हज़रत अली अलै. ने किस दिन को वास्तविक ईद कहा है?
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गुनाह की सोच, गुनाह नहीं है परंतु उसका प्रभाव कैसे पड़ता है?
(last modified 2025-10-15T12:17:33+00:00 )
May ०१, २०२२ १५:२७ Asia/Kolkata

गुनाह की सोच, गुनाह नहीं है परंतु उसका प्रभाव कैसे पड़ता है?

दोस्तो ईदे फित्र के शुभ अवसर पर आप सबको बहुत- बहुत मुबारकबाद पेश करते हैं 

दोस्तो रमज़ान का पवित्र महीना बीत चुका है। यानी रोज़ा रखकर उपासना और प्रार्थन करने का समय बीत गया। लोग ईद की खुशी मना रहे हैं। चारों तरफ अल्लाहो अकबर की ध्वनी गूंज रही है। लोग महान ईश्वर का गुणगान कर रहे हैं और कह रहे हैं कि तेरे सिवा कोई भी पूज्य नहीं है, सारी प्रशंसायें तेरे लिए हैं। तेरा शुक्र है कि हमारा पथप्रदर्शन सत्य मार्ग की ओर किया और जो कुछ तूने दिया है हम उस पर तेरा आभार प्रकट करते हैं।

लोग ईदे फित्र की नमाज़ की तैयारी कर रहे हैं। वास्तव में आज उन लोगों की ईद है जिन्होंने रमज़ान के पवित्र महिने में रोज़ा रखा और गुनाहों व हराम कार्यों से दूरी की। पवित्र कुरआन की तिलावत से अपनी आत्मा को तृप्त किया, आत्मशुद्धि की और स्वंय को सदगुणों से सुसज्जित किया। कितने खुशनसीब वे लोग हैं जिन्होंने अपने पालनहार की उपासना की, उसकी इबादत के शीतल जल से अपनी आत्मा का विशुद्ध बनाया। बहुत से लोगों ने स्वंय को इतना पवित्र व शुद्ध बना लिया मानो दोबारा उनका जन्म हुआ है। जब कोई व्यक्ति नहाने के बाद साफ- सुथरा या नया वस्त्र धारण करता है तो वह इस बात की पूरी कोशिश करता है कि उसका वस्त्र गंदा न होने पाये। इसी तरह जिसने एक महीने तक रोज़ा रखा और अपने अंदर मौजूद बुराइयों को तिलांजली दी वह न केवल गुनाह नहीं करेगा बल्कि गुनाह करने की सोचेगा भी नहीं।

गुनाह की सोच गुनाह नहीं है मगर उसका असर इंसान के व्यक्तित्व पर ज़रूर पड़ता है। मिसाल के तौर पर अगर कोई इंसान चोरी करने या झूठ बोलने की मात्र कल्पना करे तो यह कार्य गुनाह नहीं है परंतु इंसान के चरित्र पर उसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा जिस तरह से अगर किसी कमरे में मात्र धुआं हो तो धुएं से कमरा या कमरे में रखी चीज़ें नहीं जलेंगी मगर कमरे या उसमें रखी चीज़ों की चमक ज़रूर कम हो जायेगी। ठीक यही हाल गुनाह की सोच की है। धर्मपरायण इंसान गुनाह करना तो बहुत दूर की बात, गुनाह करने की सोच से भी बचता है क्योंकि गुनाह की सोच उस धुएं की भांति है जो इंसान के पवित्र और शुद्ध अस्तित्व को धूमिल और कम रंग कर देता है।

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महान ईश्वर ने एक महीने तक रोज़ा रखने के बाद ईद रखा है और सही और वास्तविक अर्थों में वह दिन ईद है जिस दिन इंसान से कोई गुनाह हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि हर वह दिन ईद है जिस दिन गुनाह न हो। आम लोग यह समझते हैं कि रमज़ान के पवित्र महीने के बीत जाने के बाद जो दिन आता है वह ईद है जबकि हज़रत अली फरमाते हैं कि हर वह दिन ईद है जिस दिन इंसान से गुनाह न हो। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि अगर ईद के दिन कोई गुनाह करे तो उसके लिए वह दिन वास्तव में ईद नहीं है और अगर ईद का दिन न भी हो और कोई इंसान उस दिन गुनाह न करे तो वह दिन वास्तव में उसके लिए ईद का दिन है। यानी ईद होने या न होने का मापदंड पाप है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वास्तविक ईद की जो परिभाषा बताई है उसकी रोशनी में बहुत सारे लोग हैं जिनकी पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है और उन्हें वास्तविक ईद नसीब नहीं होती है जबकि इस बीच कुछ एसे भी लोग होते हैं जिनका हर दिन ईद होता है।

दोस्तो रमज़ान का महीना बीत चुका है यानी वह महीना बीत चुका है जो एक हज़ार महीनों से बेहतर था और वह दिन आ गया है जिसे महान ईश्वर ने मुसलमानों के लिए ईद करार दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम स.फरमाते हैं जब ईदे फित्र की रात आ जाती है तो ईश्वर रोज़ा रखने वालों को बेहिसाब प्रतिदान देता है।

दोस्तो जब रमज़ान का पवित्र महीना आरंभ हो रहा था तो बहुत से लोग कामना व अभिलाषा कर रहे थे कि उन्हें महान ईश्वर का मेहमान बनने का सौभाग्य प्राप्त हो। उन्होंने रमज़ान महीने में रोज़े रखे, महान ईश्वर की नेअमतों व बरकतों से लाभ उठाया अब वे ईदे फित्र की खुशियों में शामिल हैं और अपने पालनहार का शुक्र अदा कर रहे हैं।

ईदे फित्र के दिन का एक महत्वपूर्ण अमल ईद की नमाज़ है। ईद की नमाज़ है जो आज के दिन की अध्यात्मिक सुन्दरता में चार- चांद लगा देती है। ईद की नमाज़ दो रकअत है। पहली रकत में सूरे हम्द के बाद सूरे आला और उसके बाद पांच बार कुनूत पढ़ा जाता है जबकि दूसरी रकत में हम्द सूरा पढ़ने के बाद पवित्र कुरआन का शम्स सूरा पढ़ा जाता है और उसके बाद चार बार कुनूत पढ़ा जाता है। 

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ईद की नमाज़ में जो कुनूत पढ़े जाते हैं उनमें महत्वपूर्ण संदेश नीहित हैं। इन कुनूतों में महान ईश्वर की प्रशंसा की जाती है, उसका गुणगान किया जाता है जो सारे ब्रह्मांड का रचयिता है, सबका पालनहार है। सबके गुनाहों को क्षमा करने वाला है। सब पर उसकी दयादृष्टि है। कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि वह कितना दयावान और कृपालु है। उसकी दया व कृपा असीमित है, अगर समस्त इंसान और जिन्नात मिलकर उसकी नेअमतों का शुमार करना चाहें तब भी नहीं कर सकते। वह हर भलाई और मात्र भलाई का स्रोत है, वह सर्वज्ञाता है। वह हर प्राणी के दिलों का भेद जानता है। दूसरे शब्दों में कोई चीज़ ही नहीं है जिसके विदित और नीहित का संपूर्ण ज्ञान उसे न हो।

ईद की नमाज़ में जो कुनूत पढ़े जाते हैं उनमें पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर दुरूद व सलाम भेजे जाते हैं। दूसरे शब्दों में लोग महान ईश्वर से दुआ करते हैं कि उन्हें उन महान हस्तियों के पद चिन्हों पर चलने व अमल करने का सामर्थ्य प्रदान करे। जो इंसान ईद की नमाज़ में इन कुनूतों को पढ़ता है वह अच्छी तरह जानता है कि महान ईश्वर के अलावा किसी के अंदर भी शक्ति नहीं है और जिसके अंदर भी जो शक्ति है तो उसका स्रोत महान ईश्वर है। इसी प्रकार कुनूत पढ़ने वाला महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से दुआ करता है कि हमें वह भलाई प्रदान कर जो भलाई तूने हज़रत मोहम्मद और उनके पवित्र परिजनों को प्रदान किया और हमें उन बुराइयों से दूर रख जिनसे तूने हज़रत मोहम्मद और उनके परिजनों को दूर रखा। इसी प्रकार कुनूत पढ़ने वाला महान ईश्वर से दुआ करता है कि वह उसे नेक व भला बंदा बनने का सामर्थ्य प्रदान करे और हम तेरी शरण चाहते हैं।

कितने भाग्यशाली वे लोग हैं जिन्हें अपने पालनहार की शरण मिल जाये और जिसे भी यह शरण मिल जाये उसे कोई भी चीज़ नुकसान नहीं पहुंचा सकती। महान ईश्वर की शरण सुरक्षा, मिठास और सुकून की शरण होती है। जिस इंसान को महान ईश्वर की शरण मिल जाये वह किसी दूसरे की शरण में जाने की कल्पना भी नहीं करेगा। महान ईश्वर की शरण में जाने वाले को जो मिठास व सुकून मिलता है वह किसी भी दूसरी चीज़ में नहीं मिलता। जो इंसान महान ईश्वर की शरण में चला गया उसने स्वंय को हर प्रकार की बुराई से सुरक्षित कर लिया। अगर कोई इंसान महान ईश्वर की शरण चाहता है, उसकी कृपादृष्टि का पात्र बनना चाहता है तो उसे चाहिये कि वह अपनी अंतरआत्मा को पवित्र करे, स्वंय को गुनाहों से दूर करे।

जो इंसान ईद की नमाज़ और कुनूत पढ़ता है वह इस बात का भी एहसास करता है कि उसकी ईद दूसरों की खुशी में है यानी दूसरों की खुशी को अपनी ईद का हिस्सा समझता है। परोपकार से उसे जो खुशी मिलती है उसका आभास परोपकारी ही कर सकता है। परोपकार और मोमिन को खुश करने के सवाब और उसके महत्व का अंदाज़ा पैग़म्बरे इस्लाम स. की उस हदीस से लगाया जा सकता है जिसमें आप फरमाते हैं” जिसने एक मोमिन को खुश किया उसने मुझे खुश किया और जिसने मुझे खुश किया उसने अल्लाह को खुश किया।

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पवित्र कुरआन में एक बार ईद शब्द आया है और वह भी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और उनके विशेष अनुयाइयों के संबंध में। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के विशेष अनुयाइयों ने अपने ईमान को परिपूर्ण करने के लिए हज़रत से कहा कि क्या आपका पालनहार आसमान से हमारे लिए खाना भेज सकता है? हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम यह बात सुनने के बाद चिंतित हो गये क्योंकि इस बात से संदेह की गंध आ रही थी। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपने विशेष अनुयाइयों से कहा अगर ईश्वर पर ईमान रखते हो तो उससे डरो परंतु हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम शीघ्र ही समझ गये कि उनके विशेष अनुयाइयों व शिष्यों का उद्देश्य चमत्कार है।

हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के अनुयाई उनसे बड़ा चमत्कार चाहते थे ताकि उसे देखकर अपने ईमान में वृद्धि करें। इसके बाद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने महान ईश्वर से प्रार्थना की कि हे पालनहार! आसमान से मेरे लिए दस्तरखान नाज़िल कर ताकि वह हमसे पहले वालों के लिए और हमसे आखिर वालों के लिए ईद हो और तेरी तरफ से निशानी।

रिवायतों में आया है कि आसमान से यह दस्तरखान रविवार को नाज़िल हुआ था और ईसाई इसी वजह से इस दिन को ईद के रूप में मनाते और छुट्टी करते हैं। इस आधार पर पवित्र कुरआन के अनुसार यकीन व विश्वास के पूर्ण चरण तक पहुंचने और आत्मनिर्माण को ईद कहते हैं।  

ईद का अर्थ वापसी और लौटना है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम की एक विशेषता यह है कि उसकी समस्त शिक्षायें व आदेश पूरी तरह इंसान की वास्तविक सृष्टि व प्रवृत्ति के बिल्कुल अनुरूप व अनुसार हैं और जो इंसान इस्लाम धर्म की शिक्षाओं पर अमल करता है यानी गुनाहों और महान ईश्वर की अवज्ञा को छोड़कर अपनी मूल प्रवृत्ति की ओर वापसी करता है और यही वजह है जिसके कारण ईद को ईद कहा जाता है। अगर इन बातों पर ध्यान दिया जाये और उसमें गौर- फिक्र किया जाये तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के उस मूल्यवान कथन के अर्थ को भली- भांति और सही तरह से समझा जा सकता है जिसमें आप फरमाते हैं कि हर वह दिन ईद है जिसमें अल्लाह की अवज्ञा व गुनाह न किया जाये।

आज ईद है यानी मूल प्रवृत्ति की ओर वापसी का दिन है। इंसान स्वंय को गुनाहों से पवित्र करके अपनी मूल प्रवृत्ति की ओर वापसी कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं ईदे फित्र के दिन एक फरिश्ता आवाज़ देता और कहता है कि हे ईश्वर के बंदो तुम्हें मुबारक हो कि ईश्वर ने तुम्हारे पिछले गुनाहों को माफ कर दिया तो देखो कि तुम अपनी ज़िन्दगी के शेष दिनों को किस प्रकार गुज़ारते हो। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से दुआ करते हैं कि हम सबको मूल प्रवृत्ति की ओर वापसी और उस पर बाकी रहने का सामर्थ्य प्रदान करे।       

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