बैतुल मुक़द्दस आप्रेशन
(last modified Wed, 30 Sep 2020 13:05:12 GMT )
Sep ३०, २०२० १८:३५ Asia/Kolkata
  • बैतुल मुक़द्दस आप्रेशन

हमने बैतुल मुक़द्दस अभियान की उपलब्धियों व अंजाम के बारे में आपको बताया था।

बैतुल मुक़द्दस अभियान १९८१ के सितंबर के अंतिम दिनों में ईरान की अतिग्रहित भूमि को आज़ाद कराने के लिए शुरु हुए अभियान की कड़ी था।

इस्लामी गणतंत्र ईरान पर जंग थोपने के पीछे अमरीका और इराक़ के लक्ष्य के मद्देनज़र, उस दौर में जंग इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को गिराने या इस व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए ईरान पर राजनैतिक व सैन्य दबाव के हथकंडे के रूप में देखी जाती थी।

इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में क्रान्तिकारी फ़ोर्सेज़ की क्रान्ति विरोधी ताक़ती की सभी साज़िशों पर जीत और इसके सैन्य मोर्चे पर स्पष्ट प्रभाव से हालात की धारा का रुख़ अबादान की नाकाबंदी टूटने के साथ ही ईरान के हित में मुड़े गया।

सैन्य राजनैतिक संतुलन के ईरान के हित में बदलने और नई परिस्थिति के पैदा होने से जंग का स्वरूप ही बदल गया। बदलाव से पहले तक ईरान इराक़ी सेना के अचानक हमलों के सामने रक्षात्मक मुद्रा में रहता था और उसकी भूमि का एक भाग बासी दुश्मन के अतिग्रहण में।

राजनैतिक टीकाकारों, पर्यवेक्षकों और देशों के सरकारी अधिकारियों की जंग में नई प्रक्रिया के जन्म लेने के संबंध में समीक्षाएं ये दर्शाती थीं कि वे बदले हुई स्थिति के संबंध में आश्चर्यचकित होने के साथ साथ चिंतित भी थे।

फ़ायनेन्शल टाइम्ज़ ने भी लिखा था : ख़ुर्रमशहर जंग जीतने के समान है और ख़र्रमशहर एक ओर इराक़ की जीत का एकमात्र वास्तविक प्रतीक तो दूसरी ओर ईरानी सेना के अदम्य प्रतिरोध का भी प्रतीक है।

बैतुल मुक़द्दस अभियान में इराक़ी सेना की हार से उत्पन्न स्थिति के बारे में होने वाली समीक्षाओं में इराक़ी सेना का अपमान, इराक़ियों की प्रेरण का सबसे अहम तत्व हाथ से चला गया। इराक़ के तेल के क्षेत्र ईरान के निशाने पर और ईरान में इराक़ की भूमि और सीमा की ओर प्रगति की क्षमता जैसे बिन्दुओं की ओर इशारा किया गया।

अमरीका फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों ख़ास तौर पर सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब इमारात और क़तर को चेतावनियां देता था और वह चेतावनी यह थी कि ईरान से इराक़ की हार अमरीकी हित में नहीं है और हम इसे रोकने के लिए कार्यवाही करेंगे। वास्वत में फ़ार्स खाड़ी के दक्षिणी छोर के अरब देशों को एक तरह की तसल्ली दी जाती थी कि अमरीका जंग में ईरान को निश्चित जीत हासिल करने नहीं देगा।

मई १९८२ में ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के कुछ दिन बाद अमरीकियों ने प्रतीकात्मक क़दम के तहत इराक़ को ६ ट्रांसपोर्ट विमान ख़रीदने का लाइसेंस जारी किया।

हुसैन कामिल का कहना था कि अमरीका के इस वादे को सुनने के बाद, सद्दाम बहुत ख़ुश था और उसका मनोबल बढ़ गया। उसने कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो पूरी इराक़ी सेना की कुवैत हासिल करने के लिए बलि दे दूंगा।