वरिष्ठ नेता ने दिया प्रतिरोध पर बल
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की बरसी पर दुश्मनों के मुक़ाबले में प्रतिरोध पर बल दिया है।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की 34वीं बरसी में जनता को संबोधित करते हुए आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस वास्तविकता को स्पष्ट शब्दों में समझाया।
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के विचारों के विपरीत, पीछे हटने से ईरानी राष्ट्र के शत्रुओं की दुश्मनी में कोई कमी नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि कुछ अवसरों पर पीछे हटने से दुश्मन आगे बढे और अधिक बाधाएं डालने लगे। एसा इसलिए था क्योंकि वे ईरान को इस्लामी क्रांति के पहले वाले निरभर्ता के दौर में ले जाना चाहते हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले कुछ दशकों के दौरान कुछ सरकारों में एसे लोग भी थे जो पीछे हटने और विशिष्टता देने के पक्ष में थे। इन्हीं सरकारों में से एक सरकार, जो एक देश के सामने पीछे हटी थी, उसीने हमारे ही राष्ट्रपति के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की। इसके अतिरिक्त एक अन्य सरकार में, जिसने खेदजनक बात है कि अमरीका की सहायता भी की गई थी, उसीने ईरान को शरारत की धुरी घोषित कर दिया।
सर्वोच्च नेता का यह बयान वास्तव में अमरीका और ज़ायोनी शासन सहित दुश्मनों के ईरान विरोधी दबाव को दर्शाता है जिनका मुख्य उद्देश्य ईरान को बहुत से मुद्दों पर पीछे की ओर ढकेलना रहा है। यह एक वास्तविकता है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से शत्रुओं ने कूटनीतिक, आर्थिक, और सैनिक दृष्टि से ईरान पर दबाव बनाए किंतु ईरानी जनता के कड़े प्रतिरोध ने उनको अपने इरादों में सफल होने नहीं दिया।
राष्ट्र के दुश्मनों और वर्चस्ववादी व्यवस्थाओं के संदर्भ में ईरान के भीतर दो प्रकार के दृष्टिको पाए जाते हैं। एक दृष्टिकोण तो यह है कि शत्रु के मुक़ाबले में थोड़ा पीछे हटा जाए। उनकी कुछ मांगों को मानते हुए चुनौतियों को कम किया जा सकता है।
दूसरा दृष्टिकोण यह है कि शत्रुओं के मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध करना चाहिए क्योंकि हालिया दशकों के अनुभवों ने सिद्ध कर दिया है कि दुश्मन का मुख्य उद्देश्य ईरान की इस्लामी क्रांति को विफल बनाना है। एसे में एक क़दम पीछ हटते ही दुश्मन की ओर से एक नई मांग सामने आ जाती है। एसे में पीछे हटने से बेहतर यह है कि उसके मुक़ाबले में डट जाया जाए।
यही कारण है कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई हमेशा ही प्रतिरोध पर बल देते आए हैं। वे प्रतिरोध को हर राष्ट्र की स्वभाविक प्रतिक्रिया मानते हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि किसी भी देश के लिए बहुत ही शर्म की बात है कि उस देश के अधिकारी दुश्मन की धमकियों से डर जाएं। दुश्मन से डरकर एक प्रकार से हम उसने लिए दरवाज़ा खोल रहे हैं। हमें शत्रु के मुक़ाबले में हमेशा प्रतिरोध करना चाहिए क्योंकि उससे डरने के परिणाम में नुक़सान हमारा ही होगा।
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