जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में विशेष कार्यक्रम (2)
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ईरान में 30 दिसंबर को दूरदर्शिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।  वास्तव में दूरदर्शिता या परिज्ञान के माध्यम से शत्रु को अच्छी तरह से पहचाना जा सकता है।  30 दिसंबर को पूरे देश में मान-सम्मान, स्वावलंबन और लोगों की दूरदर्शिता के रूप में देखा जाता है।  यह दिन वास्तव में धार्मिक आस्थाओं और आशूरा के सम्मान का दिन भी है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Dec ३०, २०२१ १६:४३ Asia/Kolkata
  • जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में विशेष कार्यक्रम (2)

ईरान में 30 दिसंबर को दूरदर्शिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।  वास्तव में दूरदर्शिता या परिज्ञान के माध्यम से शत्रु को अच्छी तरह से पहचाना जा सकता है।  30 दिसंबर को पूरे देश में मान-सम्मान, स्वावलंबन और लोगों की दूरदर्शिता के रूप में देखा जाता है।  यह दिन वास्तव में धार्मिक आस्थाओं और आशूरा के सम्मान का दिन भी है।

आज के दिन ईरानियों ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर यह दर्शा दिया था कि वे अपने खून की अन्तिम बूंद तक उच्च शार्मिक नेतृत्व का समर्थन करते रहेंगे।

शहीद क़ासिम सुलैमानी भी उसी वातावरण में पले बढ़े थे जहां पर उच्च धार्मिक नेतृत्व को विशेष महत्व दिया जाता है।  वे बहुत ही दूरदर्शी व्यक्ति और जुझारू कमांडर थे।  वे हर बात को बहुत ही गहराई से देखते थे।  शहीद, वास्तव में न्याय की स्थापना और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करता है। शहीद उच्च विचारों और ऊंची आकांक्षाओं के स्वामी होते हैं। वे महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए कार्य करते हैं।  शहीद, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए ही अपनी जान न्योछावर करते हैं।  शहीदों के बारे में बताया गया है कि सारे शहीद एक समान नहीं होते हैं बल्कि कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता होती है। शहीद क़ासिम सुलैमानी की गणना भी उन शहीदों में होती है जिनको दूसरे शहीदों पर वरीयता हासिल है।  इसका कारण शायद उनके भीतर पाई जाने वाली दूरदर्शिता है।

पवित्र क़ुरआन, सबसे दूरदर्शिता का आह्वान करता है। उसने इसके साधन भी उपलब्ध करवाए हैं।  ईश्वर ने मनुष्य को आंख, कान दिल और समझने के अन्य अंग देकर दूरदर्शिता हासिल करने को कहा है।  जो लोग दूरदर्शी होते हैं वे इस विशेषता के माध्यम से अच्छे और पवित्र जीवन का चयन करते हैं।  इस प्रकार के लोग अपने जीवन में सच के मार्ग पर चलते हैं।  हज़र यूसुफ अलैहिस्सलाम की दास्तान बताने के बाद ईश्वर इसको सच्चों के लिए पाठ लेने वाली कहानी बताता है।  सूरे यूसुफ़ की आयत संख्या 108 में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए ईश्वर कहता है कि कह दो कि यह मेरा रास्ता है।  मैं अपने मानने वालों के साथ पूरी दूरदर्शिता से सभी लोगों को ईश्वर की ओर बुलाते हैं।  पवित्र है ईश्वर और मैं मुशरिकों में से नहीं हूं।

शहीद क़ासिम सुलैमानी की विचारधारा, प्रतिरोध पर आधारित थी।  वे धर्म और उच्च धार्मिक नेतृत्व में पूरी आस्था रखते थे।  इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक भाषण में शहीद क़ासिम सुलैमानी के बारे में कहा था कि वे स्वयं में एक विचारधारा थे।  क़ासिम सुलैमानी की शहादत के दो सप्ताहों के बाद वरिष्ठ नेता ने उनके बारे में कहा था कि हमे शहीद क़ासिम सुलैमानी को एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा के रूप मे देखना चाहिए।

अपने एक अन्य संबोधन में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने दूरदर्शिता और प्रतिरोध की ओर संकेत करते हुए कहा था कि शत्रु से मुक़ाबले के लिए इन दोनों की आवश्यकता होती है।  उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से कहता आया हूं और यहां पर भी कह रहा हूं कि यह दो विशेषताएं सभी लोगों के भीतर होनी चाहिए।  वे कहते हैं कि अगर यह दोनो विशेषताएं होंगी तो फिर शत्रु कुछ भी नहीं कर सकता।  वह हमें कोई भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकता।

दूरदर्शिता वह प्रमुख विशेषता थी जो शहीद क़ासिम सुलैमानी के भीतर कूट-कूटकर भरी हुई थी।  इस विशेषता को शहीद सुलैमानी के व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में बहुत ही स्पष्ट रूप में देखा जा सकता था।  अपनी दूरदर्शिता से ही उन्होंने इस्लाम के शत्रुओं के मुक़ाबले में लोगों को एकत्रित किया था। यह सही बात है कि ईश्वर इस प्रकार की दूरदर्शिता को उन लोगों को प्रदान करता है जिनके भीतर ईश्वरीय भय पाया जाता है।  सूरे हदीद की आयत संख्या 28 में ईश्वर कह रहा है कि हे वे लोग जो ईमान लाए वे ईश्वरीय भय रखें और उसके दूत को स्वीकार करे ताकि वह अपनी अनुकंपा के दो चीज़ें तुमको प्रदान करे। और तुम्हे प्रकाश दे ताकि उसके सहारे तुम आगे बढो।  और ईश्वर कृपायु और माफ करने वाला है।

दुश्मन को पहचानने में शहीद सुलैमानी बहुत ही दूरदर्शी थे।  यह वह विशेषता है जो बहुत ही कम लोगों में पाई जाती है।  विगत में बहुत सी क़ौमें और जातियां अदूरदर्शिता और समझ-बूझ न रखने के कारण विनाश का शिकार हुईं।  शत्रु के संबन्ध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो भी शत्रु के मुक़ाबले में निश्चेत हो जाता है उसको शत्रु की चालों और षडयंत्रों का सामना करना पड़ता है।  विश्व वर्चस्ववाद और अमरीका की शहीद कासिम सुलैमानी से दुश्मनी का मुख्य कारण यह था कि वे शत्रु को भलि प्रकार से जानते थे।  वे दुश्मनों की चालों को समझते हुए उसी हिसाब से आगे की रणनीति तैयार करते थे। 

शहीद क़ासिम के बारे में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हिज़बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह कहते हैं कि क्षेत्र में अमरीकी जहां भी जाते थे उनका सामना शहीद सुलैमानी से होता था।सीरिया में भी उनको वे मिले।  यमन में भी शहीद नज़र आए।  लेबनान और इराक़ में भी अमरीकियों का सामना शहीद सुलैमानी से हुआ और अफ़ग़ानिस्तान में भी।  प्रतिरोध से संबन्धित जितनी जगहें थीं वहां पर अमरीकियों को शहीद सुलैमानी का सामना  करना पड़ा।  इस्राईल को शहीद क़ासिम सुलैमानी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था।

जनरल शहीद क़ासिम सुलैमानी ने बारमबार लेबनान, सीरिया और इराक में अमेरिका और इस्राईल के षडयंत्रों को विफल बनाया। इराक में शीया- सुन्नी मुसलमानों को एकजुट करने में उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सुन्नी मुसलमानों की सहायता की जिसके परिणाम में इराक में अतिग्रहणकारियों के मुकाबले में राजनीतिक स्थिरता और मज़बूती अस्तित्व में आई।  सीरिया और इराक में अमेरिकी षडयंत्रों को विफल बनाने और आतंकवादी गुटों का सफाया करने में जनरल सुलैमानी ने जो भूमिका निभाई है उसे भुलाया नहीं जा सकता।

दूरदर्शिता के लिए विलायत के प्रकाश की ज़रूरत होती है।  क़ासिम सुलैमानी के अस्तित्व में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के प्रति अथाह श्रद्धा पाई जाती थी।  उनका मानना था कि उनके पास जो कुछ है वह इन्ही हस्तियों की देन है।  शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी जहां बहादुरी, विनम्रता और स्वभिमान जैसी विशेषता के स्वामी थे वहीं एक ऐसी भी विशेषता थी जो सर्वविदित थी और वह यह थी कि वह अपने समय के वरिष्ठतम धार्मिक नेतृत्व का पूरी निष्ठा के साथ अनुसरण करते थे।  जब नेतृत्व की बागडोर स्वर्गीय इमाम खुमैनी के हाथों में थी तब भी और अब जबकि नेतृत्व की ज़िम्मेदारी इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के हाथ में है।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी और उनके उत्तराधिकारी आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने अपने सफल नेतृत्व से सिद्ध कर दिया है कि वे अत्याचारग्रस्त राष्ट्रों के लिए आदर्श हैं।  उन्होंने साम्राज्यवादियों से मुकाबले के लिए हज़ारों नहीं बल्कि लाखों लोगों का प्रशिक्षण कर दिया है जिनमें से एक शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी थे।   ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए दशकों का समय बीत रहा है परंतु एक भी उदाहरण ऐसा नहीं मिलता जहां पर जनरल शहीद क़ासिम सुलैमानी ने वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व का उल्लंघन किया हो।

दूसरे शब्दों में जिस चीज़ ने शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को विश्व के पीड़ित लोगों के दिलों में प्रियतम बना रखा है वह उनकी यही विशेषता थी।  उनकी यह विशेषता हम सबके लिए बहुत बड़ा पाठ है। जो भी इज़्ज़त, मान-सम्मान और लोकप्रियता चाहता है उसे इस बिन्दु का ध्यान रखना चाहिये यानी वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व का अनुपालन करना।  अपने वसीयतनामे में शहीद क़ासिम सुलैमानी कहते हैं कि हमे वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व का अनुसरण करना चाहिए।

शहीद क़ासिम सुलैमानी न केवल विश्व वर्चस्ववाद से संघर्ष के ध्वजवाहक थे बल्कि एसे  व्यक्ति थे जिन्होंने वर्चस्ववाद के विरुद्ध खुलकर संघर्ष किया।  उन्होंने दाइश रूपी विश्व वर्चस्ववादी परियोजना को ध्वस्त करके संघर्षकर्ताओं के भीतर आत्मविश्वास भर दिया।  उन्होंने प्रतिरोध का जो रास्ता दिखाया आज उसपर न जाने कितने लोग चल रहे हैं।

दोस्तो शहीद क़ासिम सुलैमानी को हमारे बीच से गए हुए दो वर्षों का समय हो रहा है किंतु आज भी उनके प्रयासों के कारण सैकड़ों सुलैमानी पैदा हो चुके हैं और आगे भी एसा क्रम जारी रहेगा। दुश्मन को यह समझ लेना चाहिए कि शहीद क़ासिम सुलैमानी ने प्रतिरोध की भावना का जो बीज बो दिया है वह रहती दुनिया तक अपनी फसल देता रहेगा।