आले ख़लीफ़ा को 14 फरवरी धड़े की चेतावनी
बहरैन के 14 फरवरी नामक जनान्दोलन ने आले ख़लीफ़ा शासन को चेतावनी देते हुए कहा है कि वरिष्ठ धर्मगुरू ईसा क़ासिम के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही के ख़तरनाक परिणाम निकलेंगे।
14 फरवरी नामक बहरैनी जनान्दोलन ने बयान जारी करके इस देश के वरिष्ठ धर्मगुरू शेख ईसा क़ासिम के विरुद्ध न्यायिक कार्यवाही की ओर संकेत करते हुए जनता से उनकी रक्षा के लिए एकजुट होने का आह्वान किया है। इस आन्दोलन का कहना है कि अपनी वैध मांगों के पूरा होने तक अभियान जारी रहेगा। राजनैतिक टीकाकारों का कहना है कि शेख ईसा क़ासिम के मुक़द्दमे की कार्यवाही को सरकार की ओर से बारबार विलंबित करना इस बात को दर्शाता है कि आले ख़लीफ़ा सरकार, 14 फरवरी नामक बहरैनी जनान्दोलन से डरी हुई है।
आले ख़लीफ़ा शासन के न्यायालय ने रविवार को यह आदेश जारी किया था कि शेख ईसा क़ासिम के विरुद्ध अदालत की कार्यवाही 21 मई को की जाएगी। इससे पहले भी न्यायालय कई बार इस कार्यवाही की तारीख़ें बदलता रहा है। इस शासन ने जून 2016 को बहरैन के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शेख ईसा क़ासिम की नागरिकता रद्द कर दी थी। जून 2016 से वे अपने घर में नज़रबंद हैं। शेख ईसा क़ासिम के समर्थन में हज़ारों बहरैनवासियों ने उनका घर घेर रखा है।
वरिष्ठ धर्मगुरू शैख ईसा क़ासिम को न केवल बहरैन में बल्कि बहरैन के बाहर भी अपार समर्थन प्राप्त है। उनके समर्थन में इराक़, सऊदी अरब, पाकिस्तान, भारत, ईरान सहित कई यूरोपीय देशों में प्रदर्शन होते रहे हैं। बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन के विरुद्ध 14 फरवरी 2011 से जनान्दोलन जारी है। बहरैन की जनता स्वतंत्रता, न्याय की स्थापना, मानवाधिकारों की सुरक्षा और लोकतंत्र की स्थापना के लिए अपने आन्दोलन को जारी रखेे हुए हैं।
आले ख़लीफ़ा शासन ने इस देश के जनान्दोलन के दमन के उद्देश्य से निराधार आरोप लगाकर बहरैन के कई जानेमाने नेताओं को गिरफ़्तार कर रखा है। इसके अतिरिक्त वहां के सुरक्षाबल भी बड़ी ही निर्दयता से जनानदोलन का दमन कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि वर्तमान समय में बहरैन में अशांति पाई जाती है उसका कारण इस देश के शासकों की दमनकारी नीतियां हैं। उनका कहना है कि यदि बहरैन में शांति स्थापित करनी है तो वहां के शासकों को अपनी जनता की बातों को सुनना होगा।