भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की शुरूआत, छोटे-छोटे क़दम कितने अहम
भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की दोबारा शुरूआत से उम्मीद की बड़ी किरण पैदा हुयी है। इसे जनता और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों की ओर से ज़रूर समर्थन मिलना चाहिए।
फ़रवरी 2021 को भारत-पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम को दोबारा लागू करने के एलान का सावधानी भरा स्वागत हुआ और शक की निगाह से देखा गया। दोनों देशों के बीच तनाव, अगस्त 2019 के बाद अपने चरम पर उस वक़्त पहुंचा जब भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को हासिल विशेष अख़्तियार को ख़त्म और वहाँ लॉकडाउन कर दिया। उसके बाद दोनों ओर से नियंत्रण रेखा पर फ़ायिरंग की क़रीब 7000 घटनाएं घटीं।
भारत और पाकिस्तान के ज़्यादातर टीकाकार, संघर्ष विराम को पूरी तरह चतुराई भरा क़दम मान रहे हैं जिसका लक्ष्य दोनों देशों के कम मुद्दत के हितों को हासिल करना है। भारत के चीन के साथ बातचीत के साथ साथ पश्चिमी सरहदों पर शांति रहेगी जबकि पाकिस्तान की पूर्वी सीमा पर शांति रहेगी ऐसी हालत में कि अफ़ग़ान वार्ता प्रक्रिया को रफ़्तार मिल रही है।
अगर इसे पूरी तरह चतुराई भरा क़दम माना भी जाए तब भी तनाव कम करने के इस छोटे से क़दम को ज़रूर सराहा जाना चाहिए। हमारे ख़्याल में शांति क़ायम करने में पूरी तरह चतुराई भरे क़दम जैसी कोई चीज़ नहीं होती। आम तौर पर जो एक चतुराई भरा क़दम नज़र आता है वही, छोटे-छोटे क़दम का रास्ता खोलता है जो मिल कर स्थायी शांति की ओर साहसिक उपाय का मार्ग समतल करते हैं।
भारत-पाकिस्तान के संबंधों में पड़ी बर्फ़ के पिघलने के और संकेत मिल रहे हैं। दोनों सरकारों ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ की सरपरस्ती में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति जतायी है और इस तरह की भी सुनगुन है कि पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी इसी साल भारत में खेलेंगे और धार्मिक यात्रा पर बातचीत फिर से शुरू होगी।
इस मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए दोनों देश के नेताओं को ऐसे फ़ैसले लेने होंगे जो उनके लिए कठिन होंगे। भारत को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह मानवाधिकार को बहाल करना होगा। उसे सुरक्षा चिंताओं पर पूर्वाग्रह नहीं करना है। पाकिस्तान को 2004 के संयुक्त बयान के तहत अपने वचन का पालन करना होगा कि वह किसी भी रूप में आतंकवाद का समर्थन करने के लिए अपने नियंत्रण वाले इलाक़े को इस्तेमाल नहीं होने देगा।
भारत और पाकिस्तान के लिए शांति वार्ता को वहाँ से शुरू करना अच्छा रहेगा जिस चरण उन्होंने 2007 में छोड़ा था। फ़्रेमवर्क का मसौदा ऐसा था जिसमें दोनों पक्ष ख़ुद को विजेता समझते। उक्त मसौदे में भारत और पाकिस्तान की ज़रूरतों के साथ साथ जम्मू-कश्मीर की जनता की आकांक्षाओं को मद्देनज़र रखा गया था। इस मसौदे में कश्मीर के सभी इलाक़ों से बड़े पैमाने पर फ़ौजियों को हटाना और यह सुनिश्चित करना शामिल था कि जम्मू कश्मीर की समस्या के स्थायी हल के लिए उसकी जनता को अधिकार, आज़ादी और आत्म संचालन मिलना चाहिए।
भारत और पाकिस्तान ने थोड़े ही वक़्त के लिए यह मौक़ा पैदा किया है। दोनों सरकारों को घरेलू श्रोताओं और विदेशी साझेदारों से प्रोत्साहन मिलना ज़रूरी है ताकि इस अल्पावधि के मौक़े की मुद्दत को बढ़ा सकें। (पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख़ुर्शीद क़सूरी और राधा कुमार के विचार, साभार इंडियेन एक्सप्रेस)
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए
हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए