पमराणु समझौते को बचाने के लिए यूरोप कितना गंभीर है?
यरोपीय संघ और उसके त्रिकोणीय सदस्यों ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने हमेशा ही परमाणु समझौते के समर्थन पर बल दिया है।
हालांकि 8 मई 2018 को अमरीका के इस समझौते से निकल जाने के बाद, इन यूरोपीय देशों ने इस समझौते को बचाने के लिए तरह तरह के वादे तो किए, लेकिन उन पर अमल में टालमटोल से काम लिया। यूरोपीय देशों के इस रवैये के कारण ईरान ने हाल ही में कड़ा रुख़ अपनाया और परमाणु समझौते के कुछ वादों पर अमल को रोक दिया, जिसके बाद इस समझौते को बचाने के लिए यूरोप के सामने एक गंभीर चुनौती है।
इस संदर्भ में यूरोपीय देशों के विदेशम मंत्रियों ने सोमवार को ब्रसेल्स में एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक के बाद, यूरोपीय संघ की विदेश मामलों की प्रभारी फ़ेडरिका मोगरेनि ने संयुक्त प्रेस कांफ़्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, इस बैठक में परमाणु समझौते में शामिल यूरोपीय देशों ने इंस्टैक्स के क्रियान्वयन पर विचार विमर्श किया और हमें उम्मीद है कि इस बैंकिंग ट्रांज़ैक्शन के तहत अगले कुछ हफ़्तों में हम पहला ट्रांज़ैक्शन करने में सफल हो जायेंगे।
मोगरेनि का कहना था कि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों का यह मानना है कि ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए। जब ईरान इस समझौते की पाबंदी करता रहेगा, यूरोपीय संघ इसका समर्थन जारी रखेगा।
यूरोपीय संघ की इस अधिकारी का यह बयान, दर्शाता है कि यूरोपीय देश परमाणु समझौते को बाक़ी रखने में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन अमरीका उन पर दबाव डालकर उन्हें इससे रोकना चाहता है।
दूसरे यह कि यूरोप ने अमरीका के विपरीत कभी यह दावा नहीं किया है कि ईरान परमाणु समझौते पर अमल नहीं कर रहा है, बल्कि उसका मानना है कि ईरान ने इस समझौते पर अमल करके काफ़ी हद तक क्षेत्रीय एवं विश्व स्तर पर तनाव को कम किया है। इसके बावजूद व्यवहारिक रूप से यूरोपीय देशों ने यह साबित किया है कि इस समझौते के बचाने के लिए वे किसी तरह का नुक़सान उठाने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसलिए अब अगर यूरोप परमाणु समझौते को बाक़ी रखने में वास्तविक दिलचस्पी रखता है तो उसे हर हालत में कुछ महत्वपूर्ण व्यवहारिक क़दम उठाना होंगे।