Feb २५, २०२४ १७:२३ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद खामेनेई उन प्रमुख हस्तियों में से एक हैं जो हमेशा चुनावों में लोगों की मज़बूत भागीदारी की आवश्यकता पर ज़ोर देते रहे हैं।

यहां पर यह सवाल होता है कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता चुनावों में मज़बूत भागीदारी की आवश्यकता पर जोर क्यों देते हैं? इसके जवाब में यह कहा जा सकता है कि यह मुद्दा ज्यादातर भागीदारी और बढ़चढ़कर चुनावों में भाग लेने पर उनके दृष्टिकोण और नज़रिए पर निर्भर है।

सुप्रीम लीडर भागीदारी को लोगों का अधिकार और कर्तव्य दोनों ही मानते हैं। इस संबंध में अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि लोगों की उपस्थिति, शब्द के शाब्दिक व वास्तविक अर्थ में आवश्यक है, यानी इसका मतलब यह है कि चुनावों में जनता की भागीदारी, लोगों का कर्तव्य भी है और लोगों का अधिकार भी है।

चुनाव में भाग लेना सिर्फ एक कर्तव्य ही नहीं है, यह हक़ीक़त है कि यह आपका अधिकार है, यह लोगों का अधिकार है कि वे उस व्यक्ति को चुनें जो वे उनके लिए क़ानून बनाना चाहते हैं या क़ानून लागू करना चाहते हैं या नेता के बारे में राय देना चाहते हैं या विशेषज्ञ परिषद के माध्यम से नेता चुनना चाहते हैं।

चुनाव, लोगों का अधिकार है और इस मैदान में उन्हें उतरना चाहिए और अपने अधिकार का उपयोग करना चाहिए।'

स्वाभाविक रूप से जब चुनावों में भाग लेने के बारे में ऐसा दृष्टिकोण हो तो यह चुनावों को दिए जाने वाले महत्व की वजह से है। अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई का चुनावों के बारे में राजनीतिक दृष्टिकोण है और उनका मानना ​​है कि चुनावों के कई राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक परिणाम होते हैं।

चुनावों पर ईरान के सर्वोच्च नेता का राजनीतिक दृष्टिकोण उनके द्वारा की गई व्याख्याओं को बयान करता है कि चुनाव देश की प्रबंधन प्रणाली में नया ख़ून भरता है, चुनाव राष्ट्रीय शक्ति का प्रतीक और भविष्य निर्धारण का समय है।

सुप्रीम लीडर की इन व्याख्याओं और बयानों से पता चलता है कि चुनाव देश के भाग्य पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव डाल सकते हैं।

मज़बूत प्रतिनिधियों को चुनने से एक मजबूत और कुशल संसद का निर्माण होगा और ऐसी संसद, जनता और देश के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों को हल करने में अधिक सफल रहेगी।

कमजोर प्रतिनिधियों को चुनने के विपरीत परिणाम भी सामने आते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि चुनाव संस्था ही कमज़ोर हो जाती है।

भागीदारी जितनी कम होगी, ख़तरे उतने ही अधिक होंगे। इसीलिए सुप्रीम लीडर अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई चुनावों को एक मज़ूत साधन के रूप में मानते हैं और कहते हैं कि चुनाव एक निवारक शक्ति है क्योंकि यह दुश्मन की आक्रामकताओं और हस्तक्षेप को रोकता है। (AK)

 

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें। 

टैग्स