रिपोर्टः ग़ज़्ज़ा में मानवीय स्थिति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की बढ़ती चिंता
ग़ज़्ज़ा पट्टी पर अवैध आतंकी इस्राईली शासन द्वारा लगातार किए जा रहे पाश्विक हमलों और उसके द्वारा अंजाम दिए जा रहे युद्ध अपराधों की वजह से इस पूरे फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में पैदा हुई मानवीय स्थिति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की बढ़ती चिंता को देखते हुए अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
ग़ज़्ज़ा के ख़िलाफ़ युद्ध का तीसरा महीना ख़त्म हो रहा है। इस बीच तीन दिन में साल 2023 भी ख़त्म हो जाएगा। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, ग़ज़्ज़ा पट्टी के विरुद्ध ज़ायोनी शासन के युद्ध के परिणामस्वरूप 21,000 से अधिक लोग शहीद हो गए हैं और 54,000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। उत्तरी ग़ज़्ज़ा से 15 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। ग़ज़्ज़ा की 60 प्रतिशत इमारतें और बुनियादी ढांचे नष्ट हो गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हालिया आकलन से पता चलता है कि ग़ज़्ज़ा में 13 अस्पताल वर्तमान में थोड़ी बहुत ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा पा रहे हैं, और दो अस्पताल न्यूनतम स्तर पर काम कर रहे हैं, जबकि 21 अस्पताल पूरी तरह से सेवा से बाहर हो चुके हैं। सुरक्षा परिषद ने जहां 80 दिनों के युद्ध के बाद पिछले शुक्रवार को अपना दूसरा प्रस्ताव पारित करके युद्ध रोके बिना ग़ज़्ज़ा में मानवीय सहायता भेजने को मंज़ूरी दे दी, वहीं ग़ज़्ज़ा में मानवीय स्थिति को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
मानवीय मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने ग़ज़्ज़ा के लोगों की सार्वजनिक स्वास्थ्य स्थिति के बारे में कहा अस्पतालों की स्थिति दयनीय है, बहुत ही कठिनाईयों से किसी घायल का इलाज हो पा रहा है, वहीं शरणार्णी स्थलों और भीड़भाड़ वाले आश्रय स्थलों में संक्रामक बीमारियां तेज़ी से फैल रही हैं। रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (आईसीआरसी) की अध्यक्ष "मिर्जाना स्पोलजारिक एगर" ने ग़ज़्ज़ा का दौरा करने के बाद अमेरिकी सीएनएन रिपोर्टर से बातचीत में कहा "मैंने अस्पतालों में और बच्चों के संबंध में जो देखा, उन्हें तत्काल इलाज और शरीर के अंगों के काटने की आवश्यकता थी, सर्जरी के बाद, उन्हें अपने माता-पिता के बिना अस्पताल में भर्ती कराया गया, क्योंकि वे मारे गए थे, परिवार के बाक़ी सदस्यों का भी कोई अता-पता नहीं था, उनके पास भोजन तक पर्याप्त पहुंच नहीं थी, आप अच्छी तरह से जानते हैं कि जब आप इस तरह की सर्जरी से गुज़रते हैं, तो आपको ठीक होने के लिए अच्छे भोजन की आवश्यकता होती है। सर्जरी के लिए आधुनिक चिकित्सा उपकरणों की आवश्यकता होती है और यह केवल सर्जरी से जीवन नहीं बच पाता है, क्योंकि उसके बाद की प्रक्रिया सबसे अहम होती है, ग़ज़्ज़ा के अस्पतालों में स्थान और मेडिकल उपकरणों की कमी के कारण लोगों को अस्पताल से बाहर भगाया जा रहा है, लोग दर्द से तड़प रहे हैं, इलाज न मिल पाने की वजह से अन्य बीमारियां भी फैल रही हैं, टीकाकरण की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है, सबकुछ ढह रहा है ख़त्म हो रहा है और अगर इसपर नियंत्रण नहीं किया गया तो हम जल्द ही एक बड़ी मानवीय तबाही देखेंगे।"
इस बीच संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमेनिटेरियन एजेंसी ओसीएचए की प्रमुख जेम्मा कॉनेल ने ग़ज़्ज़ा के दैरुल बलाह नामक इलाक़े का दौरा करने के बाद बताया कि "मैंने ऐसे बहुत से लोगों से बात की है जो वास्तव में महसूस करते हैं कि इस्राईल उन्हें मानव शतरंज की बिसात पर आगे बढ़ा रहा है।" इस बीच, मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने गुरुवार सुबह कहा कि ग़ज़्ज़ा पट्टी पर इस्राईल के हमलों में होती वृद्धि के कारण फ़िलिस्तीनियों को सहायता नहीं मिल पा रही है। वहीं मानवाधिकार मामलों में संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर बालाकृष्णन राजगोपाल ने कहा कि "ग़ज़्ज़ा में जो हो रहा है वह अवैध क़ब्ज़ा, नरसंहार, युद्ध अपराधों और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए संस्थागत दंड और दंड से मुक्ति का परिणाम है।" उन्होंने कहा कि "यदि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय जल्द ही कार्यवाही नहीं करता है, तो हमें ग़ज़्ज़ा की स्थिति और इसके प्रति सरकारों के व्यवहार से निपटने के लिए एक और विशेष अदालत की आवश्यकता है।" वहीं फ़िलिस्तीनी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फ्रांसेस्का अल्बानीज़ ने भी चेतावनी दी है कि "ग़ज़्ज़ा में नरसंहार स्रेब्रेनिका और रवांडा में नरसंहार से अलग नहीं है, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसे रोकना होगा।"
कुल मिलाकर इस स्थिति के बावजूद, अमेरिका ग़ज़्ज़ा में युद्ध रोकने के किसी भी प्रस्ताव को पारित होने से लगातार रोक रहा है है और ग़ज़्ज़ा के लोगों के नरसंहार में ज़ायोनी शासन का हर स्तर पर समर्थन करना जारी रखे हुए है। (RZ)
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