लोगों के साथ नरमी और कोमलता के साथ व्यवहार करना
सूरे आले-ए-इमरान की आयत पैग़म्बरे इस्लाम के नैतिक आचरण का उल्लेख करते हुए हमें सिखाती है कि दया, क्षमा और परामर्श, दिलों को जोड़ने की मुख्य कुंजी और मानवीय संबंधों में सफ़लता का रहस्य हैं।
ऐसी दुनिया में जहां अक्सर जल्दबाज़ी और कठोरता होती है, नरमी और शांत भाषण मूल्यवान गुण हैं। ये दो विशेषताएं न केवल व्यक्तिगत परिपक्वता और समझ को दर्शाती हैं बल्कि मानवीय संबंधों में बंद दरवाज़ों को खोलने की कुंजी भी हैं। क़ुरआन में भी इस गुण का उल्लेख किया गया है:
अल्लाह सूरे आल-ए-इम्रान की आयत नंबर 159 में फ़रमाता हैः "فَبِمَا رَحْمَةٍ مِنَ اللَّهِ لِنْتَ لَهُمْ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوا مِنْ حَوْلِكَ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِي الْأَمْرِفَإِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِينَ
"अल्लाह की दया से तुम उनके प्रति नर्म हो गए और यदि तुम कठोर हृदय व रूखे होते तो वे तुम्हारे आसपास से चले जाते। अतः उन्हें क्षमा करो, उनके लिए माफ़ी माँगो और उनसे मामलों में सलाह लो। फ़िर जब निश्चय और पक्का इरादा कर लो तो अल्लाह पर भरोसा रखो। निस्संदेह अल्लाह भरोसा करने वालों से प्यार करता व उन्हें दोस्त रखता है।"
यह आयत पैगंबरे इस्लाम को कोमलता, क्षमा और सामूहिक परामर्श का मार्ग दिखाती है जो सफ़ल नेतृत्व और सामाजिक एकता का आधार है। इसमें दृढ़ निर्णय के बाद अल्लाह पर भरोसा का संदेश भी निहित है।
इस आयत के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं
नर्मी और दया अल्लाह की रहमत है, यह गुण मनुष्य को अपने अंदर विकसित करना चाहिए।
कठोरता और निष्ठुरता लोगों को दूर करती है, यह उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधक है।
क्षमा दिलों को जीतने का साधन है, दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करना चाहिए।
दूसरों के लिए माफ़ी माँगना हमदर्दी का प्रतीक है- लोगों की हिदायत और खुशहाली के लिए दुआ करनी चाहिए।
मशविरा सामूहिक बुद्धि का सम्मान है – निर्णय लेते समय दूसरों के विचारों से लाभ उठाना चाहिए।
यह आयत हमें सिखाती है कि व्यक्तिगत और सामाजिक सुख के लिए अच्छे आचरण को अपनाना चाहिए। हमें दूसरों के साथ नरमी और दया से पेश आना चाहिए, उनकी गलतियाँ माफ़ करनी चाहिए, उनके लिए दुआ करनी चाहिए और निर्णय लेने में उनकी राय को महत्व देना चाहिए। इन निर्देशों पर अमल करके ही एक स्वस्थ और समृद्ध समाज बना सकते हैं और अल्लाह की रज़ा हासिल कर सकते हैं। mm