ग़ाज़ा, स्रेब्रेनित्सा त्रासदी की निरंतरता है
(last modified Sat, 12 Jul 2025 11:28:28 GMT )
Jul १२, २०२५ १६:५८ Asia/Kolkata
  • ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची
    ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची

ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने स्रेब्रेनित्सा नरसंहार की 30वीं वर्षगांठ पर एक संदेश जारी किया।

उन्होंने कहा: अगर दुनिया ने वास्तव में इस त्रासदी से सबक सीखा होता, तो आज हम ग़ाज़ा में मुसलमानों के खिलाफ़ एक और नरसंहार नहीं देख रहे होते।

 

अराक़ची ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा 11 जुलाई को "स्रेब्रेनित्सा नरसंहार स्मृति दिवस" घोषित करने के निर्णय का उल्लेख करते हुए इस दिन को "उन लोगों के लिए शर्म का प्रतीक" बताया जो "या तो इस भयावह अपराध में सहभागी थे या अपनी चुप्पी से हज़ारों निर्दोष मुसलमानों की हत्या का मार्ग प्रशस्त किया।"

11 जुलाई, 1995 को बोस्निया युद्ध अपनी सबसे भयावह हिंसा के चरम पर पहुंच गया था। संयुक्त राष्ट्र द्वारा "सुरक्षित क्षेत्र" घोषित स्रेब्रेनित्सा शहर पर रात्को म्लादिच के नेतृत्व वाले बोस्नियाई सर्ब अर्धसैनिकों ने क़ब्ज़ा कर लिया।

 

लगभग 2,000 सर्ब राष्ट्रवादियों और हत्यारों ने दुनिया की उदासीन निगाहों और डच संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षकों की मौजूदगी में, सिर्फ धार्मिक और जातीय पहचान के आधार पर 8,000 से अधिक बोस्नियाई मुस्लिम पुरुषों और लड़कों को उनके परिवारों से अलग कर व्यवस्थित रूप से हत्या कर दी।

 

इस नरसंहार को इतनी सावधानी व होशियारी से अंजाम दिया गया कि सत्य को छिपाने के लिए शवों को कई बार दफ़नाने और फिर से दफ़नाने की नौबत आई। अमेरिका सहित पश्चिमी सरकारों ने सामूहिक हत्या की योजना के बारे में जानते हुए भी कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि अपनी चुप्पी से इस अपराध में सहभागी बन गईं।

 

1992 से 1995 तक चले बोस्नियाई युद्ध में सर्ब राष्ट्रवादियों ने निर्दयतापूर्वक 100,000 से अधिक लोगों की हत्या की। 2 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए, जबकि 50,000 महिलाओं और लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए।

 

1995 में, तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव "कूफ़ी अन्नान" ने स्रेब्रेनित्सा त्रासदी के बाद कहा था: "यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की विफलता थी।" आज, "एंटोनियो गुटेरेस" उसी संयुक्त राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे हैं जिसने अब तक ग़ाज़ा में युद्धविराम के लिए अमेरिकी वीटो के कारण 9 प्रस्तावों को विफ़ल होते देखा है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट बताती है कि ग़ाज़ा के 93% बच्चे खाद्य संकट से जूझ रहे हैं - एक ऐसा आंकड़ा जो स्रेब्रेनित्सा की घेराबंदी की याद दिलाता है।

 

स्रेब्रेनित्सा को एक वैश्विक घटना बनाने वाला केवल त्रासदी का पैमाना नहीं था, बल्कि पश्चिमी सरकारों के प्रभाव में काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की निष्क्रियता थी। वही निष्क्रियता आज ग़ाज़ा में और भी अधिक नग्न रूप में दोहराई जा रही है।

 

भूख को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना, जबरन विस्थापन, सामूहिक दंड और जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाना - ये सभी 1948 के जनसंहार समझौते में परिभाषित जनसंहार के लक्षण हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने जनवरी 2024 में आधिकारिक चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि ग़ाज़ा में जनसंहार का ख़तरा मौजूद है और इज़राइल को निवारक उपाय करने चाहिए। लेकिन इस फैसले को भी, स्रेब्रेनित्सा के समय की चेतावनियों की तरह, गंभीरता से नहीं लिया गया बल्कि पश्चिमी सरकारों ने हथियारों की आपूर्ति, मीडिया में झूठा नैरेटिव गढ़ने और कूटनीतिक समर्थन के ज़रिए इन अपराधों को जारी रखने में मदद की।

 

वास्तविकता यह है कि जनसंहार केवल एक मानवीय त्रासदी नहीं है बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के नैतिक पतन का प्रतीक है जो न तो मानवाधिकारों का सम्मान करती है न न्याय को पहचानती है और न ही नागरिकों की जान बचाने की जिम्म़ेदारी को स्वीकार करती है। स्रेब्रेनित्सा के पीड़ितों को सुरक्षा के वादों के साथ छोड़ दिया गया था। आज ग़ाज़ा को "दो-राज्य समाधान" के वादों के साथ नष्ट किया जा रहा है। MM