रमज़ान 20ः इंसान गुनाहों से कब भागने लगता है?
जो इंसान रमज़ान महीने की नेअमतों से सही से लाभ उठाता है वह आत्मिक दृष्टि से इतना मज़बूत हो जाता है कि वह न केवल पाप नहीं करता है बल्कि पाप और पापी लोग भी उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
सबसे पहले 20वीं रमज़ान की दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं...
अनुवादः हे ईश्वर आज के दिन मेरे लिए स्वर्ग के द्वार खोल दे और नरक के द्वार को मेरे ऊपर बंद कर दे और आज के दिन मुझे क़ुरआने मजीद की तिलावत का सामर्थ प्रदान कर हे ईमान वालों के हृदयों में शांति उतारने वाले
दोस्तों पवित्र रमज़ान का महीना बंदगी, प्रार्थना और इबादत का महीना है। रमज़ान वह महीना है जो हमारी रचना का रहस्य है यानी जिसके लिए हम पैदा किये गये हैं। रमज़ान ईश्वरीय दया व कृपा का महीना है। बहुत से लोगों ने इस वास्तविकता को समझ लिया है कि रमज़ान आत्मा को तृप्त करने का महीना है। रमज़ान का महीना उस वर्षा की भांति है जिससे समस्त पेड़- पौधे धुल कर साफ हो जाते हैं और हर जगह हरियाली ही हरियाली हो जाती है।
रमज़ान का महीना, इसमें की जाने वाली इबादतें व प्रार्थनायें रोज़ेदार इंसान के दिल व आत्मा को धुल देती हैं, उसे साफ कर देती हैं, उसके अंदर से बुराइयों को साफ कर देती हैं और वह बहुत सी अच्छाइयां इंसान के अंदर पैदा कर देती हैं जो उसके अंदर नहीं होती हैं। वर्षा जिस तरह सुखी और मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा कर देती है उसी तरह रमज़ान का पवित्र महीना अपनी असंख्य नेअमतों के साथ इंसान को इस तरह से पवित्र बना देता है जैसे वह अपनी मां के पेट से अभी पैदा हुआ हो। अगर रमज़ान का पवित्र महीना न हो तो जिन लोगों के दिलों पर पापों की धूल जम गयी है उसे कैसे पाक किया जाता? रमज़ान दिलों की सफाई और उसे पवित्र बनाने का महीना है। जो लोग रमज़ान महीने की नेअमतों से खूब लाभ उठाते हैं एसा लगता है कि उनके अंदर नई आत्मा डाल दी गयी है।
रमज़ान का महीना इंसान को इतना पवित्र बना देता है कि वह पापों से इस तरह परहेज़ करने और दूर भागने लगता है जैसे इंसान कीचड़ और गंदगी से दूर भागता है। अगर कोई इंसान रमज़ान महीने में या उसके बाद गुनाहों से परहेज़ नहीं करता है तो इसका मतलब यह है कि उसने रमज़ान महीने की नेअमतों से लाभ नहीं उठाया है। हो सकता है कि वह पूरे महीने रोज़े से भी रहा हो परंतु इस प्रकार के रोज़े का वास्तविक फायदा नहीं। वास्तव में यह पेट का रोज़ा था अगर वह वास्तविक अर्थों में रोज़ा होता तो उसके असर व प्रभाव ज़रूर दिखाई देते।
दोस्तो बरकतों से भरे महीने के 19 दिन बीत चुके हैं आज बीसवां दिन है। दूसरे शब्दों में इस अनमोल महीने के दो तिहाई दिन बीत गये अब केवल नौ या दस ही दिन बचे हैं। बुद्धिमान लोग रमज़ान महीने के शेष रह गये दिनों से अधिक से अधिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे इंसान अपने पालनहार से हर वक्त बात कर सकता है मगर इसके लिए रमज़ान महीने की बात ही कुछ और है। जो इंसान रमज़ान महीने की नेअमतों से सही से लाभ उठाता है वह उस इंसान की भांति होता है जो छोटे से पौधे की सिंचाई करता है और एक समय वह आता है जब वह बड़ा और मज़बूत पेड़ हो जाता है और अगर जानवर उसे नुकसान भी पहुंचाना चाहें तो नुकसान नहीं पहुंचा पाते।
जो इंसान रमज़ान महीने की नेअमतों से सही से लाभ उठाता है वह आत्मिक दृष्टि से इतना मज़बूत हो जाता है कि वह न केवल पाप नहीं करता है बल्कि पाप और पापी लोग भी उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते। जो इंसान नया या साफ- सुथरा वस्त्र धारण करता है उसकी पूरी कोशिश यह होती है कि उसका वस्त्र गंदा न होने पाये। यही हाल उस इंसान का होता है तो रमज़ान महीने की नेअमतों से लाभ उठाकर अपनी आत्मा को सदगुणों के आभूषण से सजाता- संवारता है, उसे गुनाहों से पाक करता है और उसमें सदगुणों के बीज बोता है वह कभी भी एसा काम नहीं करेगा जिससे उसकी आत्मा दूषित हो। वह हर वक्त स्वंय को पापों की धूल से दूर रखने का प्रयास करता है।
महान ईश्वर की उपासना का एक तरीका नमाज़ है। नमाज़ वह चीज़ है जो इंसान को उसके पालनहार से निकट करती है। नमाज़ में इंसान सबसे पहले सूरे अलहम्द पढ़ता है और उसमें सबसे पहले ब्रह्मांड के पालनहार की प्रशंसा व गुणगान करता है, इंसान उस ईश्वर की प्रशंसा करता है जो अत्यंत दयावान व कृपाशील है, यह सब कहने के बाद इंसान अपने पालनहार से कहता है कि हम तेरी इबादत करते हैं और तुझ से ही मदद मांगते हैं, सीधे रास्ते पर बाक़ी रहने की दुआ करता है। वास्तव में जो इंसान समस्त ब्रह्मांड के रचयिता और अपने पालनहार की उपासना करता है वह कभी भी उन चीज़ों की न तो उपासना करेगा जिन्हें इंसान ने बनाया है और न ही वह ब्रह्मांड के रचयिता के अलावा किसी और से मदद मांगेगा।
मोमिन अपने समस्त कर्मों को अपने पालनहार के हवाले कर देता है। उसी पर भरोसा करता है और उसे इस बात पर गूढ़ विश्वास होता है कि इस दुनिया में जो कुछ भी है अगर उसमें कोई शक्ति है तो उसका स्रोत महान ईश्वर है यानी वह शक्ति महान ईश्वर ने ही उसे दी है उसके अंदर किसी प्रकार की अपनी कोई शक्ति नहीं है। किसी भी चीज़ के अंदर स्वंय को पैदा करने की ताक़त नहीं है। जो इंसान महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पर भरोसा रखता है वह इस बात को भी जानता है कि उसका पालनहार उसके साथ है वह एक क्षण के लिए भी उसकी असीम कृपादृष्टि से ओझल नहीं है। जो इंसान अपने पालनहार को अपना मददगार समझता है वह मुश्किलों और परेशानियों से कभी भी नहीं घबराता।
यहां एक बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह बिन्दु यह है कि जो इंसान अपने पालनहार पर भरोसा करता है उसका अस्ली भरोसा महान ईश्वर पर होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी काम के लिए विदित चीज़ें ज़रूरी हैं पर उसका अस्ली भरोसा विदित चीजों के बजाये अपने पालनहार पर होता है। मिसाल के तौर पर जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और उनके साथियों व अनुयाइयों का पीछा फिरऔन और उसकी सेना ने किया था और पीछा करते- करते वे सब नील नदी के पास आ पहुंच गये तो सामने नदी थी और हज़रत मूसा और उनके अनुयाइयों के पास भागने का कोई रास्ता नहीं परंतु हज़रत मूसा लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए और महान ईश्वर ने नील नदी के अंदर रास्ता बना दिया और उसी रास्ते से हज़रत मूसा और उनके अनुयाई नील नदी से बाहर निकल गये और जब फिरऔन और उसकी सेना भी उसी रास्ते से नील नदी को पार करने लगे तो महान ईश्वर के आदेश से पानी के बीच में बना रास्ता खत्म हो गया और फिरऔन और उसका पूरा लश्कर डूब गया और आज भी फिरऔन की लाश मिस्र के म्यूज़ियम में रखी है और महान ईश्वर ने कहा था कि हम दूसरों की सीख के लिए तेरी लाश को बाक़ी रखेंगे।
कहने का तात्पर्य है कि सच्चे मोमिन के विश्वास और उसकी आस्था का आधार सर्वसमर्थ व महान ईश्वर होता है और बड़ी से बड़ी मुश्किल में भी वह नहीं घबराता। घबराते और डरते वही हैं जिनके ईमान कमज़ोर होते हैं। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में जो यह कहा गया है कि एक मोमिन 20 ग़ैर मोमिन पर भारी है तो उसका यही मतलब है। मोमिन अपनी संख्या को अपनी अस्ल ताकत नहीं समझता बल्कि वह अपने पालनहार और विधाता को अपनी अस्ल ताक़त समझता है जबकि ग़ैर मोमिन भौतिक संसाधनों को ही अपनी ताक़त का आधार समझता है।
महान ईश्वर पर भरोसा मोमिन के ईमान की जान होती है। आम तौर पर हर मुसलमान ज़बान से कहता है कि वह महान ईश्वर पर भरोसा करता है परंतु जब जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तो कुछ ही समय में मालूम हो जाता है कि उसका ईमान कितना मजबूत है उसके ईमान की जड़ कितनी गहरी है। उसका अमल उसके ईमान की वास्तविकता को बयान कर देता है। दूसरे शब्दों में उसका ईमान उसकी ज़बान तक है उसकी आस्था उसके दिल में नहीं है। मोमिन का दावा करने वाले इंसान की आस्था अगर उसके दिल में होती तो कभी भी महान ईश्वर के अलावा किसी और से उम्मीद लगाता न उसके सामने हाथ फैलाता। इस प्रकार के ईमान का न केवल कोई फायदा नहीं है बल्कि वह समस्याजनक भी है। क्योंकि जिस इंसान ने अनजाने में गुनाह किया है उसे आसानी से माफ कर दिया जायेगा मगर जिस इंसान ने ज्ञान होने के बावजूद गुनाह किया है उसे आसानी से माफ नहीं किया जायेगा।
जो इंसान अपने ज्ञान से लाभ न उठाये और उस पर अमल न करे वह अज्ञानी से भी बदतर है। इस प्रकार के इंसान की मिसाल उस इंसान की भांति है जिसे मेडिकल स्टोर की हर दवा का नाम याद है परंतु वह एक भी दवा का इस्तेमाल नहीं करता। इस प्रकार का इंसान अगर पूरा कुरआन याद भी कर ले और उसकी एक आयत पर भी अमल न करे तो वह सही व सच्चा इंसान नहीं बन सकता।
बहरहाल दोस्तो आप सबको पता है कि रमज़ान महीने के 19 दिन बीत चुके हैं। यह ईश्वरीय कृपा व दया की बरसात का महीना है। यह महीना इंसान को नेक काम करने और गुनाहों से दूर रहने का संदेश देता है। इस महीने में जो इंसान नेक काम करते और गुनाहों से दूरी करते हैं उनके दिल नर्म हो जाते हैं। जिस इंसान का दिल नर्म होता है वह आमतौर पर किसी पर अत्याचार नहीं करता। वह शिष्टाचार और मिलनसारी को अपनी जीवन शैली बनाता है। वह दूसरों की खुशी को अपनी खुशी पर प्राथमिकता देता है।
वास्तव में वह दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढता है और दूसरों की खुशी को अपनी खुशी समझता है। वह महान ईश्वर की उपासना, उसकी प्रसन्नता व रज़ा और उसके सामिप्य को हर हर चीज़ पर वरियता देता है और इसके लिए वह बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहता है। कितने भाग्यशाली वे लोग हैं जिन्होंने इस पवित्र महीने की बरकतों से लाभ उठाया और स्वंय के अंदर नैतिकता, सदगुणों और अच्छाइयों के बीज अंकुरित किये। महान ईश्वर से दुआ है कि हम सबको पवित्र रमज़ान महीने के शेष दिनों से अधिक से अधिक लाभ उठाने का सामर्थ्य प्रदान करे।