हक़ीक़त को बचाने की कोशिश, एक फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माता का बयान पश्चिमी सिनेमा की लज्जाजनक चुप्पी
(last modified Thu, 18 Jul 2024 10:32:36 GMT )
Jul १८, २०२४ १६:०२ Asia/Kolkata
  • हक़ीक़त को बचाने की कोशिश, एक फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माता का बयान पश्चिमी सिनेमा की लज्जाजनक चुप्पी
    हक़ीक़त को बचाने की कोशिश, एक फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माता का बयान पश्चिमी सिनेमा की लज्जाजनक चुप्पी

पार्सटुडे - फ़िल्म "फ्रॉम ग्राउंड ज़ीरो" मौजूदा युद्ध के दौरान ग़ज़ा पट्टी के अंदर फिल्म निर्माताओं द्वारा शूट की गई 22 शॉर्ट फिल्मों का एक ग्रुप है।

7  अक्टूबर 2023 से, पश्चिमी देशों के भरपूर समर्थन से, ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम और असहाय लोगों के ख़िलाफ़ ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में एक नया व्यापक नरसंहार शुरू किया है। इस घटना की छोटी बड़ी कहानियों की रक्षा करना बहुत ही ज़्याद अहम है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीनी फ़िल्म निर्माता और निर्देशक राशिद मशहरावी ने ग़ज़ा में 22 शॉर्ट फ़िल्मों के निर्माण के बारे में कहा: पहले तो मैंने सोचा था कि कहानी की स्क्रिप्ट अनकही व्यक्तिगत कहानियों पर ध्यान केंद्रित करें और उन्हें कलात्मक और तकनीकी तरीक़े से प्रस्तुत किया जाए तथा उन्हें सही ढंग से बयान किया जाए और इन फ़िल्म निर्माताओं को अपनी कहानियां बनाने और त्योहारों और टीवी पर दिखाई देने के लिए ट्रेंड किया जाए।

मशहरावी ने इस फिल्म के निर्माण को एक डरावना सपना क़रार दिया और कहा: फ़िल्मों को ग़ज़ा से बाहर निकालना मुश्किल था और हमारी मुख्य समस्याओं में से एक फ़िल्मों को ग़ज़ा से बाहर निकालना और फिल्म निर्माताओं के साथ लगातार संपर्क बनाए रखना था।

ठीक है कि हमारा संपर्क सिर्फ़ इंटरनेट के माध्यम से हो, सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप और इन सभी चीजों के माध्यम से, हम एक-दूसरे से बात कर सकते हैं लेकिन जब आपके पास अपने मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए बिजली ही न हो तो समझिए कि आपके पास कुछ भी नहीं है।

इस फ़िलिस्तीनी निर्देशक ने कहा:

 

कभी-कभी हम दिन के 24 घंटे काम करते थे और जागते रहते थे क्योंकि उस इलाक़े में बिजली थी, इंटरनेट काम कर रहा था और हम अपना सबसे अच्छा आइटम अपलोड कर सकते थे, हमारी आखिरी फिल्म 2 हफ्ते पहले आई है।

 

मशहरावी ने कहा: 22 फिल्मों को एक काम में शामिल करना, संपादन के विषय में एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि किसी ने भी एक ही कैमरे और एक ही सेटिंग्स से फिल्म नहीं बनाई थी और आवाज़ की क्वालिटी पूरी तरह से अलग थी।

मशहरावी ने यह भी कहा कि उन्हीं परिस्थितियों की वजह से "आई एम सॉरी फॉर द सिनेमा" नामक लघु फ़िल्म में विशेष रूप से ऐसे कठिन हालात में फ़िल्म बनाने की सीमाओं के बारे में बात की गई थी।

उन्होंने कहा, यह उन फ़िल्मों में से एक है जिनसे मेरा विशेष रिश्ता है क्योंकि जीवन में आप सोचते हैं कि सिनेमा आपके जीवन में प्राथमिकता है और फिर अचानक आप देखते हैं कि नहीं, ऐसा नहीं है।

 

सबसे अहम बात यह है कि कुछ खाओ ताकि अपने परिवार को बचा सको, आप देखेंगे कि लोगों को बचाना सिनेमा से सबसे ज़्यादा अहम होता है।

 

फ़िलिस्तीनी निर्देशक ने ज़ोर देकर कहा:

 

हम जीवन को बेहतर बनाने के लिए, जीवन को आसान बनाने के लिए, इसे और अधिक समझने योग्य बनाने के लिए फ़िल्में बनाते हैं, जब तक इंसान बेहतर नहीं हो जाता।इस फ़िल्म में यह तत्व बहुत अच्छे से है क्योंकि निर्देशक ऐसी स्थिति में है जहां उसे ज़िंदगी और सिनेमा में से किसी एक को चुनना है और उसने जिंदगी को चुना है।

 

इस प्रश्न के उत्तर में कि सिनेमा की भूमिका क्या है? उन्होंने कहा, सिनेमा मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

मैंने 30 साल से भी पहले मक़बूज़ा फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में फ़िल्में बनाना शुरू की थी। सिनेमा को इस्राईली क़ब्ज़े से बचाना होगा।

सिनेमा केवल प्रतिक्रिया ही नहीं, क्रिया भी होना चाहिए। हम फ़िलिस्तीनी एक राष्ट्र हैं। हमारा इतिहास, भाषा, संगीत, रंग, भोजन सब ही समान है।

हमारे पास बहुत सी चीज़ें हैं जो हम सभी की हैं। ये सब एक फ़िल्म बनाने का ठोस आधार हो सकती हैं।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राशिद मशहरावी का जन्म 1962 में ग़ज़ा में याफ़ा शरणार्थियों के एक परिवार में हुआ था और वे "शत्ता" शरणार्थी शिविर में पले-बढ़े थे।

मशहरावी रामल्लाह में रहते हैं और काम करते हैं और स्थानीय फ़िल्मों के निर्माण का समर्थन करने के उद्देश्य से 1996 में "सिनेमा प्रोडक्शन एंड डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर" की उन्होंने स्थापना की।

वह मोबाइल सिनेमा कार्यक्रम के प्रायोजक भी हैं जिसकी वजह से वह फ़िलिस्तीनी शरणार्थी शिविरों में फ़िल्में दिखाने में पूरी तरह से आज़ाद हैं।

उन्होंने "फिलिस्तीन स्टीरियो" के साथ 2013 टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भाग लिया और फिर "लेटर्स फ्रॉम यरमूक" और "राइटिंग ऑन द स्नो" जैसी ज़बरदस्त शॉर्ट फ़िल्में बनाई। 1995 में "हैफ़ा", 2005 में "वेटिंग" और 2002 में डॉक्यूमेंट्री "लाइव फ्रॉम फ़िलिस्तीन" उनकी अन्य फिल्में हैं।

2017  में, यह फ़िल्म निर्माता और निर्देशक, 36वें फज्र अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में तेहरान में हाज़िर हुआ था।

 

कीवर्ड्ज़: इस्राईल-ग़ज़ युद्ध, ग़ज़ा पट्टी, फ़िलिस्तीनी फ़िल्में, राशिद मशहरावी कौन हैं? (AK)

 

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें।