ईरान अमेरिका के साथ सीधे बातचीत क्यों नहीं चाहता?
(last modified Tue, 08 Apr 2025 11:30:43 GMT )
Apr ०८, २०२५ १७:०० Asia/Kolkata
  • ईरान अमेरिका के साथ सीधे बातचीत क्यों नहीं चाहता?
    ईरान अमेरिका के साथ सीधे बातचीत क्यों नहीं चाहता?

पार्सटुडे - ईरान को हालिया दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प से एक पत्र मिला जिसमें वार्ता की मेज पर आने के लिए नई शर्तें शामिल थीं।

हालिया दिनों में, तेहरान और वाशिंगटन के बीच ख़तों के आदान प्रदान की चर्चा, वैश्विक राजनीतिक और मीडिया हलकों में सबसे गर्म विषयों में से एक रही है।

इस पत्र में डोनल्ड ट्रम्प ने वार्ता की मेज पर आने के लिए नई शर्तों की घोषणा की और ईरानी विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची के अनुसार, तेहरान की नीति अभी भी अधिकतम दबाव की स्थिति में सीधी वार्ता का विरोध करने पर आधारित है।

पार्सटुडे के इस लेख में वर्तमान परिस्थितियों में ईरान द्वारा अमेरिका के साथ सीधी बातचीत न करने के कारणों पर चर्चा की गई है।

 

अविश्वास

 

ईरान में अमेरिकी हस्तक्षेपों के इतिहास (जैसे 1953 का तख्तापलट और पहलवी शासन को समर्थन) साथ ही साथ 1979 की क्रांति के बाद की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों के कारण ईरान में अमेरिका के प्रति संरचनात्मक अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई है।

ईरान के नज़रिए से, अमेरिका सदैव ईरान में "शासन परिवर्तन" चाहता रहा है। डोनल्ड ट्रम्प जैसे अमेरिकी अधिकारियों के बयानों के बाद यह रवैया और तेज़ हो गया है।

 

अमेरिका की अधिकतम दबाव की रणनीति

 

ट्रम्प युग में, अमेरिकी नीति, और कुछ हद तक जो बाइडेन के शासन काल में, ईरान को अमेरिकी मांगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए व्यापक आर्थिक प्रतिबंधों पर आधारित रही है।

ईरान इस नज़रिए को "धमकाने" वाला क़रार देता और मानता है कि दबाव में बातचीत करने से एकतरफा रियायतों के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा।

इस बारे में, ईरान के संसद सभापति मुहम्मद बाक़र क़ालीबाफ़ ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रम्प के ख़त में प्रतिबंधों को हटाने के संबंध में कोई गंभीर प्रगति शामिल नहीं है। उन्होंने कहा: अमेरिका का व्यवहार धमकाने वाला है।

 

जेसीपीओए का अनुभव

 

जेसीपीओए से ट्रम्प का हटना एक और वजह है जो ईरान को अमेरिका के साथ सीधी वार्ता में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहा है।

क्योंकि इस समझौते का, जो ईरान, सुरक्षा परिषद की पांच शक्तियों और जर्मनी के कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम था और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 ने इसकी पुष्टि भी की थी, ट्रम्प द्वारा उल्लंघन किया गया।

तेहरान विश्वविद्यालय में अमेरिकी अध्ययन के प्रोफेसर फ़ुआद इज़दी कहते हैं: ईरान को अमेरिका के साथ बातचीत करने का सफल अनुभव नहीं रहा है और जेसीपीओए के रूप में ये वार्ता दो साल तक चली और एक समझौता हुआ, लेकिन अंत में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से पूरा नहीं किया और फिर ट्रम्प आए और वह समझौते से निकल गए।

 

आतंकवाद से लड़ने वाले ईरानी कमांडर की हत्या

 

ट्रम्प के आदेश पर आतंकवाद से लड़ने वाले ईरानी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या और ईरान पर सैन्य हमले की धमकी, अन्य मुद्दे हैं जो ईरान को अमेरिका के साथ सीधी वार्ता में शामिल होने के लिए इच्छुक बना रहे हैं। (AK)

 

कीवर्ड्ज़: परमाणु वार्ता, जेसीपीओए, संसद सभापति

 

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