शहीद हनिया, प्रतिरोध के लोकप्रिय, धैर्यवान और साबिर कमांडर+ तस्वीरें
पार्सटुडे- फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन "हमास" के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख "इस्माईल हनिया" का उपनाम "अबुल अब्द" था और उनको आज बुधवार सुबह तेहरान में उनके ठहरने की जगह पर शहीद कर दिया गया।
हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माईल हनिया, जो इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति श्री मसऊद पिज़िश्कियान के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए तेहरान की यात्रा पर थे, समारोह के बाद 31 जुलाई की सुबह उनके आवास पर उनकी हत्या कर दी गई।
पार्सटुडे के अनुसार, इस्माईल हनिया, उन लोकप्रिय प्रतिरोध के नेताओं में थे जो तूफ़ान अल-अक्सा ऑप्रेशन के बाद पूरी दुनिया बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध व्यक्ति बन गए थे। वह ज़ायोनी शासन की आतंकवादी सूची में थे और इस्राईल ने उन्हें ब्लैक लिस्ट कर रखा था।
जन्म और परिवार
इस्माईल हनिया का जन्म 23 मई 1963 को ग़ज़ा के एक शरणार्थी शिविर अश्शाती में हुआ था। उनके परिजनों को ताक़त के बल पर वर्ष 1948 में अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में स्थित अस्क़लान क्षेत्र के जूरा गांव से ग़ज़्ज़ा पट्टी की ओर निकाल दिया गया था।
पढ़ाई
इस्माईल हनिया ने अपनी आरंभिक व माध्यमिक शिक्षा फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को सहायता पहुंचाने वाली और रोजगार उपलब्ध कराने वाली ऑनरवा संस्था के स्कूलों में हासिल की थी और इंटरमीडिएट की डिग्री मिस्र के अलअज़हर के एक कालेज से हासिल की थी और उसके बाद वर्ष 1981 में ग़ज़ा नगर के इस्लामी विश्वविद्यालय में दाख़िल हुए और अरबी साहित्य में अपनी पढ़ाई पूरी की।
इस्माईल हनिया ने वर्ष 1997 में ग़ज़ा विश्वविद्यालय का मिम्बर ऑफ़ द बोर्ड होने से पहले इस विश्वविद्यालय में कई ज़िम्मेदारियों को संभाल रखा था।
निर्वासन और जेल
शहीद इस्माईल हनिया ने, जिन्होंने लगभग पहले इंतिफ़ाज़ा की शुरुआत के समय तक स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी, पहले इंतिफ़ाज़ा के प्रदर्शनों में भाग लिया था और ज़ायोनी शासन की सैन्य अदालत ने उन्हें जेल की सज़ा सुनाई।
1989 में, उन्हें तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया और उनकी रिहाई के बाद, 1992 में, ज़ायोनी सैन्य अधिकारियों ने उन्हें "अब्दुल-अज़ीज़ अल-रंतीसी" और "महमूद अल-ज़ेहार और हमास के 400 अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ लेबनान की ओर देश निकाला दे दिया।
यह फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता दक्षिणी लेबनान के मरज अल-ज़हूर में एक साल से अधिक समय तक रहे, जहां, बीबीसी के अनुसार, हमास को अभूतपूर्व मीडिया कवरेज मिली और दुनिया भर उसको एक नई पहचान मिली।
इस्माईल हनिया एक साल बाद ग़ज़ा लौटे और उन्हें इस्लामिक विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। हनिया को 1997 में हमास के कार्यालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था, उन्होंने 2006 में फ़िलिस्तीन में हुए चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की और फिलिस्तीन के 10वें प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की और वह 2007 तक इस पद पर रहे। ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों के दौरान 10 अप्रैल, 2024 को एक हवाई हमले में उनके तीन बेटे और तीन पोते शहीद हो गए।
शहीद इस्माईल हनिया के सबसे प्रसिद्ध बयान:
हम इस्राइल को हरगिज़, हरगिज़, हरगिज़ क़बूल नहीं करेंगे।
गोफन या ग़ुलेल कभी ज़मीन पर नहीं रखी जाएंगी, बाड़ें नहीं टूटेंगी और अल्लाह की कृपा से, वे हम पर अपना नज़रिया नहीं थोप सकेंगे।
मुझे प्रधानमंत्री से ज़्यादा, मुझे फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास का सदस्य होने पर व्यक्तिगत रूप से गर्व है।
जनरल सुलेमानी क़ुद्स के शहीद हैं, हम फ़िलिस्तीन की आज़ादी तक शहीद सुलेमानी का रास्ता जारी रखेंगे।
तूफ़ान अल-अक़्सा ने क़ुद्स की आज़ादी की उम्मीदें फिर से जगा दी हैं।
फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के हितों और उसकी उमंगों का समर्थन करने में ईरान सबसे आगे है।
हमास की स्थापना की 21वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक भाषण में श्री इस्माईल हनिया ने कहा था: हे बुश, तुम तो चले गए, लेकिन हमारी गोफनें और ग़ुलैलें, अभी भी अपनी जगहों पर हैं, तुम तो चले गए, लेकिन हमारा रास्ता जारी है।
पार्सटुडे की इस रिपोर्ट में आप आगे इस महान हस्ती की तस्वीरी झलकियां देखेंगे:
कीवर्ड्ज़: इस्माईल हनिया कौन हैं?, ईरान और फ़िलिस्तीन, हमास, इस्राईली अपराध, हत्या, टारगेट किलिंग (AK)
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