इंसानों की बराबरी क़ुरान के अनुसार
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क़ुरआन मजीद, मार्गदर्शन की पुस्तक और मनुष्यों के जीवन का मार्गदर्शक, नैतिक शिक्षाओं से परिपूर्ण है जो व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
(last modified 2025-07-14T10:06:03+00:00 )
Jul १४, २०२५ १५:३३ Asia/Kolkata
  • इंसानों की बराबरी क़ुरान के अनुसार

क़ुरआन मजीद, मार्गदर्शन की पुस्तक और मनुष्यों के जीवन का मार्गदर्शक, नैतिक शिक्षाओं से परिपूर्ण है जो व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

ये शिक्षाएँ न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक हैं बल्कि एक स्वस्थ, न्यायपूर्ण और मानवीय समाज की नींव रखती हैं।

 

सामाजिक नैतिकता के संदर्भ में एक उल्लेखनीय आयत सूरये हुजुरात की आयत 13 है जो गहन और मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ समानता, पारस्परिक ज्ञान और मनुष्यों के वास्तविक मूल्य के मापदंड पर प्रकाश डालती है।

 

"يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَى وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا"

 

"हे लोगो! हमने तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें विभिन्न जातियों और क़बीलों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो।"

 

यह आयत सभी मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहती है: "हे लोगो, हमने तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया है," जो यह दर्शाता है कि सभी मनुष्य एक ही मूल और स्रोत से हैं और विभिन्न जातियों या राष्ट्रों के बीच कोई जन्मजात या स्वाभाविक अंतर नहीं है। इसलिए, नस्लीय या जातीय श्रेष्ठता का दावा निरर्थक है और सभी मनुष्य सृष्टि व पैदाइश में समान व बराबर हैं।

 

इसके बाद अल्लाह तआला ज़ोर देकर कहता है कि उसने मनुष्यों को "शुऊब व क़बाइल" यानी विभिन्न जातियों और कबीलों के रूप में बनाया। यह विविधता एक उद्देश्य के लिए है जिसकी ओर आयत इशारा करती है: "ले तआरफ़ू" यानी ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो और आपस में संबंध बनाओ। न कि झगड़ने और दुश्मनी करने के लिए बल्कि सहअस्तित्व, समझदारी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए।

 

यह आयत इस बात पर ज़ोर देती है कि जातीय और भाषाई अंतर का उद्देश्य पहचान और सहयोग के अवसर पैदा करना है, न कि श्रेष्ठता का दावा करना और पक्षपात फ़ैलाना। यानी सृष्टि की सुंदरता इन्हीं विविधताओं में है जो आपसी संवाद और विकास का कारण बनती हैं।

 

यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमें सभी मनुष्यों के साथ उनके बाहरी अंतरों से परे, सम्मान और भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए और दुश्मनी व भेदभाव के बजाय समझदारी और प्रेम को अपनाना चाहिए। MM