इस्राईल व सऊदी अरब से अरब संघ की सांठ-गांठ
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यमन में ईरान के हस्तक्षेप और तेहरान की ओर से परमाणु समझौते के क्रियान्वयन न किए जाने के अरब संघ के दावे को पूरी तरह से मूल्यहीन, निराधार और क़ानूनी दृष्टि से महत्वहीन बताया है।
बहराम क़ासेमी ने अरब संघ की चार पक्षीय समिति के इस बयान को परमाणु समझौते पर ईरान की कटिबद्धता के बारे में अनुचित हस्तक्षेप और भ्रम फैलाने वाला बताया और नसीहत की कि अरब संघ के सदस्य चार देशों सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात, बहरैन और मिस्र को दूसरों पर आरोप लगाने, क्षेत्र में संकट पैदा करने और ज़ायोनी शासन को ख़ुश करने के लिए अपनी निंदनीय कार्यवाहियों का क्रम समाप्त करना चाहिए। उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि ईरानोफ़ोबिया एक विफल नीति है, कहा कि ईरान क्षेत्र की शांति, सुरक्षा व स्थिरता के लिए सकारात्मक भूमिका निभा रहा है। सऊदी अरब के दबाव पर जारी होने वाला अरब संघ यह बयान, यमन समेत क्षेत्रीय संकटों को वार्ता के माध्यम से हल करने के बजाए सऊदी अरब की टकराव की नीति का सूचक है। सऊदी प्रशासन एेसी स्थिति में हर बैठक और प्लेटफ़ाॅर्म से ज़ायोनी शासन और अमरीका को ख़ुश करने के लिए ईरानोफ़ोबिया का राग अलाप रहा है कि जब इस त्रिकोण की नीतियों ने क्षेत्र की शांति व स्थिरता को ख़तरे में डाल दिया है।
सऊदी अरब ईरान पर यमन में हथियार भेजने का आरोप लगाता है जबकि वह फ़्रान्स, ब्रिटेन व अमरीका के हथियारों से यमन को युद्ध अपराध और मानवता विरोधी अपराधों के मंच में बदल चुका है। सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान की विवादित लंदन यात्रा और सऊदी अरब द्वारा यमन में मानव त्रासदी उत्पन्न करने के कारण उनकी यात्रा के भारी विरोध ने क्षेत्र में सऊदी अरब की वास्तविक नीतियों से पर्दा उठा दिया है। ईरानोफ़ोबिया का राग अलापने से सऊदी अरब और उसके पिछलग्गुओं के ख़िलाफ़ जनमत में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। ह्यूमन राइट्स वाॅच के एक अधिकारी ने कहा है कि यमन की जनता पर बमबारी और इस देश की जनता पर थोपी गई भुखमरी ने संसार को सऊदी अरब की सरकार का वास्तविक चेहरा दिखा दिया है। (HN)