कश्मीर, मज़लूम नौजवानों का ख़ून रंग लाया, कैप्टन सहित तीन लोग नपे, मुक़द्दमा दर्ज, घाटी में फ़ेक एनकाउंटर में आई तेज़ी ...
(last modified Mon, 28 Dec 2020 06:47:03 GMT )
Dec २८, २०२० १२:१७ Asia/Kolkata
  • कश्मीर, मज़लूम नौजवानों का ख़ून रंग लाया, कैप्टन सहित तीन लोग नपे, मुक़द्दमा दर्ज, घाटी में फ़ेक एनकाउंटर में आई तेज़ी ...

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस साल जुलाई में शोपियां में कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सेना के एक अधिकारी समेत तीन लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया है। उस मुठभेड़ में राजौरी ज़िले के निवासी तीन युवक मारे गये थे।

अधिकारियों ने बताया कि आरोप पत्र शनिवार को शोपियां में प्रधान ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में दायर किया गया।

आरोप पत्र में सेना की 62 राष्ट्रीय राइफ़ल्स के कैप्टन भूपिंदर और स्थानीय नागरिक बिलाल अहमद एवं ताबिश अहमद को कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में उनकी भूमिका के लिए आरोपी बनाया गया है।

चार्जशीट में कहा गया है कि धारसाकरी गांव के रहने वाले दो युवकों 20 वर्षीय इम्तियाज़ अहमद और मुहम्मद अबरार तथा 25 वर्षीय अबरार अहमद की अग़वा करके हत्या कर दी गयी।

दोनों स्थानीय नागरिक ताबिश और बिलाल न्यायिक हिरासत में हैं जबकि आरोपी कैप्टन को अफ्सपा तथा आर्मी एक्ट की ज़रूरी प्रक्रियाओं को पूरा किए जाने के बाद गिरफ्तार किया जाना बाक़ी है।

आरोपपत्र में कहा गया है कि दोनों नागरिकों से पूछताछ में मारुति ऑल्टो कार और ‘विक्टर फोर्स कैंप अवंतीपुरा’ से कुछ सेल फ़ोन बरामद हुए। इससे युवकों का अपहरण करने, संबंधित रास्ते से ले जाने और प्रतिबंधित हथियारों की व्यवस्था करने का पूरा विवरण मिला है।

चार्जशीट के मुताबिक इस काम को अंजाम देने के लिए संबंधित आर्मी अफ़सर ने अपने अधिकारियों व सहयोगियों को गुमराह किया तथा एफआईआर दर्ज कराई ताकि आपराधिक साजिश पूरी होने पर उन्हें उनकी रक़म मिल सके।

सेना के अधिकारियों ने बताया था कि औपचारिकताएं पूरी होने के बाद कोर्ट मार्शल हो सकता है।

इससे पहले इस मामले में, जब सोशल मीडिया पर ख़बर आईं कि सेना के जवानों ने एक मुठभेड़ में तीन युवकों को आतंकवादी बताकर मार गिराया है, सेना ने कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी का आदेश दिया था जिसकी जांच सितम्बर में पूरी हो गई थी।

जांच में पाया गया था कि 18 जुलाई की मुठभेड़ के दौरान इन जवानों ने अफ्स्पा के तहत मिली शक्तियों के नियमों का उल्लंघन किया है इसके बाद सेना ने अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की थी।

मृतकों के परिजनों का कहना था कि तीनों युवकों का कोई आतंकी कनेक्शन नहीं था और वे शोपियां में मज़दूर के रूप में काम करने गए थे।

ज्ञात रहे कि इससे पहले मार्च 2000 में अनंतनाग के पथरीबल में पांच नागरिकों की हत्या कर उन्हें ‘आतंकवादी’ करार दे दिया गया था।

जनवरी 2014 में सेना ने यह कहते हुए केस बंद कर दिया था कि जिन पांच सैन्यकर्मियों पर मुठभेड़ के आरोप लगे हैं, उनके ख़िलाफ़ इतने सबूत नहीं हैं कि आरोप तय हो सकें। आज 20 साल बाद भी उनके परिजन इंसाफ के इंतजार में हैं।

2010 में माछिल एनकाउंटर भी ऐसी ही एक घटना थी, जहां तीन नागरिकों की हत्या की गई थी। इस मामले में नवंबर, 2014 में एक सैन्य अदालत ने एक सीओ सहित पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी और उन्हें सभी सेवाओं से मुक्त कर दिया था। (AK)

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