भीमा कोरेगांव हिंसा मामलाः पांचों कार्यकर्ताओं की नज़रबंदी 17 सितम्बर तक बढ़ी
(last modified Wed, 12 Sep 2018 08:10:17 GMT )
Sep १२, २०१८ १३:४० Asia/Kolkata
  • भीमा कोरेगांव हिंसा मामलाः पांचों कार्यकर्ताओं की नज़रबंदी 17 सितम्बर तक बढ़ी

भारत में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नज़रबंद पांच बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया है कि वह 17 सितम्बर तक नज़रबंद ही रहेंगे।

गत 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पुणे पुलिस द्वारा गिरफ़तार किए गए कार्यकर्ता वरारा राव, वरणन गोन्ज़ाल्वेस, अरुण फ़रेरा, सुधा भारद्वाज तथा गौतम नौलखा अपने अपने घरों में नज़रबंद रहेंगे।

इसका मतलब यह है कि पुलिस उन्हें रिमांड पर नहीं ले सकेगी।

चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस चंद्रचूण की पीठ ने इतिहासकार रोमीला थापर तथा चार अन्य की याचिका की सुनवाई को स्थगित करते हुए नज़रबंदी की अवधि 17 सितंबर तक बढ़ा दी क्योंकि याचीकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी दूसरी अदालत में व्यस्त थे। इससे पहले सिंघवी पीठ के सामने पेश हुए और अनुरोध किया कि थापर की याचिका पर सुनवाई 12 बजे दोपहर के बाद हो क्योंकि उन्हें एक अन्य मामले में अदालत में उपस्थित होना है।

दूसरी ओर पुलिस ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार या स्पेशल पुलिस इंस्पेक्टर जनरल विश्वास नागरे की ओर से किसी विशेष कमेटी का गठन नहीं किया गया है। पुणे की स्थानीय पुलिस ने एक आधिकारिक बयान जारी कर भीमा कोरेगांव मामले में 'फैक्ट फाइंडिंग' कमेटी की गठन पर अपनी सफाई पेश की है। स्थानीय पुलिस के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार या स्पेशल पुलिस इंस्पेक्टर जनरल विश्वास नागरे की ओर से कोई विशेष कमेटी का गठन नहीं की गई थी. इस मामले में किसी भी तरह की रिपोर्ट फिलहाल राज्य सरकार को नहीं सौंपी गई है।

पुलिस की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि कुछ मीडिया संस्थान यह खबर चला रहे हैं कि भीमा-कोरेगांव मामले में फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया गया है और इस कमेटी ने केस की पूरी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। यह पूरी तरह से तथ्यात्मक और कानूनी रूप से गलत है।