रूस के समर्थन में आगे आए भारत ने अपनाया कड़ा रुख़!
(last modified Fri, 06 May 2022 07:43:44 GMT )
May ०६, २०२२ १३:१३ Asia/Kolkata
  • रूस के समर्थन में आगे आए भारत ने अपनाया कड़ा रुख़!

रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र में महासभा और मानवाधिकार परिषद के प्रोसीज़रल वोट से अलग रहा है जिसमें यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी द्वारा की गई सैन्य कार्यवाही की निंदा की गई।  

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने ब्रिटेन में नीदरलैंड के राजदूत से कहा है कि, " कृप्या हमें नसीहत ना दें, भारत को पता है क्या करना है।"  इससे पहले डच राजदूत ने कहा था कि भारत को यूक्रेन को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र की महासभा की बैठक में अनुपस्थित नहीं रहना चाहिए था। 24 फरवरी को रूसी सेना ने जब यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान शुरू किया उसके तीन दिन पहले रूस ने यूक्रेन से अलग हुए क्षेत्रों दोनेत्सक और लुहांस्क को स्वतंत्र देशों का दर्जा दे दिया था। एक ट्वीट में डच राजदूत ने श्री तिरुमूर्ती से कहा था, " आपको संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में अनुपस्थित नहीं रहना चाहिए था, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का सम्मान करें।" भारत के राजदूत तिरुमूर्ती ने बुधवार को यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में वक्तव्य दिया था। उन्होंने अपना बयान ट्विटर पर पोस्ट किया था,  इसके जवाब में वान ओसटेरोम ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भारत के अनुपस्थित होने के बारे में टिप्पणी की।  

अप्रेल में भारत जनरल असेंबली से उस वोट में अनुपस्थित रहा था जो अमेरिका ने रूस को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद से बेदखल करने के लिए रखा था। अमेरिका का आरोप था कि रूसी सेना ने यूक्रेन की राजधानी के पास के कस्बों से लौटते हुए नागरिकों की हत्या की। मार्च में भारत संयुक्त राष्ट्र की महासभा के उस रिज़ोल्यूशन से अनुपस्थित रहा था जो यूक्रेन और उसके सहयोगी देश यूक्रेन संकट के संबंध में लेकर आए थे। भारत ने कहा था कि युद्ध को रोकने और तुरंत मानवीय सहायता पहुंचाने पर ध्यान देना चाहिए जो इस रिज़ोल्यूशन के ड्राफ्ट में नहीं है। उल्लेखनीय है कि 2 मार्च को जनरल असेंबली ने यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और अंतर्राष्ट्रीय सीमाई अक्षुणता को मज़बूत रखने के लिए एक वोटिंग कराई थी जिसमें रूस द्वारा आरंभ किए गए सैन्य अभियान की कड़े शब्दों में निंदा की गई थी। भारत 34 अन्य देशों के साथ इस रिज़ोल्यूशन से अनुपस्थित रहा था। इस प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े थे और पांच सदस्य देशों ने इसके ख़िलाफ़ वोट किया था। (RZ)  

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