एक दूसरे की मजबूरी बन चुके हैं चीन और भारत, ज़रा एक नज़र टेक्नालोजी पर डालिए!
सीएनएन ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें इस बात का जायज़ा लिया गया है टेक्नालोजी के क्षेत्र में चीन और भारत का सहयोग किस हद तक आगे बढ़ चुका है और दोनों देश एक दूसरे की ज़रूरत बन गए हैं।
इस समय दोनों देशों के बीच कूटनैतिक और सामरिक स्तर पर गतिरोध पाया जाता है मगर इकानोमी और टेक्नालोजी को देखिए तो दोनों देशों के संबंध बहुत मज़बूत हैं।
भारत इस समय चीन से जितना सामान इमपोर्ट करता है उतना किसी भी अन्य देश से नहीं करता। पिछले एक दशक के दौरान भारत और चीन ने टेक्नालोजी पावर हाउसेज़ के क्षेत्र में मज़बूती से उभरने में एक दूसरे की मदद की है। चीन की हाई टेक कंपनियों ने भारत के बड़े स्टार्ट-अप्स में अरबों डालर का निवेश किया है। चीन की समार्टफ़ोन कंपनियां भारत के बाज़ार में छायी हुई हैं जबकि टिकटाक जैसे चीनी एप्स भारतीय उपभोक्ताओं में धूम मचाए हुए हैं।
अब दोनों देशों के बीच बढ़ते विवाद से यह संबंध ख़तरे में पड़ने लगे हैं। भारत में चीनी उत्पादों और सेवाओं के बहिष्कार की मांग उठने लगी है। भारत सरकार ने विदेशी पूंजीनिवेश के लिए एक नया क़ानून बनाया हो जो चीनी कंपनियों की ओर से किए जाने वाले निवेश को निशाना बनाता है इसके नतीजे में चीन भारत के इंटरनेट सेक्टर में बड़े पूंजीनिवेश का मौक़ा खो सकता है।
चीन ने भारत के टेक्नालोजी सेक्टर में पिछले पांच साल के दौरान महत्वपूर्ण पोज़ीशन हासिल कर ली है। इंडियन फ़ारेन पालीसी थिंक टैंक गेटवे हाउस की रिपोर्ट के अनुसार चीन अपनी महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड में तो भारत को शामिल होने पर तैयार नहीं कर पाया लेकिन भारत के टेक्नालोजी सेक्टर को चीन ने अपने सस्ते स्मार्टफ़ोन से पाट दिया है। ज़ियाओमी और ओप्पो जैसे ब्रांड इंडियन स्टार्ट-अप्स में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। गेटवे हाउस का अनुमान है कि 2015 से चीनी कंपनियों ने भारतीय स्टार्ट-अप्स में लगभग 4 अरब डालर का निवेश कर डाला है।
अली बाबा ने भारत की ई-कामर्स कंपनी स्नैपडील, डिजिटल वैलेट पेटीएम और फ़ूड डिलीवरी प्लेटफ़ार्म ज़ोमैटो में निवेश किया है। टेन्सेंट ने ओला एप को सपोर्ट किया है। गेटवे हाउस के अध्ययन से पता चला कि भारत की 1 अरब डालर से अधिक मूल्य वाली 30 स्टार्टअप्स में से आधी कंपनियां वह हैं जिनमें चीन का निवेश है। हुवावी भारत में 5जी नेटवर्क के निर्माण में मदद के लिए तैयार खड़ी है। गेटवे हाउस के एक शोधकर्ता अमित भंडारी का कहना है कि चीन इंटरनेट मार्केट में सबसे प्रमुख खिलाड़ी के रूप में नज़र आने की योजना बना रहा है।
वाशिंग्टन स्थित थिंक टैंक अलब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप की दक्षिणी एशिया मामलों की हेड सुकंती घोष का कहना है कि ग्लोबल टेक के क्षेत्र में सबसे बड़ी ताक़त बनने की चीन की योजना में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। मुझे नहीं लगता कि इस रिश्ते में कोई नुक़सान में है, दोनों देशों को इससे फ़ायदा पहुंचा है।
मगर इस साल के शुरू में भारत ने संकेत दिया कि वह चीन के बढ़ते वर्चस्व पर अंकुश लगाना चाहता है। अप्रैल में क़ानून बना दिया कि भारत के साथ संयुक्त ज़मीनी सीमा रखने वाले देशों की ओर से भारत में किए जाने वाले निवेश की अधिक पड़ताल की जाएगी। इस क़ानून का निशाना चीन ही है क्योंकि भारत के साथ संयुक्त ज़मीनी सीमा रखने वाले देशों में चीन ही है जो भारत में कोई बड़ा निवेश कर सकता है। भारत ने इस क़ानून से चीन को यह संदेश दिया कि वह भारत को हार्ड वेअर और साफ़्ट वेअर बेच सकता है लेकिन भारतीय कंपनियों को अपने कंट्रोल में नहीं ले सकता।
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि भारत सरकार स्थानीय चीन विरोधी भावनाओं से प्रभावित हो गई है। यदि भारत ने संकीर्ण सोच वाला राष्ट्रवाद साइंस और टेक्नालोजी के क्षेत्र में फैलने दिया तो निश्चित रूप से वह अपने हितों को क़ुरबान करेगा।
ब्रूकिंग इंडिया का हिस्सा रह चुके विशेषज्ञ अनंत कृष्णन का कहना है कि चीनी कंपनियां भारत में दीर्घकालिक उपस्थिति पर काम कर रही हैं और निवेश से उन्हें भारत के बाज़ार में टिकाऊ रसूख़ मिल गया है। मुझे नहीं लगता कि इस प्रकार की सोच व्यापक रूप से मौजूद है कि भारत चीन पर अपनी निर्भरता पूरी तरह ख़त्म कर सकता है। भारत हर चीज़ के लिए चीन पर निर्भर हो चुका है, भारी मशीनरी से लेकर टेलेकाम और पावर इक्विपमेंट इसी तरह दवाओं में प्रयोग होने वाले पदार्थों तक भारत को चीन की ज़रूरत है। भारत में मौजूदा और प्रस्तावित चीनी निवेश कम से कम 26 अरब डालर का है।
दोनों देशों के बीच व्यापार 87 अरब डालर तक पहुंच गया है। पिछले साल अमरीका के बाद चीन ही भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा। मगर यह भी सच्चाई है कि चीन से भारत को निर्यात की मात्रा ज़्यादा है।
विशेषज्ञ किरणजीत कौर का कहना है कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार का मतलब यह है कि चीनी कंपनियों ने भारत में जो निवेश किया हुआ है और जिसके सहारे भारतीय युवाओं को रोज़गार मिला है उसको नुक़सान पहुंचेगा और भारतीय युवाओं का रोज़गार भी जाएगा। इससे पहले भी सीमा पर झड़प के समय चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चलाया गया लेकिन वह कभी भी ज़्यादा दिन नहीं चल सका। यह नहीं लगता कि इस समय बहिष्कार के अभियान से भी कुछ ज़्यादा बदलाव आएगा। भारत के लोग चीनी स्मार्टफ़ोन और उत्पादों पर इस तरह निर्भर हो चुके हैं कि उनके पास दूसरा विकल्प ही नहीं है।
स्रोतः सीएनएन