह से बयान किया गया कि जैसे कि यह एक अलग और आम बात है।

इस दर्दनाक मुद्दे का सामना करने में पश्चिमी लोगों की धारणा यह है कि ज़ायोनी शासन की जेलों में सेक्शुअल हैरेसमेंट, लगातार और रोज़मर्रा का विषय नहीं है।

अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने सदी तीमान जेल से जारी फ़ोटोज़ को "भयानक" बताया है और अपराधियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई का आह्वान किया है।

वाइट हाउस ने जिसे इज़राइली जेलों में फ़िलिस्तीनियों की दैनिक यातना के बारे में कोई जानकारी नहीं है, ज़ायोनी शासन में सेक्शुअल हैरेसमेंट की रिपोर्टों को "बहुत ही चिंताजनक" बताया है।

यूरोपीय संघ का भी दावा है कि वह ज़ायोनी शासन की जेलों में सेक्शुअल हैरेसमेंट की इन तस्वीरों और रिपोर्टों को देखने के बाद "बहुत चिंतित" है।

यह ऐसी हालत में है कि यह मुद्दा ज़ायोनी शासन के उत्पीड़न और यातनाओं के तरीकों में कोई नई चीज़ नहीं है क्योंकि इस शासन की सेना ने कम से कम 1967 से फ़िलिस्तीनियों को व्यवस्थित रूप से शारीरिक और यौन शिकार बनाया जबकि मानवाधिकार ग्रुप्स ने इस कड़वे सच को सालों पहले उजागर कर दिया था।

इस रिपोर्ट के अनुसार, 1880 के दशक से, "सेडिज़म" या "अन्य दुर्व्यवहार" फ़िलिस्तीनियों के प्रति ज़ायोनी साम्राज्यवादियों के व्यवहार का एक ख़ास हिस्सा है और यहां तक कि कुछ उदारवादी ज़ायोनी नेताओं ने भी इन कृत्यों विरोध किया था।

इस रिपोर्ट में कहा गया है: "यह सेडिज़म और सेक्शुअल हैरेसमेंट जो अक्सर इसके साथ जुड़ा होता है, न केवल यूरोपीय लोगों के साम्राज्यवादी अहंकार में छुपा हुआ है बल्कि उन विचारों में भी पाया जाता है जो कहते हैं कि अरब केवल ताक़त की ज़बान ही समझते हैं और यूरोपीय लोगों की तुलना में सेक्शुअल हैरेसमेंट के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

उन हमलावरों में से एक की तस्वीर जिसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के दबाव में इन्टरव्यू के लिए लाया गया था और उसने अपनी कार्रवाई का बचाव किया

 

याना, एक आम बात है

पश्चिमी देश इजराइली जेलों में सेक्शुअल हैरेसमेंट की ख़बरों से आश्चर्यचकित हैं जबकि  मक़बूज़ा क्षेत्रों में रहने वाले ज़ायोनियों ने "नेसेट" के कुछ सदस्यों के साथ उन हिरासत केंद्रों पर हमला किया जहां इन नौ बलात्कारी जेलरों और जेल के पहरेदारों को रखा गया था।

 क़ब्ज़े वाले शासन के कई कैबिनेट मंत्रियों ने भी खुलकर फ़िलिस्तीनी क़िदियों के सेक्शुअल हैरेसमेंट का समर्थन किया है और इसे एक वैध काम की तरह बताया है!

मिडिल ईस्ट आई के अनुसार, इन रिपोर्टों पर पश्चिम का आश्चर्य एक झूठा दिखावा है क्योंकि इजराइली मानवाधिकार संगठन "बेत्सलिम" ने बताया है कि इज़राइली शासन पिछले साल अक्टूबर से क़ैदियों के ख़िलाफ संगठित दुर्व्यवहार और यातना की नीति अपना रहा है।

दूसरी ओर, गिरफ्तार किए गए जेल के पहरेदारों और जेलरों में से एक, ज़ायोनी टीवी चैनल-14 पर अपना चेहरा ढंके हुए दिखाई दिया और एक लाइव कार्यक्रम में इस अमानवीय कृत्य का उसने बचाव किया।

थोड़ी देर बाद, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट पर अपने चेहरे से मुखौटा हटा दिया और खुलकर कहा कि उसे अपने और अपने साथियों के कामों पर गर्व है! ज़ायोनी टेलीविज़न ने उस व्यक्ति को सज़ा देने की भी मांग की है जिसने जेल के पहरेदारों द्वारा फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के साथ दुर्व्यवहार का वीडियो मानवाधिकार ग्रुप्स को लीकर दिया और उस व्यक्ति ग़द्दार और द्रोही बताया।

अबू ग़रेब जेल, इराक़ के सबसे कुख्यात अमेरिकी केंद्रों में से एक, जहां कई सेक्शुअल हैरेसमेंट की घटनाएं सामने आईं

 

नस्लीय यातनाएं

 

ब्रिटिश मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ज़ायोनी शासन की यह कार्रवाई दुनिया में अभूतपूर्व नहीं है लेकिन इस शासन के मुख्य समर्थक का भी इन काले कारनामों में एक लंबा इतिहास रहा है।

2003  में अमेरिकियों द्वारा अबू ग़रेब जेल में इराक़ी कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के ख़ुलासे के बाद, अनुभवी पत्रकार सेमुर हर्श ने ख़ुलासा किया कि रूढ़िवादी और युद्ध समर्थक अमेरिकियों ने इराक़ पर हमले से महीनों पहले सेक्शुअल हैरेसमेंट के प्रति अरब संवेदनशीलता का मुद्दा उठाया था।

एक फ़िलिस्तीनी राजनीतिक क़ैदी सुबही अलख़ज़रा की पुस्तक का उल्लेख करते हुए, जिसमें उन्होंने प्रताड़ित क़ैदियों का साक्षात्कार लिया था, मिडिल ईस्ट आई ने फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े के शुरुआती दिनों में ज़ायोनियों और ज़ायोनी समर्थक ब्रिटिश नागरिकों के अपराधों के उनके विवरण का उल्लेख किया है।

अपनी रिपोर्ट में अल-खज़रा ने यातना के बारे में ब्रिटिश की नीयतों पर चर्चा की और लिखा कि ये यातनाएं पूछताछ के उद्देश्य से नहीं की गईं बल्कि उनका उद्देश्य केवल अरबों और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करना था और यह अरबों के ख़िलाफ साम्राज्यवादियों की नफरत और उनके गुस्से की भड़ास निकालने के प्रयासों को दर्शाता है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, मुद्दा यह नहीं है कि अरबों और मुसलमानों ने कोई अपराध किया है और उन्हें अपना अपराध क़बूल करने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है। यातनाएं केवल यातना के बदले यातना की व्यक्तिगत इच्छाओं को पूरा करने के लिए दी जाती हैं।

अमेरिकी सैनिकों द्वारा एक वियतनामी सैनिक पर यातना

 

अनुभवी साम्राज्यवादियों के नक्शे क़दम पर

पार्सटुडे के अनुसार, मिडिल ईस्ट आई ने इस तथ्य के गहरे प्रमाण के तौर पर कि ज़ायोनी शासन की जेलों में यातनाओं के बारे में पश्चिम का आश्चर्य, एक दिखावा और झूठी प्रतिक्रिया है, इस हक़ीक़त की ओर इशारा किया कि वियतनाम युद्ध में सेक्शुअल हैरेसमेंट, अमेरिकी सैनिकों द्वारा वियतनामी गुरिल्ला महिलाओं की हत्या एक सामान्य बात बन गई और यहां तक ​​कि अमेरिकी सेना के प्रशिक्षण निर्देशों का भी हिस्सा बन गई।

रिपोर्ट में कहा गया है: वही सेडिज़म और लिंगवादी नज़रिया जो फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के प्रति इज़राइल के रवैये को ज़ाहिर करता है, वही वियतनाम युद्ध में अमेरिकी नज़रिए को भी ज़ाहिर करता है।

मिडिल ईस्ट आई के अनुसार, फ़िलिस्तीनियों की हत्या करना, उनका सेक्शुअल हैरेसमेंट और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करना, 1948 से ज़ायोनियों की एक स्थायी रणनीति बन गई है और इस संबंध में "जांच" के अनुरोध से कोई फायदा नहीं होगा।

अपनी रिपोर्ट के अंत में, अंग्रेजी मीडिया ने भविष्यवाणी की कि ज़ायोनी शासन, इस संबंध में अपनी "जांच" में, फिर से "आत्मरक्षा के अधिकार" पर ज़ोर देगा और कानून और व्यवस्था के मूल्यों और सिद्धांतों की दोहाई देगा और इन्हीं बैसाखियों का सहारा लेगा। यह वही सिद्धांत हैं जो 1948 से आज तक मौजूद हैं और इन सिद्धांतों ने ज़ायोनियों को फ़िलिस्तीनी जनता पर अत्याचार करने और इन व्यवहारों के लिए किसी भी संस्था के प्रति जवाबदेह तक नहीं होने दिया।

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