जीवन क़ुरान के नैतिक सिद्धांतों की छत्रछाया में बेहतर है
क़ुरान करीम की स्पष्ट आयतों में, सूरह नहल की आयत नंबर 90 एक चमकते हीरे की तरह है, जो संक्षिप्त और सटीक भाषा में नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के बुनियादी सिद्धांतों को स्पष्ट करती है।
यह आयत, इंसाफ़, एहसान और रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यवहार की दावत देती है और बुराई, अनुचित कार्यों और अत्याचार से मना करती है और वह इंसानों को खुशहाली और मुक्ति का रास्ता दिखाती है।
"बेशक अल्लाह इंसाफ़ से काम लेने और एहसान करने और रिश्तेदारों को देने का हुक्म देता है और बदकारी, बुरे कामों और ज़ुल्म से मना करता है। वह तुम्हारी नसीहत करता है ताकि तुम समझो।"
इस आयत में पहला हुक्म "इंसाफ़" व न्याय का है। इंसाफ़ हर स्वास्थ और जीवंत समाज की बुनियाद है। इंसाफ़ का मतलब है हर काम में न्याय, चाहे वह फैसले हों या सामाजिक और आर्थिक रिश्ते। वह समाज जहाँ इंसाफ़ क़ायम हो, वहाँ ज़ुल्म और नाइंसाफी से मुक्ति मिलती है और हर व्यक्ति को बराबर का हक़ मिलता है।
इंसाफ़ के बाद, अल्लाह "एहसान" व भलाई का हुक्म देता है। एहसान, इंसाफ से भी ऊपर का दर्जा है। एहसान का मतलब है दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, ज़रूरतमंदों की मदद करना, लोगों की ग़लतियों को माफ़ करना और हर संभव भलाई का काम करना। एहसान समाज में एकता और सहानुभूति की भावना को मज़बूत करता है, जिससे लोग एक-दूसरे के प्रति ज़्यादा ज़िम्मेदारी महसूस करते हैं।
तीसरा हुक्म "ऐताए ज़िल-कुरबा" अर्थात रिश्तेदारों को देना है। यह हुक्म रिश्तों को निभाने और पारिवारिक संबंधों को मज़बूत रखने पर ज़ोर देता है। इस्लाम परिवार को समाज की बुनियाद मानता है और मानता है कि अगर पारिवारिक रिश्ते मज़बूत होंगे, तो समाज भी ज़्यादा मज़बूत और स्थिर होगा।
इन तीन हुक्मों के विपरीत अल्लाह तीन चीज़ों से मना करता है: "फहशा यानी बुराई व अश्लीलता, मुन्कर यानी बुरे काम और बग़ी अर्थात ज़ुल्म"। फहशा यानी गंदे और नापसंदीदा काम, मुन्कर यानी वे काम जिन्हें शरीयत और अक़्ल बुरा मानती है और बग़ी यानी दूसरों पर ज़ुल्म और अत्याचार करना। mm