चीन का प्रेम
चीन के उप प्रधानमंत्री वांग यांग आगामी 14 अगस्त को नेपाल का दौरा करेंगे। इससे मुशकिल से 9 दिन पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देओबा भारत के सरकारी दौरे पर रवाना होंगे।
इसी बीच भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी BIMSTEC की बैठक में भाग लेने के लिए काठमांडू की यात्रा करेंगी।
चीन के उप प्रधानमंत्री नेपाल को वन रोड वन बेल्ट योजना के तहत अब तक के समझौतों और परियोजनाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली को जो इस समय प्रमुख विपक्षी दल के नेता हैं, चीन ने लहासा बुलाया और डोकलाम विवाद पर उन्हें अपने के रुख़ से अवगत कराया साथ ही यह संदेश भी दिया कि चीन ने नेपाल और भूटान की की संप्रभुता का सम्मान किया है। ओली के क़रीबी नेताओं का कहना है कि चीन चाहता है कि भूटान से सीमा विवाद के बारे में उसकी द्विपक्षीय वार्ता हो, जबकि भारत को इस बहस से दूर रखा जाए।
चीनी अधिकारी नेपाली बुद्धिजीवियों तथा अन्य लोगों के साथ द्विपक्षीय व क्षेत्रीय मुद्दों पर आगे बढ़ रहे हैं। उनके बयानों में नेपाल के आंतरिक मामलों में भारत के हस्तक्षेप की बातें होती हैं। कभी कभी यह सुझाव भी देते हैं कि नेपाल के मामले में भारत का रवैया ब्रिटिश दौर की याद दिलाता है। चीन के समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंध इंस्टीट्यूट के निदेशक हू शिशेन्ग ने हाल ही में चीन नेपाल कूटनैतिक संबंध की 62वीं वर्षगांठ पर एक रिसर्च पेपर पढ़ा जिसमें सुझाव दिया गया कि चीन और नेपाल को रेलवे, पाइपलाइन और हाईवे के माध्यम से संपर्क स्थापित करना चाहिए। इस रिसर्च पेपर में सुझाव दिया गया कि नेपाल को चीन और भारत को जोड़ने की भूमिका अदा करनी चाहिए और यदि भारत सहयोग न करे तो उसको नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए।
नेपाल के लिए इस सुझाव पर अमल करना आसान नहीं है लेकिन चीन को बख़ूबी पता है कि नेपाल में भारत विरोधी भावना अपूर्व रूप से भड़की हुई है। नेपाल ने अपनी धरती पर चीन विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए जो क़दम उठाए चीन ने उसका खुलकर स्वागत किया। अधिकतर द्विपक्षीय एकेडमिक बहसों में चीन हमेशा इस बात पर गर्व जताता है कि उसने कभी भी नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। हू सुबूत के रूप में कहते हैं कि चीन और नेपाल ने दो संधियों पर हस्ताक्षर किए जिनसे ब्रिटिश विरासत में मिले झगड़े का समधान किया और साथ ही तिब्बत से जुड़े मुद्दे भी हल हो गए। यदि ब्रिटिश विरासत वाले विवाद न रहें तो चीन और नेपाल एक दूसरे से बराबरी के आधार पर बर्ताव कर सकते हैं।
चीन इस बात पर भी ज़ोर देता है कि उसने कभी भी माओवादी हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि माओवादियों को हमेशा नेपाल की मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। चीन ने कभी भी काठमांडू में सत्ता परिवर्तन के मास्टरमाइंड की भूमिका नहीं निभाई। इसके विपरीत भारत ने माओवादी हिंसा को बढ़ावा दिया और पारम्परिक शक्तियों को हाशिए पर डालते हुए माओवादियों को मुख्य राजनैतिक धारा में पहुंचाया जिसके चलते वर्तमान संकट उत्पन्न हो गया। माओवादी हिंसा के संबंध में भारत पर चीन का आरोप महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत पर आरोप है कि उसने ओली की सरकार गिराने में प्रभावी रोल निभाया था। ओली अब दावा कर रहे हैं कि जनवरी में होने वाले चुनावों के बाद वह नेपाल में सरकार बनाएंगे।
देओबा पर पर देश के राजनैतिक संगठनों की ओर से भारी दबाव है कि वह भारत से साफ़ साफ़ कहें कि यह तो वह कई साल पहले अपने हाथ में लिए गए हाइड्रो प्रोजेक्ट को पूरा करे या फिर उससे अलग हट जाए। यह महत्वपूर्ण संकेत हैं जिन्हें भारत को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
नेपाल में भारत अपनी सकारात्मक छवि गंवा चुका है। काठमांडू सरकार को मालूम है कि अगर डोकलाम मुद्दा जारी रहता है तो इसका नेपाल की अर्थ व्यवस्था और आम जीवन पर असर पड़ेगा। बहरहाल भारत इस मुद्दे पर नेपाल के समर्थन की ओर से आश्वस्त नहीं हो सकता।
युबराज घिमिरे
साभार इंडियन एक्सप्रेस