अमेरिका की डूबती नाव से उतरने की कोशिश करता सऊदी अरब!
ओपेक प्लस समूह तेल उत्पादन में 20 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती की घोषणा कर पहले ही अमेरिका को बड़ा झटका दे चुका है। सऊदी अरब इस समूह का सबसे प्रमुख सदस्य है जो अमेरिका को और ज़्यादा नाराज़ करने की तैयारी कर रहा है।
सऊदी अरब की सरकारी न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ने शुक्रवार को अपने चीनी समकक्ष के साथ एक वर्चुअल मीटिंग की। इस बैठक में दोनों देशों के बीच वैश्विक तेल बाज़ार में सहयोग और परमाणु ऊर्जा पर सहयोग को लेकर चर्चा हुई। ज़ाहिर है कि चीन और सऊदी अरब के बीच बढ़ते सहयोग से अमेरिका ख़ुश नहीं है। क्योंकि चीन के साथ उसके संबंध दशकों में सबसे ख़राब चले आ रहे हैं। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने चीन के नेशनल एनर्जी एडमिनिस्ट्रेटर झांग जियानहुआ के साथ वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से बैठक की। चर्चा के मुद्दों में सबसे प्रमुख ऑयल मार्केट था। सऊदी अरब की न्यूज़ एजेंसी के अनुसार दोनों देशों के मंत्रियों ने 'अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार की स्थिरता का समर्थन करने के लिए एक साथ काम करने की इच्छा जाहिर की' और 'वैश्विक बाज़ार को स्थिर करने के लिए दीर्घकालिक और विश्वसनीय तेल आपूर्ति की ज़रूरत पर बल दिया।'
दोनों देशों के मंत्रियों ने उन देशों में भी सहयोग और साझे निवेश पर चर्चा की जिन्हें चीन अपनी 'बेल्ट एंड रोड' के हिस्से के रूप में देखता है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को लेकर चीन और सऊदी अरब के बीच समझौते को जारी रखने पर भी चर्चा की। विश्लेषकों के अनुसार, यह बयान कि 'सऊदी अरब और चीन ऊर्जा के क्षेत्र में अपने सहयोग को मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं', वॉशिंगटन के लिए स्पष्ट रूप से फटकार है। यह बयान किसी नई नीति का हिस्सा तो नहीं है लेकिन यह बाइडन प्रशासन को याद दिलाता है कि सऊदी अरब के अन्य अहम ऊर्जा संबंध भी हैं और सऊदी अरब के तेल की नीति जो कभी अमेरिका में बनती थी अब ऐसा नहीं रह गया है। सऊदी अरब और चीन के बीच यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ दिनों में अमेरिका और सऊदी अरब के बीच संबंध नाटकीय ढंग से बदले हैं। जुलाई में बाइडन रियाज़ गए थे और आले सऊद शासन के युवराज मोहम्मद बिन सलमान से हाथ मिला रहे थे और अब वह दोनों देशों के बीच रिश्तों पर 'पुनर्विचार' करने की बात कह रहे हैं। इसका कारण है इस महीने की शुरुआत में हुई ओपेक प्लस की बैठक। बाइडन प्रशासन के अनुरोध के बावजूद सऊदी अरब के नेतृत्व वाले समूह ओपेक प्लस ने नवंबर से तेल उत्पादन में भारी कटौती की घोषणा कर दी। चूंकि रूस भी इस समूह का हिस्सा है जिसकी वजह से अमेरिका इस फ़ैसले से और ज़्यादा नाराज़ है। वहीं जानकारों का मानना है कि क्योंकि विश्व में होने वाले हालिया वर्षों के घटनाक्रमों को देखते हुए सऊदी अरब समेत बहुत से देशों को यह लगने लगा है कि अब अमेरिका की नाव डूबने वाली है तो वे एक एक करके उस अमेरिकी नाव से उतरने की कोशिश कर रहे हैं। (RZ)
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