May २४, २०२२ १५:२४ Asia/Kolkata

ख़ुर्रम शहर ईरान के ख़ुज़िस्तान प्रांत का एक शहर है। यह बंदरगाही नगर इराक़ की सीमा पर स्थित है।

26 अक्तूबर 1980 को सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना ने इस नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया था और 19 महीनों के बाद 24 मई वर्ष 1982 को ईरानी सेना ने महान ईश्वर की मदद से इस नगर को आज़ाद करा लिया। ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान की एक सैनिक कार्यवाही का नाम बैतुल मुक़द्दस था जिसे ईरान की सशस्त्र सेना और सिपाहे पासदारान ने मिलकर अंजाम दिया था। जब ईरानी सेना ने ख़ुर्रम शहर को आज़ाद करा लिया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर काफी प्रतिक्रियायें हुईं। जब तक ख़ुर्रम शहर इराकी सेना के कब्ज़े में था तब तक वार्ता में ईरान पर दबाव डालने के लिए सद्दाम शासन इस नगर को हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करता था पर जब ईरानी सेना ने ख़ुर्रम शहर को आज़ाद करा लिया तो सद्दाम के हाथ से दबाव डालने का यह हथकंडा भी निकल गया।

इस नगर की आज़ादी पर स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि ख़ुर्रम शहर को ईश्वर ने आज़ाद किया। ख़ुर्रम शहर की आज़ादी ईरान- इराक़ युद्ध में एक एतिहासिक मोड़ था। इस शहर की आज़ादी से जहां ईरानी सेना और जियालों के हौसले बहुत बुलंद हो गये थे वहीं सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना का मनोबल बहुत गिर गया था और उस वक्त वह अतिक्रमण से रक्षा व बचाव की मुद्रा में आ गयी थी। ख़ुर्रम शहर की आज़ादी के बाद ईरान ने अधिक से अधिक उन क्षेत्रों को स्वतंत्र करा लिया जिन पर सद्दाम की हमलावर सेना ने कब्जा कर लिया था। ख़ुर्रम शहर की आज़ादी के लिए होने वाली लड़ाई में लगभग 16 हज़ार इराकी सैनिक हताहत व घायल हुए जबकि 19 हज़ार इराकी सैनिकों को बंधक बना लिया गया।

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वास्तव में ख़ुर्रम शहर की आज़ादी ईरानी सेना की विजय का आरंभिक बिन्दु था और उसके बाद से ईरानी सेना और जियालों के मनोबल बहुत बुलंद हो गये थे और इसी हौसले व मनोबल ने पूरे ईरान-इराक युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतिहासकार व अध्ययनकर्ता मसऊद रिज़ाई ईरानी राष्ट्र को मिलने वाली इस इतिहासिक विजय को प्रतिरोध की मज़बूत भावना का परिणाम बताते और कहते हैं” साहसिक प्रतिरोध ने ईरानी जनता को बता दिया कि कठिनाइयों के मुकाबले में धैर्य व प्रतिरोध और ईश्वर के मार्ग में प्रयास दुश्मन के मुकाबले में विजय और क्रांतिकारी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कारण है। ईरान- इराक युद्ध के अनुभवों ने दर्शा दिया कि विजय प्रतिरोध में ही नीहित है और प्रतिरोध के माध्यम से ही विजय प्राप्त की जा सकती है।

ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद सद्दाम ने कुछ देशों व शक्तियों के उकसावे में आकर ईरान पर व्यापक पैमाने पर हमला कर दिया और इस हमले के दौरान उसे पूर्वी और पश्चिम ब्लाकों का व्यापक समर्थन प्राप्त था। दूसरे शब्दों में बड़ी शक्तियों के समर्थन से ईरान पर युद्ध थोप दिया गया और ईरान पर कड़ा प्रतिबंध भी लगा दिया गया यहां तक कंटीले तार भी ईरान को बेचने पर प्रतिबंध था। इसी प्रकार हर उस चीज़ को ईरान को बेचने पर प्रतिबंध था जिसके बारे में थोड़ा सा भी संदेह था कि इस चीज़ का प्रयोग सैनिक कार्यों के लिए हो सकता है।

इसी प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले अमेरिका से जो हथियार ख़रीदे गये थे और उनके पैसों का भुगतान भी किया जा चुका था अमेरिका ने उन हथियारों को भी ईरान को नहीं दिया। जिन कारणों से सद्दाम ने ईरान पर हमला किया था उसका एक कारण यही प्रतिबंध थे और वह यह सोच रहा था कि एक तरफ ईरान पर कड़ा प्रतिबंध है और दूसरी ओर उसे पूर्वी और पश्चिमी ब्लाकों का व्यापक समर्थन प्राप्त है।

ईरान- इराक़ युद्ध के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान ने बैलेस्टिक और ग़ैर बैलेस्टिक मिसाइलों के क्षेत्रों में असाधारण प्रगति की यहां तक आज ईरान उन कुछ देशों की सूची में शामिल हो गया है जो आधुनिकतम मिसाइलों से सम्पन्न हैं। ईरान के पास अब एसे मिसाइल हैं जो सटीक रूप से अपने लक्ष्यों को भेदते हैं। ईरान के पास जो मिसाइलें हैं उनमें से अधिकांश की मारक क्षमता एक हज़ार किलोमीटर जबकि कुछ की मारक क्षमता दो हज़ार किलोमीटर से अधिक है। तकनीक और मिसाइलों के क्षेत्रों में ईरान की प्रगति दुश्मनों की चिंता का कारण बनी है। ईरान की रक्षा क्षमता के बारे में रूस के एक वरिष्ठ अधिकारी मैक्सिम शूचिन्को कहते हैं” ईरान के पास क्षेत्र की सबसे मज़बूत व शक्तिशाली सेना है और इस देश की सेना विभिन्न प्रकार के आधुनिकतम मिसाइलों के निर्माण में सफल हो गयी है और हम इस बात के साक्षी हैं कि सैन्याभ्यासों के दौरान ईरानी सेना उनका प्रयोग कर रही है।

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अनुभव इस बात के सूचक हैं कि किसी भी देश या इंसान के अंदर की जो नीहित योग्यताएं होती हैं वे कठिनाइ में निखर कर सामने आती हैं। ईरान की सशस्त्र और शूरवीर जवानों ने ख़ुर्रम शहर की आज़ादी के लिए जो क़ुर्बानियां दीं उन्हें इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है और यह विजय आज भी ईरानी राष्ट्र की शौर्यगाथा सुना रहा है और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। ख़र्रम शहर की आज़ादी इस बात की सूचक है कि ईरानी राष्ट्र कभी भी किसी देश के वर्चस्व को स्वीकार नहीं करेगा। दुश्मनों विशेषकर अमेरिका की ओर से विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध और दबाव जारी हैं और इन प्रतिबंधों से उत्पन्न कठिनाइयों का सामना करते हुए ईरानी राष्ट्र आगे बढ़ रहा है और अदम्य साहस के साथ उसका प्रतिरोध इस बात का सूचक कि चुनौतियों को अवसरों में बदला जा सकता है।

रोचक बात यह है कि आज विभिन्न क्षेत्रों में ईरान ने जो ध्यान योग्य सफलताएं अर्जित की हैं और कर रहा है वे प्रतिबंधों के काल की हैं।  

ईरान की सशस्त्र सेना के प्रमुख जनरल बाक़िरी ने ख़र्रम शहर की आज़ादी से मिलने वाले अनुभवों की ओर संकेत किया और कहा कि ईरानी राष्ट्र ने आठ वर्षों तक प्रतिरोध करके दर्शा दिया कि उसने दुश्मनों की ओर से उत्पन्न की गई चुनौतियों और बाधाओं को सुनहरे अवसर में बदल दिया है।                                              

31 शहरीवर 1359 हिजरी शमसी को अर्थात 21 सितंबर 1980 को सद्दाम ने ईरान पर अतिक्रमण आरंभ किया था और उसे पूरब और पश्चिम की शक्तियों का व्यापक समर्थन प्राप्त था। यहां तक कि कुछ देशों ने सद्दाम को रासायनिक हथियारों से भी लैस कर रखा था। ईरान- इराक युद्ध के दौरान सद्दाम को पूरा विश्वास था कि कुछ ही दिनों के भीतर वह ईरान पर कब्ज़ा कर लेगा और जब इस हमले के आरंभ में किसी पत्रकार ने उससे सवाल करना चाहा तो उसने बड़े विश्वास और घमंड से कहा था कि एक हफ्ते बाद मैं तेहरान में साक्षात्कार दूंगा पर उसका यह स्वप्न आठ वर्षों में भी पूरा न हुआ।  

ख़र्रम शहर की आज़ादी के दौरान ईरानी राष्ट्र ने जिस एकता व एकजुटता का प्रदर्शन किया वह युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और वे पूरी ताकत और साहस के साथ दुश्मनों के मुकाबले में डट गये और दुनिया की किसी भी शक्ति से भयभीत नहीं हुए। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की सशस्त्र सेना और शूरवीर जवानों में प्रतिरोध की मज़बूत भावना और उनका ऊंचा मनोबल इराकी सेना की एक के बाद दूसरी पराजय का कारण बने यहां तक कि सद्दाम और दुश्मनों के सारे समीकरणों पर पानी फिर गया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई ने सुरक्षा बलों के कमांडरों को संबोधित करते हुए प्रतिरक्षा काल को ईरानी राष्ट्र के लिए प्रतिष्ठा का कारण बताया और बल देकर कहा कि ईरान- इराक युद्ध में काफी जानी व माली नुकसान उठाना पड़ा परंतु इस युद्ध से ईरानी राष्ट्र को जो उपलब्धियां हासिल हुईं उनकी कीमत उससे बहुत अधिक है जिसका नुकसान ईरानी राष्ट्र को सहना व उठाना पड़ा। सर्वोच्च नेता कहते हैं कि ईरान- इराक युद्ध के दौरान ईरानी राष्ट्र के प्रतिरोध ने दर्शा दिया कि भारी दबाव और प्रतिबंधों के बावजूद विश्व की वर्चस्ववादी शक्तियों के सामने डटा व प्रतिरोध किया जा सकता है और इस प्रतिरोध ने इस्लामी और ग़ैर इस्लामी देशों में बहुत सी हस्तियों और लोगों के विचारों को परिवर्तित कर दिया।

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इसी प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं कि प्रतिरक्षा काल की उपलब्धियां एक पूंजी हैं और दुश्मन चाहता है कि उन्हें भुला दिया जाये। सर्वोच्च नेता ने कहा कि प्रतिरक्षा काल को न केवल भुलाया नहीं जाना चाहिये बल्कि विभिन्न अवसरों पर उसकी याद दिलाई और उस पर प्रकाश डाला जाना चाहिये।

ईरान- इराक युद्ध के दौरान पश्चिमी व युरोपीय देशों विशेषकर अमेरिका ने सद्दाम का व्यापक समर्थन किया और सद्दाम ने ईरानी राष्ट्र के खिलाफ जो भी अपराध किये उसकी अमेरिका ने न केवल कभी भर्त्सना तक नहीं की बल्कि उसका प्रोत्साहन भी करता और उसे आधुनिकतम हथियारों से लैस करता रहा। दूसरे शब्दों में क्षेत्रीय देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और उन्हें एक दूसरे के खिलाफ़ उकसाना व लड़ाना वही नीति है जो आज भी जारी है और विदेशियों का हस्तक्षेप क्षेत्र की शांति व सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

ईरान ने सद्दाम द्वारा थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के अनुभवों से लाभ उठाते हुए अपने रक्षा उपकरणों को समय की चुनौतियों के अनुसार बना लिया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने अपने बयानों में बारमबार इस बात को बल देकर कहा है कि ईरान की इस्लामी व्यवस्था की प्रतिरोधक शक्ति ने दुश्मनों के अंदर से ईरान पर हमले के विचार को निकाल दिया है। इसी प्रकार सर्वोच्च नेता ने स्पष्ट किया है कि दुश्मनों को जान लेना चाहिये कि अगर वे ईरान पर अतिक्रमण का दुस्साहस करेंगे तो उन्हें कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा और संभव है कि वे युद्ध का आरंभ करें परंतु युद्ध की समाप्ति उनके हाथ में नहीं होगी।

ईरान की सैन्य क्षमता में वृद्धि और मज़बूती इस बात की सूचक है कि ईरान की सशस्त्र सेना दुश्मनों की समस्त चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार है और स्वयं ईरान की सशस्त्र सेना की तैयारी दुश्मनों की निराशा व चिंता का कारण बन गयी है। राजनीतिक मामलों के एक विशेषज्ञ शहाब शाबानी निया कहते हैं” ईरान को दुनिया की चौथी मिसाइल शक्ति के रूप में देखा जाता है और यह इस बात का कारण बनी है कि दुश्मन ईरान पर हमला करने से पहले ईरान की मिसाइल क्षमता के बारे में ज़रूर सोचेगा।

बहरहाल खुर्रम शहर की आज़ादी पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट संदेश है कि ईरान अपने देश की रक्षा में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लेगा और विश्व की वर्चस्ववादी शक्तियां ईरान को दबाने के लिए हर संभव प्रयास कर लें परंतु ईरान ने कभी भी विश्व की वर्चस्ववादी शक्तियों के सामने न तो घुटने टेके हैं और न ही टेकेगा और खुर्रम शहर की आज़ादी ने यह साबित कर दिया है कि जंग में सबसे निर्णायक चीज़ हथियार नहीं बल्कि हौसले होते हैं और विजय उसे मिलती है जिसके हौसले बुलंद होते हैं और खुर्रम शहर की आज़ादी इसका मुंह बोलता सुबूत है।

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