उत्तर प्रदेश में गोहत्या संरक्षण क़ानून का दुरुपयोग हो रहा हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गोहत्या संरक्षण क़ानून का निर्दोष लोगों के ख़िलाफ दुरुपयोग करने और इस तरह के मामलों में पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की विश्वनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस क़ानून का दुरुपयोग राज्य में निर्दोष लोगों के खिलाफ किया जा रहा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आवारा मवेशियों की सुरक्षा के लिए गोहत्या क़ानून को राज्य में सही भावना के साथ लागू करने की ज़रूरत है।
गोहत्या संरक्षण क़ानून के तहत अगस्त से जेल में बंद एक आरोपी को ज़मानत देते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने गोहत्या निषेध क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए रहीमू और रहीमुद्दीन नाम के दो व्यक्तियों को ज़मानत दे दी। इन दोनों पर कथित तौर पर गोहत्या में शामिल होने के आरोप थे।
याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राथमिकी में उनके ख़िलाफ कोई विशेष आरोप नहीं हैं और उन्हें घटनास्थल से गिरफ़्तार नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त बरामद किया गया मांस गाय का था या नहीं, इसकी पुलिस द्वारा जांच भी नहीं की गई।
संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि निर्दोष लोगों के ख़िलाफ़ इस कानून का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है, जब भी कोई मांस बरामद होता है तो फॉरेंसिक लैब में जांच कराए बिना उसे गोमांस क़रार दे दिया जाता है।
आदेश में कहा गया है कि अधिकतर मामलों में बरामद मांस को जांच के लिए लैब नहीं भेजा जाता. इस दौरान आरोपी को उस अपराध के लिए जेल में जाना होता है, जो उसने नहीं किया होता और जिसमें सात साल तक की सज़ा है और इस पर विचार प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य में इस साल अगस्त 2019 तक राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून "एनएसए" के तहत गिरफ्तार किए गए 139 में से 76 लोगों पर गोहत्या के आरोप लगे हैं जबकि इस साल 26 अगस्त तक यूपी गोहत्या संरक्षण कानून के तहत 1,716 मामले दर्ज किए गए हैं और 4,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। (AK)
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