एक क़ुरआनी रहस्य की समझ, ईरानियों की कामयाबी का राज़ है
पवित्र नगर मशहद में शहीद राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार में दसियों लाख ईरानियों की उपस्थिति
पार्सटुडे- दुनिया में शक्ति का संतुलन हमेशा विदित में बड़ी शक्तियों के पास और उनके पक्ष में नहीं रहता है बल्कि वह बदलता रहता है और इसके लिए प्रतिरोध ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर ईरानी राष्ट्र ने प्रतिरोध किया और वह कामयाब हो गया। इस्लामी क्रांति में और क्रांति के बाद भी।
महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे फ़ुस्सेलत की 30वीं आयत में कहता है
बेशक जिन लोगों ने कहा कि अल्लाह हमारा पालनहार है और उस पर वे डटे रहे, फ़रिश्ते उन पर नाज़िल होते हैं और कहते हैं कि न डरो और न दुःखो हो और तुम्हें वह जन्नत मुबारक हो जिसका तुमसे वादा किया गया है।
यहां हम एक नज़र डालते हैं उस व्याख्या पर जिसे ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता इमाम ख़ामेनेई ने इस आयत के संबंध में किया है और उन्होंने ईरानी समाज को मिसाल के तौर पर बयान किया है।
अल्लाह की इबादत
रोज़मर्रा की घटनाओं के साथ लगातार हमारी ज़िन्दगी ख़त्म हो रही और गुज़र रही है। इस ख़त्म होने और गुज़रने का हिसाब- किताब किया जाना चाहिये। सही संसाधनों से इसका हिसाब- किताब किया जा सकता है वरना इंसान ख़त्म हो जायेगा। संभव है कि इंसान माद्दी और भौतिक दृष्टि से सेहतमंद हो मगर अगर वह हिसाब -किताब के बारे में नहीं सोचेगा तो आध्यात्मिक दृष्टि से वह ख़त्म हो जायेगा। रब्बोनल्लाह यानी महान ईश्वर के मुक़ाबले में बंदगी को स्वीकार करना और उसके सामने नतमस्तक होना। यह बहुत बड़ी चीज़ है मगर काफ़ी नहीं है।
प्रतिरोध
अतः महान ईश्वर कहता है «ثمّ استقاموا»؛ फिर उस पर डटे व बने रहे। यह चीज़ है जो फ़रिश्तों के नाज़िल होने का का कारण बनती है वरना एक समय में सही व ठीक होने पर इंसान पर फ़रिश्ते नाज़िल नहीं होते हैं। कहना आसान व सरल है अमल करना कठिन है। उस अमल को जारी रखना उससे भी कठिन है। कुछ लोग केवल कहते हैं, कुछ लोग इस कही हुई चीज़ को अपने अमल से दिखाते हैं मगर दुनिया की घटनाओं के मुकाबले में, तूफ़ानों के मुकाबले में, मज़ाक़ बनाये जाने के मुक़ाबले में, दूसरों के तानों और कटाक्ष के मुकाबले में और नाइंसाफ़ी की दुश्मनी को वे बर्दाश्त व सहन नहीं कर सकते। अतः वे रुकते नहीं हैं। कुछ इस को भी काफ़ी नहीं समझते हैं कि रुक जायें और पीछे हट जायें।
जो इंसान दुःखी नहीं है
जब इंसान दुःखी नहीं होता है तो उसका कारण यह है कि उसका कुछ हाथ से जाता या नुकसान नहीं होता है। पहली बात तो यह है कि इस रास्ते में सफलतायें बहुत हैं और दूसरी बात यह कि इंसान का कुछ नुकसान भी हो जाता है तो चूंकि वह ईश्वरीय दायित्वों के निर्वाह के मार्ग में होता है इसलिए वह संतुष्ट व आश्वस्त होता है जैसे शहीदों के परिजन जिनके बेटे शहीद हो गये उन्हें दुःख पहुंचा है इसके बावजूद उनके दिल ख़ुश व प्रसन्न हैं।
ईरानी प्रतिरोध और प्रतिरोध का मीठा फ़ल
दुनिया में शक्ति का संतुलन हमेशा विदित में बड़ी शक्तियों के पास और उनके पक्ष में नहीं होता है बल्कि वह बदलता रहता है और इसके लिए प्रतिरोध ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर ईरानी राष्ट्र ने प्रतिरोध किया और वह कामयाब हो गया। इस्लामी क्रांति में और उस जंग में भी जिसे सद्दाम ने अमेरिका के समर्थन से आरंभ किया था और जंग के बाद के कालों में भी। आज भी ईरान डटा हुआ है और प्रतिरोध कर रहा है और कामयाब हो रहा है। यह दबाव, प्रचारिक दबाव, राजनीतिक और आर्थिक दबाव, विश्वासघात और दुश्मनों के माध्यम से देश के भीतर तुच्छ तरीके से घुसपैठ की वजह यह है कि ईरानी राष्ट्र ने पवित्र कुरआन की आयत के अनुसार कहा है कि हमारा पालनहार अल्लाह है और फ़िर उस पर बना और डटा रहा। यह हक़, वैध और तार्कि बात है। अपने देश के मामलों को उसने अपने हाथ में ले लिया और दुश्मनों को बाहर निकाल दिया और अल्लाह के आदेश और धर्म पर भरोसा किया और बुलंद आवाज़ से एलान कर दिया है और उस पर मज़बूती से डटा हुआ है। आज ईरानियों के इसी प्रतिरोध की वजह से अमेरिका की शक्ति, रोब, धौंस, और दबदबा दुनिया के दूसरे राष्ट्रों की नज़रों से गिर गया है और उनमें साहस पैदा हो गया है। नतीजा यह हुआ है कि महान ईश्वर अपनी रहमत और बरकत नाज़िल कर रहा है जैसाकि हम देख रहे हैं कि ईरानी जवानों के दिलों में दुश्मन का भय व डर नहीं है।
अल्लाह ने निश्चित रूप से वादा किया है कि «انّ الّذین قالوا ربّنا اللَّه ثمّ استقاموا تتنزّل علیهم الملائکة الّا تخافوا و لاتحزنوا»؛
अल्लाह की राह में प्रतिरोध का नतीजा यह है कि महान ईश्वर एक इंसान और एक समाज से भय और ग़म को खत्म कर देता है और कामयाबियां उसे नसीब करता है। यह अल्लाह की राह है। अल्लाह की राह का मतलब केवल इबादत करना और ख़ज़ाने में बैठना नहीं है। अल्लाह की राह यानी मानव समाज को कल्याण व मुक्ति तक पहुंचाना। ईरानी राष्ट्र ने इस रास्ते का चयन किया है यानी न्याय का रास्ता, इंसाफ़ का रास्ता, अल्लाह की इबादत का रास्ता, इंसानों की बराबरी का रास्ता, इंसानों का एक दूसरे से भाईचारे का रास्ता, अच्छे अख़लाक़ का रास्ता, मानवीय फ़ज़ीलत का रास्ता और इस रास्ते में उनके आग्रह भी किया है और इस रास्ते की कठिनाइयों का भी मुकाबला किया है और वह उससे नहीं डरा है। निश्चितरूप से महान ईश्वर प्रतिरोध का मीठा फ़ल उसे देगा। MM
कीवर्ड्सः प्रतिरोध क्या है, क़ुरआन में प्रतिरोध क्या है? इमाम ख़ामेनेई ईरान के नेता, ईरान किस तरह कामयाब हो गया।
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