इज़राइल के आक्रमण में शहीद मिर्ज़ाई जैसे अपनी तक़दीर से वाक़िफ़ थे
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पार्स टुडे – शहीद हमीदरज़ा मिर्ज़ाई, एक ऐसा सैनिक जिसने अपने जीवन के अंतिम दिनों में ऐसा व्यवहार दिखाया जैसे वह अपनी तक़दीर से पहले से वाकिफ़ था।
(last modified 2025-10-14T13:13:10+00:00 )
Oct १३, २०२५ १६:२२ Asia/Kolkata
  • शहीद हमीदरज़ा मिर्ज़ाई
    शहीद हमीदरज़ा मिर्ज़ाई

पार्स टुडे – शहीद हमीदरज़ा मिर्ज़ाई, एक ऐसा सैनिक जिसने अपने जीवन के अंतिम दिनों में ऐसा व्यवहार दिखाया जैसे वह अपनी तक़दीर से पहले से वाकिफ़ था।

शहादत का शर्बत पीने की याद से लेकर शहिदा 13 नाम की गली में आकस्मिक तस्वीर तक सब कुछ मानो ऐसी पहेलियों की तरह था जो धीरे-धीरे एक साथ रखी गईं ताकि एक शहीद की कहानी पूरी हो सके, एक ऐसा शहीद जो खुद अस्पताल गया लेकिन फिर कभी वापस नहीं आया।

 

पार्स टुडे के अनुसार शहीद की बहन समिया मिर्ज़ाई अपने भाई के जीवन के अंतिम दिनों के बारे में कहती हैं:

 

हमीदरज़ा केवल 23 साल का था। उसने आर्ट स्कूल में लकड़ी की आंतरिक सजावट पढ़ी थी और उसकी सेना की सेवा के कुछ महीने बाकी थे। युद्ध से पहले वह कभी-कभी पोस्ट पर ज्यों-त्यों जाता था लेकिन जब से युद्ध शुरू हुआ उसका व्यवहार हमारे लिए बहुत अजीब तरह से बदल गया और वह समय पर और अनुशासन के साथ जाने लगा। जब हमने उसे कहा कि अब युद्ध हो गया है तो कुछ दिन छुट्टी ले ले वह कहता: अब परिस्थितियाँ अलग हैं। अगर मैं अब नहीं गया तो कब जाऊँ?’ हम उसकी चिंता करते थे लेकिन वह पहले से भी अधिक दृढ़ निश्चय के साथ अपनी सेवा स्थल पर उपस्थित रहता।

 

समिया हमीदरज़ा के परिवार के साथ उसके अंतिम दिनों के बारे में बताती हैं:

26 खुरदाद से 2 तीर तक हम शहियार में किसी रिश्तेदार के बगीचे गए थे। हमीदरज़ा हर दिन सेना की पोस्ट के बाद वहां आता और सुबह जल्दी वापस अपनी सेवा स्थल लौट जाता था। रविवार की रात उसने माँ से कहा कि सुबह 5 बजे उसे जगाए। माँ कहती हैं कि उस दिन उसे बहुत नींद थी लेकिन वह ज़बरदस्ती उठकर चला गया। 10-30 बजे जब एविन जेल पर हमला हुआ मेरा भाई घायल हुआ और 2-30 बजे शहीद चमरान अस्पताल में पहुँचाया गया। रोचक बात यह है कि अस्पताल के गार्ड ने भी कहा कि वह अपने पैरों पर आया, पिता का नंबर दिया और कहा कि उसकी सेना की वर्दी उधार है और उसे दोस्त को लौटानी है लेकिन क्योंकि उसके फेफड़ों में गंभीर जलन और संक्रमण हो गया था 15 दिन बाद, 17 तीर को वह एविन का तेरहवां शहीद सैनिक बनकर शहीद हो गया।

 

मज़ाक जो गंभीर हो गया

 

बहन अपने भाई की चंचलता के बारे में आँसुओं के साथ बताती हैं: एक दिन जब वह जेल से थका हुआ बगीचे लौट आया था हमने उसके लिए शर्बत तैयार किया था। पीते समय उसने अपने चचेरे भाई को शर्बत ऑफ़र किया और मज़ाक में कहा: यह शर्बत शहादत का है लीजिए! शायद हमारी किस्मत में से किसी का है। अब वह मज़ाक गंभीर हो गया है। यह युवा शहीद शहरक वलीअस्र(अ.ज.) मोहल्ले के सैयद अल-शहिदा युवा मंडल का सदस्य था। उसकी बहन कहती हैं: हमीदरज़ा इस साल पहले दिन से ही मोहर्रम में अस्पताल में भर्ती था और फिर शहीद हो गया लेकिन ईमानदारी से कहा जाए तो मंडल के बच्चे उसकी अंतिम यात्रा में पूरे ज़ोर शोर से शामिल हुए।

 

आखिरी फोटो – इमाम रज़ा (अ.) के ज़ायर

 

इस साल उर्दीबह्त में शहीद हमीदरज़ा मिर्ज़ाई अपने दोस्तों के साथ मशहद गया था और उसके अंतिम सफर की कुछ तस्वीरें परिवार के लिए स्मृति स्वरूप बची हैं जो उनके लिए सांत्वना हैं। शहीद की बहन कहती हैं: “युद्ध से पहले हमारे कुछ रिश्तेदार 17 तीर को मशहद जाने वाले थे और उन्होंने हमें भी साथ जाने का प्रस्ताव दिया। हमीदरज़ा बहुत उत्सुक था। हम भी उसी दिन मशहद जाने की योजना बना रहे थे। मेरे भाई की शहादत ठीक उसी 17 तीर को हुई। हमीदरज़ा ज्यादा फोटो लेने वाला नहीं था लेकिन कुछ समय पहले वह अपने चचेरे भाइयों के साथ उत्तर की यात्रा पर गया था। उसी यात्रा में, जंगल के बीचों-बीच उसने एक सेल्फी ली जिसके पीछे ‘शहिदा 13 नाम की गली का बोर्ड था। बाद में हमें पता चला कि हमीदरज़ा एविन जेल का तेरहवां शहीद सैनिक था। मानो सब कुछ पहले से ही तय था। MM