इस्लाम धर्म में हराम का क्या अर्थ है?
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पार्स टुडे - हराम इस्लामी फ़िक़्ह की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है और उन कार्यों पर लागू होता है जो इस्लाम धर्म में निषिद्ध हैं और जिनके करने पर परलोक में दंड निर्धारित है।
(last modified 2025-09-08T13:58:29+00:00 )
Sep ०८, २०२५ १४:२९ Asia/Kolkata
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    इस्लाम धर्म में हराम का क्या अर्थ है?

पार्स टुडे - हराम इस्लामी फ़िक़्ह की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है और उन कार्यों पर लागू होता है जो इस्लाम धर्म में निषिद्ध हैं और जिनके करने पर परलोक में दंड निर्धारित है।

हराम, फ़िक़्ह इस्लामी के पाँच अमली हुक्मों (वाजिब, मुस्तहब, मुबाह, मकरूह और हराम) में से एक है, जिसमें निषिद्ध कार्यों का समूह शामिल होता है। यह हुक्म क़ुरआन और विभिन्न हदीसों में आया है और व्यक्तिगत, नैतिक, इबादती और सामाजिक व्यवहारों की एक विस्तृत श्रृंखला को अपने अंदर समेटे हुए है।

 

इस लेख में पार्स टुडे ने हराम की विभिन्न अवधारणाओं, उसकी किस्मों और यह कि क्यों कुछ कार्यों को हराम माना गया है, की समीक्षा की है।

 

हराम के अहकाम के स्रोत

 

इस्लामी फ़क़ीहों ने हराम के अहकाम क़ुरआन की आयतों और हदीसों से निकाले हैं। उदाहरण के लिए:

 

मुर्दार, सूअर और ख़ून खाना (सूरह माएदा)

 

रिबा/सूद (सूरह बक़रा)

 

जुआ और शराब, मज़ाक उड़ाना और ग़ीबत करना (सूरह हुजुरात)

 

ये सब स्पष्ट रूप से हराम घोषित किए गए हैं।

 

हराम की वजह और उसका रहस्य

 

विद्वानों का मानना है कि इस्लामी अहकाम वास्तविक मसालेह अर्थात भलाई और मफ़ासिद अर्थात बुराई पर आधारित हैं। हर वह काम जिसमें बड़ा नुकसान हो, वह हराम है, भले ही कुछ व्यक्तियों के लिए उसमें अस्थायी लाभ क्यों न हो। यह नुकसान शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकता है।

शहीद मुत्तहरी ने भी इस बात पर ज़ोर दिया है कि हराम का मापदंड केवल शारीरिक हानि नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक और रूहानी प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाता है।

 

हराम के प्रकार

 

हराम को कई मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है:

 

अक़ीदे से संबंधित हराम: जैसे शिर्क अर्थात अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराना, कुफ़्र, निफ़ाक़ अर्थात पाखंड, दीन में ग़ुलू अर्थात अत्यधिक अति करना अल्लाह की रहमत से मायूस होना।

 

इबादती हराम: जैसे नमाज़ छोड़ना, रियाकारी करना अर्थात दिखावा करना। मुर्तद हो जाता यानी धर्म को छोड़ देना या धर्म से पलट जाना, बुतों के लिए क़ुर्बानी देना, ग़ैर-अल्लाह को सज्दा करना।

 

अख़लाक़ी हराम: जैसे झूठ, ग़ीबत, बदग़ुमानी, ख़ियानत, मोमिनों को तकलीफ़ देना, तजस्सुस यानी दूसरों की जासूसी करना/ताक-झाँक करना), इफ़्तिरा यानी दूसरों पर झूठा इल्ज़ाम लगाना।

 

सामाजिक हराम: जैसे फ़साद (उपद्रव), ज़ुल्म, मस्जिदों की तबाही, हक़ को छुपाना।

 

इक़्तिसादी अर्थात आर्थिक हराम: जैसे रिश्वत, सूद, जुआ और दूसरों के माल को हड़प लेना, कम तौलना/कम नापना।

 

राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़ा हराम: जैसे जासूसी, राज़ फ़ाश करना, फूट डालना।

 

यौन संबंधी हराम: जैसे ज़िना व बलात्कार करना, लिवात व समलैंगिकता, महरम से शादी करना, अवैध संबंध स्थापित करना

 

खाद्य संबंधित हराम: जैसे सूअर का मांस, मुर्दार, ख़ून, शराब, और वह जानवर जिनका ज़िब्हा ग़ैर-अल्लाह के नाम पर किया गया हो।

 

हराम के क़ानून बनाए जाने की हिकमतें

 

हराम के क़ानून कई उद्देश्यों के दृष्टिगत बनाये गये हैं जैसे:

 

इंसान की सेहत की हिफ़ाज़त व सुरक्षा

 

समाज का संगठन और व्यवस्था

 

बंदों की आज़माइश व परीक्षा

 

गुनाहगारों की सज़ा

 

अल्लाह ने हर पाक और लाभकारी चीज़ को हलाल और हर गंदी व हानिकारक चीज़ को हराम किया है। कुछ हिकमतें इंसान को समझ में आती हैं लेकिन बहुत-सी हिकमतें छिपी रहती हैं, जिनके सामने इंसान को सर झुकाकर तस्लीम होना चाहिए।

 

आख़िरकार, इस्लाम में हराम केवल एक मनाही नहीं है, बल्कि इंसान की व्यक्तिगत और सामाजिक तरबियत का ज़रिया है, ताकि उनका जीवन स्वास्थ्य, न्याय और इलाही क़ुरबत यानी अल्लाह के निकटता की ओर मार्गदर्शित हो। mm