अमरीका में ज़ायोनी लॉबी कितनी ताक़तवर है
दशकों से ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने और उन्हें हड़पने की कोशिश कर रहा है।
पिछले 7 दशकों से भी ज़्यादा समय से ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीनियों पर अत्याचार कर रहा है, उन्हें बेरहमी से मार रहा है, अवैध बस्तियां बसा रहा है, फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की अनदेखी कर रहा है, उन्हें बुनियादी ज़रूरतों के लिए सहायता प्रदान करने से रोक रहा है। वह यह सभी अत्याचार अमेरिका और वहां की ज़ायोनी लॉबी के समर्थन से कर रहा है।
अमेरिकी विदेश नीति के निर्धारण पर ज़ायोनी लॉबी का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव स्पष्ट है। यह लॉबी कोई भूमिगत संगठन, बल्कि इस लॉबी में बड़ी संख्या में ऐसे अधिकारी और संगठन शामिल हैं, जो सक्रिय रूप से अमेरिकी विदेश नीति को इस्राईल के पक्ष में मोड़ते हैं।
दो बड़ी लॉबी
अमेरिकी राजनीति में कई ज़ायोनी लॉबी प्रभावी हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं "एआईपीएसी" और "जे स्ट्रीट"। एआईपीएसी चुनावी उम्मीदवारों और इस्राईल की ओर झुकाव रखने वाले लोगों की नियुक्ति के लिए काफ़ी पैसा ख़र्च करती है और इन ख़र्चों से कई गुना ज़्यादा फ़ायदा कमाती है। अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के लिए इस्राईली लॉबी द्वारा ख़र्च किए जाने वाले प्रत्येक डॉलर के बदले, ज़ायोनी शासन को अमेरिका से बस्तियों के निर्माण और हथियारों के लिए 50 डॉलर की सहायता मिलती है।
ज़ायोनी शासन से संबद्ध एक अन्य प्रसिद्ध लॉबी जे स्ट्रीट अमेरिकी राजनेताओं के बीच इस्राईली रंगभेदी शासन का एक अलग चेहरा पेश करती है। इस समूह का पहला सिद्धांत, ज़ायोनी सरकार और ज़ायोनियों के लिए समर्थन प्राप्त करना है। इस लॉबी ने आलोचनात्मक और सुधारवादी साहित्य का उपयोग करके अमेरिकी लोकतांत्रिक समूहों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का विश्वास हासिल करने की कोशिश की है।
अमेरिकी चुनाव और ग़ज़ा युद्ध
ग़ज़ा युद्ध में कम से कम 39,000 फ़िलिस्तीनी शहीद और 90,000 से अधिक घायल हो चुके हैं। भले ही अमेरिकी इन वर्षों में आर्थिक मंदी, पर्यावरणीय मुद्दों और सामाजिक मुद्दों जैसी कई आंतरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन इस देश की दो प्रमुख पार्टियां, हमेशा की तरह इस्राईल के समर्थन में एकमत हैं।
निःसंदेह, यह ज़ायोनी शासन के प्रभाव का एक हिस्सा है, जो शीत युद्ध के दौरान और वर्तमान युग में, अमेरिका की विदेश नीति में अपने लिए एक रणनीतिक भूमिका परिभाषित करने और आकर्षित करने का केन्द्र बनने में सक्षम है।
सभ्यताओं के बीच युद्ध
अमेरिकी राजनेताओं के लिए, इस्राईल पश्चिमी सभ्यता में सबसे पूर्वी बिंदु है, जिसका कार्य वाशिंगटन के रणनीतिक हितों की रक्षा करना और पूर्वी भूमध्यसागरीय सीमाओं से परे पूर्वी लोगों की प्रगति को रोकना है। इस दृष्टि के मुताबिक़ यरूशलम, इस्लामी, हिंदू और कन्फ्यूशियस सभ्यताओं के ख़िलाफ़ पश्चिम का पहला क़िला है और इसके अस्तित्व की गारंटी किसी भी क़ीमत पर दी जानी चाहिए। शायद इसी कारण, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ज़ायोनी राष्ट्रपति इसहाक़ हर्ज़ोग के साथ एक बैठक में कहा कि अगर इस्राईल अस्तित्व में नहीं होता, तो हम इसे लाते।
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक़, अमरीका के लिए इस्राईल का महत्व सिर्फ़ आर्थिक और राजनीतिक सुरक्षा ही नहीं है, बल्कि आस्था, धर्म और मज़हब का मामला है। अमेरिका में, लगभग 70 से 80 मिलियन ईसाई हैं, जो मानते हैं कि जब ज़ायोनियों के माध्यम से पश्चिम एशिया में घटनाओं की एक श्रृंखला होगी तो ईसा मसीह प्रकट होंगे। यह लोग वास्तव में "इंजीलवादी" कहलाते हैं। उनका मानना है कि यहूदियों और उनके अरब और मुस्लिम पड़ोसियों के बीच एक महान युद्ध छिड़ जाएगा। इस युद्ध में, अल-अक्सा मस्जिद को नष्ट कर दिया जाएगा, और उसी स्थान पर सोलोमन टैंपल बनाया जाएगा। इस सर्वनाश युद्ध के बाद ईसा मसीह प्रकट होंगे। एक धारणा, जो एक दृष्टिकोण से, ज़ायोनीवादियों द्वारा फ़िलिस्तीन पर कब्ज़ा करने का कारण बनी।
पश्चिम एशिया में उपनिवेशवाद और ईरान के सामने चुनौती
अंततः पश्चिम में नई लॉबियों के प्रभाव और विभिन्न देशों से फ़िलिस्तीनी भूमि पर यहूदियों और ज़ायोनियों के आप्रवासन से ब्रिटिश उपनिवेशवाद के नए डिज़ाइन ज़ायोनी शासन की स्थापना की गई और जिसके अस्तित्व की घोषणा 1948 में की गई थी। तब से, फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार और उनकी पूरी ज़मीन हड़पने के लिए अभियान जारी है।
इस बीच, इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व में कई देश, इस्राईल के औपनिवेशिक शासन के विघटन और यहूदियों की उनके मूल देशों में वापसी के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं। इसलिए, 7 अक्टूबर के युद्ध के वास्तविक विश्लेषण में इन जड़ों और खिलाड़ियों की सही पहचान और विश्लेषण करना बहुत महत्वपूर्ण है। msm