अमरीका ने ईरान के ख़िलाफ़ अधिकतम दबाव की नीति अपनाई तो उसे केवल शिकस्त नहीं शर्मनाक हार का सामना करना पड़ाः ज़रीफ़
(last modified Sat, 16 Jan 2021 14:10:23 GMT )
Jan १६, २०२१ १९:४० Asia/Kolkata
  • अमरीका ने ईरान के ख़िलाफ़ अधिकतम दबाव की नीति अपनाई तो उसे केवल शिकस्त नहीं शर्मनाक हार का सामना करना पड़ाः ज़रीफ़

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आठ जनवरी के अपने भाषण में कहा था कि हम आग्रह नहीं कर रहे हैं और हमें जल्दी नहीं है कि अमेरिका परमाणु समझौते में वापस आ जाये।

परमाणु समझौते में अमेरिकी दायित्वों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च नेता ने कहा था कि हमारी तार्किक मांग यह है कि प्रतिबंधों को समाप्त किया जाना चाहिये। यह ईरानी राष्ट्र का हड़पा गया अधिकार है।

इसी संबंध में कुछ प्रश्न ईरान के विदेशमंत्री मोहम्मद जवाब ज़रीफ़ के सामने रखे गये जिसका उन्होंने जवाब दिया है।

सवालः पश्चिम विशेषकर अमेरिकी सरकार का क्यों दायित्व यह है कि वह ईरानी राष्ट्र के खिलाफ समस्त प्रतिबंधों को समाप्त करे? क्यों प्रतिबंधों का समाप्त होना परमाणु समझौते में अमरीका की वापसी पर प्राथमिकता रखता है?

जवाबः अमेरिका जब परमाणु समझौते से निकल गया तो पहले के जितने प्रतिबंध थे उन्हें दोबारा ईरान पर थोप दिया गया और उसे कठिन से कठिन बनाया गया। अतः वर्तमान स्थिति में केवल परमाणु समझौते में वापस आना काफी नहीं है। परमाणु समझौते का उद्देश्य ईरानी राष्ट्र के खिलाफ़ लागू प्रतिबंधों को समाप्त करना था। ट्रंप ने इन चार वर्षों में परमाणु समझौते को खत्म करने का पूरा प्रयास किया और नये- नये प्रतिबंध ईरान पर लगाये। अगर अमेरिका परमाणु समझौते में लौट आता है और समस्त प्रतिबंध यथावत बाकी रहते हैं तो इसका फायदा क्या होगा? हालांकि ओबामा ने भी अपनी बहुत सी प्रतिबद्धताओं पर अमल नहीं किया परंतु गत चार वर्षों में ट्रंप का लक्ष्य परमाणु समझौते को खत्म करना था। अमेरिका को चाहिये कि सबसे पहले वह परमाणु समझौते में अपने वचनों का पालन करे, परमाणु समझौते में वापस आना दूसरी बात है। अस्ली विषय यह है कि दूसरे देशों के साथ हमारे व्यापारिक संबंध बहाल हों।

सवालः अमेरिका और यूरोप को चाहिये कि प्रतिबंधों को समाप्त करने की दिशा में व्यवहारिक क़दम उठायें। यह कौन से कदम होने चाहिये? परमाणु समझौते से अमेरिका के निकल जाने से क्या नुक़सान हुए और उनकी भरपाई कैसे संभव है?

जवाबः व्यवहारिक क़दम यह है कि दुनिया के दूसरे देशों के साथ ईरान के व्यापारिक संबंधों को सामान्य बनाया जाये। ईरानी तेल की बिक्री के संबंध में जो रुकावटें उत्पन्न की गयी हैं उन्हें समाप्त किया जाना चाहिये। ईरानी तेल के खरीदार हैं परंतु अमेरिका ने ताक़त से इस दिशा में रुकावट उत्पन्न कर रखी है। इन रुकावटों को समाप्त किया जाना चाहिये।

सवालः प्रतिबद्धता के बदले प्रतिबद्धता से क्या तात्पर्य है?

जवाबः इसका मतलब यह है कि जब सामने वाला पक्ष प्रतिबद्धता का पालन तो ईरान भी अपनी प्रतिबद्धता का पालन करेगा। यह अमेरिका है जो परमाणु समझौते से निकला है उसे चाहिये कि वह अपने वचनों का पालन करे। जैसा कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा है कि परमाणु समझौते में लौट आना महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण परमाणु समझौते में दिए गए वचनों का पालन है। गत चार वर्षों के दौरान यह बात एक बार फिर सिद्ध हो गयी कि ईरान पर दबाव डाल कर उसे झुकाया नहीं जा सकता। अमेरिकी सोचते थे कि ईरान पर जो दबाव पहले डाले गये थे वे काफी नहीं हैं इसलिए उन्होंने नये दबाव का नाम अधिकतम दबाव रखा और वे सोच रहे थे कि ईरान पर अधिक से अधिक दबाव डाला जाये तो इसका परिणाम निकलेगा। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन का मानना था कि ईरान इस्लामी क्रांति की सफलता की 40वीं वर्षगांठ नहीं मना पायेगा। सबने देख लिया कि ईरान ने न केवल 40वीं बल्कि 41वीं और 42वीं वर्षगांठ भी मना ली और भविष्य में भी इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ मनायेंगे। अब तक अमेरिका के 7 राष्ट्राध्यक्षों ने ईरान पर दबाव डालने की चेष्टा की परंतु उन्हें विफलता का मुंह देखना पड़ा। आज पूरी दुनिया कह रही है कि अधिक से अधिक दबाव डालने की नीति न केवल विफल हो गयी बल्कि बहुत ही अपमानजनक ढंग से विफल हो गयी।

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