मआरिव: हमास अब भी मज़बूत है और लड़ रहा है
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पार्स टुडे – एक ज़ायोनी अख़बार ने ग़ाज़ा में ज़ायोनी शासन की सेना की नाकामियों को स्वीकार करते हुए लिखा: इस्राइली सेना ने ग़ाज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित "रफ़ह" शहर को मलबे में बदल दिया और दो बार अपने नियंत्रण में लिया लेकिन फ़िलिस्तीनी आंदोलन हमास अब भी वहाँ लड़ रहा है।
(last modified 2025-09-21T12:30:17+00:00 )
Sep २०, २०२५ १६:३९ Asia/Kolkata
  • मआरिव: हमास अब भी मज़बूत है और लड़ रहा है
    मआरिव: हमास अब भी मज़बूत है और लड़ रहा है

पार्स टुडे – एक ज़ायोनी अख़बार ने ग़ाज़ा में ज़ायोनी शासन की सेना की नाकामियों को स्वीकार करते हुए लिखा: इस्राइली सेना ने ग़ाज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित "रफ़ह" शहर को मलबे में बदल दिया और दो बार अपने नियंत्रण में लिया लेकिन फ़िलिस्तीनी आंदोलन हमास अब भी वहाँ लड़ रहा है।

ज़ायोनी अख़बार मआरिव के सैन्य संवाददाता "आवी अश्केनाज़ी" ने अपनी रिपोर्ट में लिखा: रफ़ह दो बार इस्राइली सेना के नियंत्रण में आया और इमारतों को मलबे में तब्दील कर दिया गया लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि फ़िलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की इकाइयाँ अब भी इस्राइली सेना से लड़ रही हैं।

 

 

हमास आख़िरी दम तक लड़ेगा और आत्मसमर्पण नहीं करेगा

 

इस ज़ायोनी पत्रकार ने आगे कहा कि रफ़ह, ग़ाज़ा के अन्य हिस्सों की तरह एक बार फिर साबित करता है कि हमास आख़िरी सैनिक, आख़िरी हथियार और आख़िरी बम तक हार नहीं मानेगा।

 

मआरिव ने इस पर ज़ोर देते हुए लिखा कि हमास ने बहुत आसानी से अपनी लड़ाई की शैली बदल दी है और इस जंग को एक सशस्त्र सेना के खिलाफ़ गुरिल्ला युद्ध में तब्दील कर दिया है और उसकी कमजोरियों पर चोट करने की कोशिश कर रहा है। इसलिए इस्राइली राजनेताओं की वह बयानबाज़ी, जिसमें वे कहते हैं कि हमास आत्मसमर्पण करेगा खोखली और बेमानी बातों के अलावा कुछ नहीं।

 

ज़ायोनी समाचार सूत्रों ने पहले अपनी रिपोर्टों में स्वीकार किया था कि इस्राइली शासन के राजनीतिक और सैन्य नेताओं के बीच मतभेदों ने ग़ाज़ा युद्ध की रणनीति पर गहरा प्रभाव डाला है और उसके भविष्य को अस्पष्ट कर दिया है।

 

इस्राइली शासन के मीडिया ने यह भी ख़बर दी है कि ग़ाज़ा शहर पर कब्ज़े की उपयोगिता और भविष्य की सैन्य कार्रवाइयों को लेकर मतभेदों की छाया में इस शासन के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है।

 

7 अक्तूबर 2023 को ग़ाज़ा युद्ध की शुरुआत और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध बलों द्वारा अप्रत्याशित रूप से की गई ऐतिहासिक "तूफ़ान अल-अक़्सा" कार्रवाई के बाद से ज़ायोनी शासन की सेना को कई गंभीर और महंगे झटके लगे हैं; ऐसे झटके जिन्होंने न केवल ज़मीनी स्तर पर बल्कि मानसिक और रणनीतिक स्तर पर भी इस्राइली सेना के ढांचे को गहराई से प्रभावित किया है।

 

जंग के शुरुआती दिनों में दर्जनों ज़ायोनी मारे गए और सैकड़ों कैद कर लिए गए। एक ऐसी घटना जिसे कई विश्लेषकों ने इस क़ब्ज़ा करने वाले शासन की स्थापना के बाद से अब तक की सबसे अभूतपूर्व खुफ़िया और सुरक्षा हार बताया है।

 

इसके बाद ज़ायोनी सेना ने बंदी बनाए गए सैनिकों को छुड़ाने और प्रतिरोध से लड़ने के लिए व्यापक हवाई और ज़मीनी हमले शुरू किए लेकिन फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने असंगठित युद्ध की रणनीतियों, जटिल सुरंगों के इस्तेमाल, सटीक घात और योजनाबद्ध धमाकों के ज़रिए इस्राइली सैन्य इकाइयों को भारी नुक़सान पहुँचाया।

 

फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने दर्जनों "मिरकावा" टैंक, बख़्तरबंद वाहन, ड्रोन और ज़ायोनी शासन की सेना की उन्नत जासूसी प्रणालियों को भी नष्ट करने या क़ब्ज़े में लेने में सफलता हासिल की।

 

अब कई विश्लेषकों का मानना है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध ने तमाम क़ुर्बानियों के बावजूद युद्ध के समीकरणों को बदल दिया है और ज़ायोनी शासन की सेना को एक थकाऊ और महंगे युद्ध में उलझा दिया है जिसमें कब्ज़ा करने वालों की जीत की कोई स्पष्ट संभावना दिखाई नहीं देती। mm