आले ख़लीफ़ा के ख़िलाफ़ बहरैनी जनता का विरोध जारी
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बहरैन की जनता ने एक बार फिर मनामा के देराज़ क्षेत्र में अपने वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम के घर के सामने एकत्रित हो कर आले ख़लीफ़ा सरकार के विरोध में नारे लगाए और धर्मगुरुओं और राजनैतिक हस्तियों के ख़िलाफ़ जारी होने वाले फ़ैसलों को निरस्त करने की मांग की है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Sep ०३, २०१६ १७:३० Asia/Kolkata

बहरैन की जनता ने एक बार फिर मनामा के देराज़ क्षेत्र में अपने वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम के घर के सामने एकत्रित हो कर आले ख़लीफ़ा सरकार के विरोध में नारे लगाए और धर्मगुरुओं और राजनैतिक हस्तियों के ख़िलाफ़ जारी होने वाले फ़ैसलों को निरस्त करने की मांग की है।

बहरैन की सरकार ने जून में इस देश के वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम की नागरिकता समाप्त कर दी थी जिस पर बहरैनी जनता के साथ ही पूरे संसार के लोगों ने अत्यंत कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। बहरैन की जनता ने लगभग दो महीने से शैख़ ईसा क़ासिम के घर के सामने धरना दे कर आले ख़लीफ़ा की दिखावे की अदालतों के अन्यायपूर्ण फ़ैसलों पर अपने कड़े विरोध का प्रदर्शन किया है। बहरैनी अदालतें, आले ख़लीफ़ा के विरोधी नेताओं के ख़िलाफ़ अन्यायपूर्ण फ़ैसलें सुना रहीं हैं जो अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र का खुला उल्लंघन है।

 

आले ख़लीफ़ा के षड्यंत्रों के मुक़ाबले में बहरैनी जनता के विरोध प्रदर्शन और धरने उसकी चेतना का चिन्ह हैं। निश्चित रूप से विभिन्न रूपों में अपनी आपत्ति और विरोध जताने के बहरैनी जनता के तरीक़ों से आले ख़लीफ़ा की सरकार चकराई हुई और जनता के आंदोलन को समाप्त करने के उसके सभी प्रयास विफल हो गए हैं। जनता की क़ानूनी मांगों को कुचल कर और मावाधिकारों का व्यापक रूप से हनन करके आले ख़लीफ़ा ने बहरन को एक मानवाधिकार के हनन के एक प्रमुख केंद्र में बदल दिया है और यह सरकार विश्व स्तर पर एक ख़ूंख़ार और दमनकर्ता सरकार के रूप में जानी जाती है। इन परिस्थितियों में बहरैनी जनता ने भी, पर प्रकार के प्रदर्शन और धरने पर प्रतिबंध के गृह मंत्रालय के आदेश की अनदेखी करके देश की राजधानी मनामा को अपने विरोध का मंच बना दिया है। बहरैन की जनता के आंदोलन के जारी रहने से, आले ख़लीफ़ा सरकार की वैधता पर पहले से अधिक प्रश्न चिन्ह लग गया है। (HN)