14 रमज़ानः लोक-परलोक में कौन लोग कामयाब हैं?
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सबसे पहले 14 रमज़ान की दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं। अनुवादः हे ईश्वर आज के दिन मेरी लड़खड़ाहटों पर मुझे दंडित न कर और मेरी भूलों और पापों को क्षमा कर दे और तुझे तेरी इज़्ज़त व महानता की कसम कि मुझे संकटों व कठिनाइयों में ग्रस्त न कर। हे मुसलमानों को प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Apr १६, २०२२ १४:२० Asia/Kolkata

सबसे पहले 14 रमज़ान की दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं। अनुवादः हे ईश्वर आज के दिन मेरी लड़खड़ाहटों पर मुझे दंडित न कर और मेरी भूलों और पापों को क्षमा कर दे और तुझे तेरी इज़्ज़त व महानता की कसम कि मुझे संकटों व कठिनाइयों में ग्रस्त न कर। हे मुसलमानों को प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले।

पवित्र रमज़ान महीने के 13 दिन बीत गये। यानी ईश्वरीय रहमतों के महीने के 13 दिन बीत गये। उस महीने के 13 दिन बीत गये जो एक हज़ार महीनों से बेहतर है। उस महीने के 13 दिन बीत गये जिसमें महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन नाज़िल किया है। पवित्र कुरआन वह किताब है जो हिदायत, मार्गदर्शक और प्रकाश है। कितने खुश नसीब वे लोग हैं जो पवित्र कुरआन की शिक्षाओं पर अमल करते हैं। कुरआन वह किताब है जिसने भी इस पर अमल किया लोक- परलोक में कामयाब हो गया।

रमज़ान का पवित्र महीना कुरआन की बहार है। रमज़ान का पवित्र महीना पवित्र कुरआन की तिलावत करने और उसमें चिंतन- मनन का बेहतरीन व स्वर्णिम अवसर है। रमज़ान का पवित्र महीना धैर्य की आदत डालने का बेहतरीन अवसर है। दूसरे शब्दों में रोज़ा रखने का एक फायदा यह है कि वह इंसान को धैर्यवान बनाता है। जो इंसान अधिक धैर्यवान बनना चाहता है उसे चाहिये कि वह रोज़ा रखे। रोज़ा रखने वाले के अंदर जहां धैर्य करने की आदत पैदा होती है वहीं उसके अंदर अपने नफ्स को नियंत्रित करने की क्षमता पैदा होती है।

रोज़ा इंसान को धैर्यवान बनाता है और धैर्य ईमान का महत्वपूर्ण स्तंभ है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार ईमान एक शरीर है जिसमें धैर्य सर का स्थान रखता है। पवित्र कुरआन में धैर्य के बारे में लगभग 70 आयतें हैं। इतनी अधिक संख्या में पवित्र कुरआन में केवल धैर्य के बारे में आयतों का होना इस बात का सूचक है कि इस्लाम में धैर्य बहुत महत्वपूर्ण है। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि वह धैर्य करने वालों के साथ है। यह इस बात का सूचक है कि महान ईश्वर न केवल धैर्य को पसंद करता है बल्कि धैर्यवान के साथ होने की बात भी करता है। उससे बड़ा भाग्यशाली कौन होगा जिसके साथ ईश्वर होने की बात कर रहा है।

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एक दृष्टि से धैर्य तीन प्रकार का होता है। एक धैर्य वह है जिसे इंसान इबादत को अंजाम देने में करता है। जैसे नमाज़, रोज़ा और दूसरा सब्र वह है जिसे इंसान हराम कार्यों को अंजाम न देने के लिए करता है मिसाल के तौर पर किसी इंसान का दिल नामहरम महिला को देखने के लिए कर रहा है लेकिन वह महान ईश्वर से भय के कारण नहीं देखता, या इसी प्रकार धैर्य का एक प्रकार यह है कि जब इंसान मुसीबतों पर धैर्य करता है। बहुत से लोग हैं जो मुसीबत पड़ने पर सीमा का ध्यान नहीं रखते और अनियंत्रित होकर एसी बात करने लगते हैं जो गुनाह होती हैं।

जो इंसान रोज़ा रखता है वह भूख- प्यास का अभ्यास करता है। यह वह महीना है जिसमें नैतिक गुण अंकुरित होते और परवान चढ़ते हैं। यह वह महीना है जिसमें इंसान के अंदर से बहुत सी बुराइयां कम व खत्म हो जाती हैं। महान ईश्वर अपने एक बड़े पैग़म्बर हज़रत मूसा को संबोधित करते हुए कहता है। हे मूसा जो मुझे दोस्त रखता है वह मुझे नहीं भूलेगा और जो मुझसे भलाई की उम्मीद रखता है वह अपनी मांग के लिए मुझसे आग्रह करेगा। हे मूसा मैं अपने बंदों से बेखबर नहीं हूं परंतु मैं चाहता हूं कि मेरे फरिश्ते मेरे बंदों की प्रार्थना करने की आवाज़ सुनें। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे ज़ोमर की 53वीं आयत में कहता है हे पैग़म्बर आप कह दीजिये कि मेरे जिन बंदों ने अपने आप पर ज़ुल्म किया वे अल्लाह की रहमत व दया से नाउम्मीद न हों। अल्लाह समस्त गुनाहों को माफ कर देगा। बेशक वह बहुत माफ करने वाला और दयावान है।

कभी- कभी ऐसा भी होता है कि दूसरे हम पर अत्याचार करते हैं और हम उसके जवाब में उसे बुरा- भला कहते हैं और अपनी ज़बान से अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह बहुत देखा गया है कि कुछ लोग अपने आपको नियंत्रित नहीं कर सकते और वे शीघ्र लड़ाई- झगड़े के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु इंसान रोज़ा रखकर अपने अंदर क्रोध जैसी बहुत सी आदतों को नियंत्रित कर सकता है। रोज़ेदार इंसान को चाहिये कि वह इस पवित्र महीने में स्वंय को सदगुणों से सुसज्जित करे और समस्त बुराइयों से स्वंय को दूर करे। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है। वैसे तो इंसान जब चाहे स्वंय को बुराइयों से पवित्र बना सकता है और सदगुणों से सुसज्जित कर सकता है परंतु इसके लिए रमज़ान महीने की बात ही कुछ और है।

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रोज़ेदार इंसान को चाहिये कि वह इस महीने में अपने को खुशअखलाक़ बनाने का अभ्यास व प्रयास करे। खुशअखलाक़ी वह चीज़ है जिसे बदअखलाक़ भी पसंद करता है। जिसका व्यवहार व स्वभाव अच्छा होता है उसे जब दूसरे देखते हैं तो उन पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मृदु स्वभाव शीतल जल की भांति है जो बहुत सी बुराइयों को खत्म कर देता है लोगों में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है और सकारात्मक ऊर्जा बहुत से सदगुणों को अस्तित्व में आने का कारण है।

रमज़ान महीने की एक बरकत यह है कि इस महीने में अपराध व गुनाह कम हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में रोज़ा रखने और बंदगी करने से समाज में गुनाह व पाप कम हो जाते हैं।

रमज़ान के पवित्र महीने के क्षणों का प्रयोग करके इंसान स्वंय को सदगुणों से सजाता -संवारता है। यह वह महीना है जिसमें इंसान अपने दिल को गुनाहों के ज़ंग से पाक बनाता है। महान ईश्वर ने तौबा का दरवाज़ा हमेशा खोल रखा है परंतु रमज़ान के पवित्र महीने में प्रायश्चित करने की बात ही कुछ और है। इंसान जितना अधिक अपने पालनहार से निकट होता है यानी उसके संबंध अपने पालनहार से जितना अधिक मज़बूत व प्रगाढ़ होते हैं वह अंदर से उतना ही मज़बूत होता है। जिस इंसान के संबंध अपने पालनहार से जितने अधिक मज़बूत होते हैं वह उतना ही अधिक गुनाहों से परहेज़ करता है। यही हाल इबादतों और नेक कार्यों को अंजाम देने में है।

रमज़ान का पवित्र महीना लोगों के दिलों पर ईश्वरीय प्रकाश की वर्षा करता है। लोगों के दिलों को नर्म करता है, लोगों को दयालु बनाता है। बहुत कठिन है कि जब इस प्रकार के  इंसान का सामना दूसरों से हो तो वह उनके साथ कड़ाई से पेश आये और उनके साथ बदअखलाक़ी करे।                     

कार्यक्रम के इस भाग में हम उन चीज़ों को बयान करना चाहते हैं जिनसे रोज़ा बातिल हो जाता है। खाना, पीना, ईश्वर, पैग़म्बर और इमामों पर झूठा आरोप लगाना। महिला से शारीरिक संबंध बनाना या कोई एसा कार्य करना जिससे इंसान का वीर्य निकल आये। इसी प्रकार कुछ दूसरी चीज़ें भी हैं जिनसे रोज़ा बातिल हो जाता है। जैसे रोज़ेदार इंसान सिर के बल डुबकी लगाये। इसी प्रकार अगर धुआं रोज़ेदार इंसान की हलक़ तक चला जाये तो रोज़ा बातिल हो जाता है। इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति पर गुस्ल करना वाजिब हो तो उसे सुबह की अज़ान से पहले तक गुस्ल कर लेना वाजिब है। अगर वह सुबह की अज़ान तक गुस्ल नहीं करता तो उसका रोज़ा सही नहीं है। इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति जानबूझ कर उल्टी करता है तो रोज़ा बातिल हो जाता है। हां अगर किसी से उल्टी हो जाये मगर उसने जानबूझ कर उल्टी नहीं की है तो उसका रोज़ा सही है। इसी प्रकार अगर रोज़ेदार इंसान सो रहा था और सोते में उसका वीर्य निकल जाये यानी स्वप्नदोष हो जाये तो रोज़ा बातिल नहीं होता।

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यहां एक बिन्दु को बयान करना ज़रूरी है और वह यह है कि अगर रोज़ेदार जानबूझ कर कोई चीज़ खाता या पीता है तो उसका रोज़ा बातिल है परंतु अगर भूले से कोई चीज़ खा या पी ले तो रोज़ा बातिल नहीं है। हां अगर कोई चीज़ खा या पी रहा है और बीच में ही याद आ गया कि वह रोज़े से है तो जहां से याद आ जाये वहीं से खाना या पीना जो कुछ भी मुंह में है उसे उगल दे और अगर याद आने के बाद खा या पी गया तो रोज़ा बातिल हो जायेगा।

इसी तरह अगर कोई चीज़ रोज़दार के दांत में फंसी रह गयी थी और वह उसे जानबूझ कर खा जाये तो भी रोज़ा बातिल हो जायेगा पर अगर उसे नहीं पता कि उसके दांत में कोई चीज़ फसी है और वह भूले से उसे खा जाये तो रोज़ा बातिल नहीं होगा किन्तु अगर कोई व्यक्ति सुबह में सहरी कर रहा हो और उसे पता चले कि सुबह हो गयी है तो जो कुछ उसके मुंह में है उसे उगल देना चाहिये और उसके बावजूद जो कुछ उसके मुंह में है खा जाता है तो रोज़ा बातिल है और उस रोज़े का कफ्फारा देना पड़ेगा। हां अगर कोई बीमार हो और उपचार के लिए दवा खाये तो कोई बात नहीं, परंतु उसका रोज़ा बातिल हो जायेगा और बाद में उसकी कज़ा करनी होगी। इसी प्रकार अगर किसी के मसूड़े से खून आ रहा है तो उसे नहीं निगलना चाहिये वरना रोज़ा बातिल हो जायेगा परंतु अगर वह मुंह के थुक में मिलकर पानी बन जाये तो पाक है और उसके निगल जाने में कोई हरज नहीं है और रोज़ा भी बातिल नहीं होगा। 

कार्यक्रम के इस भाग में हम रोज़ेदार के संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का एक कथन बयान करते हैं। आप फरमाती हैं जो रोज़ेदार अपनी ज़बान, कान, आंख और शरीर के दूसरे अंगों को नियंत्रित नहीं करता उसके रोज़े का क्या फायदा? हज़रत फातेमा ज़हरा स. के कहने का मतलब यह है कि इंसान की ज़बान, कान, आंख और शरीर के दूसरे अंगों का भी रोज़ा है। केवल खाने- पीने के छोड़ देने का नाम रोज़ा नहीं है। रोज़ा का अस्ल उद्देश्य इंसान के अंदर महान ईश्वर का भय पैदा करना और उसे सदाचारी बनाना है और यह उद्देश्य उस वक्त तक हासिल नहीं हो सकता जब तक रोज़ेदार इंसान खाने- पीने के अलावा अपने शरीर के दूसरे अंगों का भी रोज़ा नहीं रखता।