ग़ज़्ज़ा युद्ध और बेबस इस्राईल
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लगातार बमबारी करने और अमानवीय अपराध करने के बावजूद इस्राईल को ग़ज़्ज़ा में अपना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है।
(last modified 2023-11-22T08:27:20+00:00 )
Nov २२, २०२३ १३:५७ Asia/Kolkata

लगातार बमबारी करने और अमानवीय अपराध करने के बावजूद इस्राईल को ग़ज़्ज़ा में अपना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए अब 46 दिन बीत रहे हैं।  इस दौरान ज़ायोनियों के हमलों में 13300 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  इन शहीदों में 5600 से अधिक बच्चे शामिल हैं। 

ग़ज़्ज़ा के शहीदों में महिलाएं भी सम्मिलित हैं जिनकी संख्या अबतक 3500 हो चुकी है।  इस युद्ध के दौरान कई पत्रकार भी मारे गए हैं।  एक रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़्ज़ा युद्ध में 64 पत्रकार शहीद हुए हैं।  ग़ज़्ज़ा में अस्पतालों का बुरा हाल है।  या तो वे इस्राईल की हिंसक कार्यवाहियों में नष्ट हो चुके हैं या फिर बिजली और ईंधन की कमी के कारण निष्क्रिय पड़े हैं। 

इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की है कि ग़ज़्ज़ा की बाइस लाख की आबादी को तत्काल सहायता की ज़रूरत है।  दुनिया के बहुत से लोगों और राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि इस्राईल ने पिछले 46 दिनों के दौरान जो कुछ भी ग़ज़्ज़ा में किया है वह खुला हुआ जातीय सफाया है।  अब यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि आख़िर ग़ज़्ज़ा का युद्ध समाप्त क्यों नहीं हो रहा है? 

इसका एक कारण यह है कि पश्चमी देश, ग़ज़्ज़ा युद्ध की समाप्ति के पक्षधर नहीं हैं।  वे नहीं चाहते हैं कि यह युद्ध समाप्त हो जाए।  स्वभाविक सी बात है कि जब भी कोई युद्धरत पक्ष युद्ध में जीत नहीं पाता तो वह अपनी झेंप मिटाने के लिए उसको आगे बढ़ाने लगता है।  एसे में बाहरी दबाव बनाकर उस युद्ध को रोका जा सकता है। 

पश्चिमी शक्तियों विशेषकर अमरीका की यह इच्छा है कि इस युद्ध में अवैध ज़ायोनी शासन को ही विजय हासिल हो।  यहा एसी बात जिसकी कोई निशानी अभी तक दिखाई नहीं दे रही है।  46 दिनों की लगातार बमबारी के बावजूद अभी तक ग़ज़्ज़ा युद्ध में ज़ायोनी शासन को कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई है। 

ग़ज़्ज़ा वासियों के विरुद्ध उसने अत्याचार तो बहुत किये किंतु अपने दृष्टिगत कोई भी लक्ष्य उसको मिल नहीं पाया।  ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ करके इस्राईल यहां पर दो लक्ष्यों को हासिल करना चाहता था।  एक तो अपने बंधकों की हमास के हाथों रिहाई और दूसरे हमास का विनाश।  इन दो लक्ष्यों में से कोई एक लक्ष्य अभीतक उसको नहीं मिल सका है जबकि पूरा पश्चिम उसके पीछे खड़ा है।  कैसी विडंबना है कि एक प्रतिरोधकर्ता गुट के हाथों से इस्राईल अपने बंधकों को आज़ाद कराने में बहुत ही बेकस दिखाई दे रहा है।

इसी बीच बंधकों को हमास से आज़ाद न करवाए जाने के कारण इस्राईल के भीतर आम लोगों में नेतनयाहू के विरुद्ध ग़ुस्सा पाया जाता है।  बंधकों के परिजन, दूसरे लोगों के साथ मिलकर पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।  वे ज़ायोनी प्रधानमंत्री और उनके मंत्रीमण्डल से इसलिए नाराज़ है कि तथाकथित अजेय इस्राईल, मुट्ठीभर लड़ाकों के हाथों से अपने लोगों को स्वतंत्र कराने में विफल दिखाई दे रहा है।  जैसे-जैसे समय गुज़रता जा रहा है वैसे-वैसे इन लोगों का ग़ुस्सा भी बढ़ता जा रहा है। 

वैसे बुधवार को एक अस्थाई संघर्ष विराम की ख़बरे आई हैं जिसके दौरान कुछ बंदियों को स्वतंत्र कराए जाने पर सहमति बनी है लेकिन अभी भी हमास के पास इस्राईल के बहुत अधिक बंदी मौजूद हैं।   अब देखना यह है कि उन सबको आज़ाद कराने में तथाकथित अजेय कहे जाने वाले अवैध ज़ायोनी शासन को कब सफलता मिलेगी?

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