दुनियाभर में ज़ायोनी शासन से बढ़ती नफ़रत, हिब्रू मीडिया ने इज़राइल के अंतरराष्ट्रीय अलगाव की बात स्वीकार की
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ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन
पार्सटुडे - ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के ख़िलाफ विश्वव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बढ़ने के साथ, हिब्रू मीडिया ने भी इज़राइल के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग होने की बात स्वीकार कर ली है।
सबूत बताते हैं कि दुनिया की जनता का ज़ायोनिज़्म के खिलाफ गुस्सा उबलने के कगार पर है और इज़राइल का प्रचार अब सच्चाई को छुपाने में सक्षम नहीं है। इज़राइली शासन के टीवी द्वारा दुनियाभर में नफ़रत बढ़ने को स्वीकार करने से लेकर यूरोपीय देशों द्वारा फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने के समर्थन तक, ग़ज़ा पट्टी में जारी युद्ध के बारे में हाल के दिनों की सबसे महत्वपूर्ण घटनाएं इस रिपोर्ट में पढ़ें:
इज़राइली टीवी ने ग़ज़ा युद्ध के खिलाफ वैश्विक आक्रोश और फिलिस्तीन के समर्थन की बात स्वीकार की
इज़राइल के चैनल 12 ने एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों के इस बयान का जिक्र किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में वे आधिकारिक तौर पर फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देंगे।
चैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा: हालांकि इज़राइल के सभी राजनीतिक धड़ों ने इस क़दम की निंदा की है, लेकिन ऐसे कदमों को कभी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह और इसी तरह के कदम विश्व समुदाय में एक बढ़ते रुझान को दर्शाते हैं जो ग़ज़ा में युद्ध से थक चुका है और ज़ायोनी शासन को इसके जारी रहने का जिम्मेदार मानता है।
चैनल 12 के मुताबिक, आज ग़ज़ा पट्टी में भुखमरी विश्व मीडिया की सुर्खियों में सबसे ऊपर है। यह मुद्दा सिर्फ "सीएनएन" और "बीबीसी" जैसे संदिग्ध मीडिया घरानों तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के हर टीवी चैनल पर प्रसारित हो रहा है। इन सभी मीडिया में ग़ज़ा में भुखमरी की दर्दनाक तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, और लगभग हर यूरोपीय नागरिक अपना दिन इन तस्वीरों के साथ शुरू कर रहा है।
यूरोपीय देशों में ग़ज़ा पट्टी में नरसंहार के खिलाफ स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन फैल रहे हैं
इटली से लेकर रोमानिया और वहाँ से यूनान तक, यूरोप के देशों के लोगों द्वारा ज़ायोनी शासन के ग़ज़ापट्टी में किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ ख़ुद से ही शुरु होने वाले विरोध प्रदर्शन तेजी से फैल रहे हैं, जो अब एंटी-इजराइली रूप लेते जा रहे हैं जबकि कुछ हिब्रू मीडिया ने इटली के नेपल्स में इज़राइल विरोधी पोस्टर दिखाए जाने की खबर दी है, वहीं अन्य मीडिया ने यूनान में इज़राइली नागरिकों से भरे एक जहाज को रोकने के लिए लोगों द्वारा धरना देने की बात कही है।
समाचार वेबसाइट "वाला न्यूज़" ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि फिलिस्तीन समर्थक यूनानी प्रदर्शनकारियों के धरने के कारण सैकड़ों इज़रायली यात्री यूनान के साइरस द्वीप पर अपने जहाज में घंटों तक फंसे रहे।
इस हिब्रू भाषी मीडिया के अनुसार, यह विरोध प्रदर्शन विशेष रूप से इजरायली पर्यटकों के खिलाफ किया गया, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीन के झंडे लहराकर और ग़ज़ा पट्टी में नरसंहार रोकने की मांग करते हुए बैनर उठाए।
इजराइली शासन के प्रधानमंत्री ने दुनिया की नफरत का यह कारण बताया
ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री ने दुनिया की इज़राइल के प्रति नफरत का कारण प्रोपेगैंडा और प्रचार बताया! इजरायली प्रधानमंत्री "बेंजामिन नेतन्याहू" ने एक पॉडकास्ट में सवाल के जवाब में कहा कि दुनिया इज़राइल से नफरत क्यों करती है, तो यह सब प्रोपेगैंडा की वजह से है!
नेतन्याहू का यह बयान ऐसे समय में आया है जब दुनिया की अधिकांश मुख्यधारा की मीडिया या तो इज़राइल के प्रभाव में है या फिर इस शासन का समर्थन करने वाले यहूदियों के स्वामित्व में है। इसके अलावा, अमेरिकी टेक दिग्गज कंपनियाँ जैसे गूगल, यूट्यूब, एआई और खासकर हॉलीवुड की फिल्म कंपनियाँ स्पष्ट और अस्पष्ट रूप से सियोनिज्म की विचारधारा का समर्थन करती हैं।
फ्रांस का ऐतिहासिक फिलिस्तीन समर्थन: संयुक्त राष्ट्र में न्याय की आवाज़
इजराइली शासन द्वारा ग़ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ किए जा रहे अमानवीय अत्याचारों के बीच, फ्रांस का फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देने का निर्णय ऐतिहासिक और निर्णायक माना जा रहा है। यह निर्णय पश्चिम में जनमत के दबाव को दर्शाता है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने आगामी सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा की है, जिसके बाद अन्य देशों में भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल सकती हैं।
ग़ज़ा में पत्रकारों की भूख पर वैश्विक चिंता: दुनिया की आँखें-कान खाद्य संकट में
अंतरराष्ट्रीय मीडिया और समाचार एजेंसियों ने ग़ज़ा पट्टी में पत्रकारों की दयनीय स्थिति और भुखमरी को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि ये पत्रकार अब अपने और अपने परिवारों के लिए भोजन भी जुटा पाने में असमर्थ हैं। एएफपी, एसोसिएटेड प्रेस, बीबीसी और रॉयटर्स ने कहा कि वे ग़ज़ा में मौजूद अपने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर "गहरी चिंतित" हैं चूँकि इज़राइयली शासन अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को ग़ज़ा में प्रवेश से रोकता है, इसलिए फिलिस्तीनी पत्रकार ही युद्धक्षेत्र से रिपोर्टिंग कर पा रहे हैं। इन समाचार एजेंसियों ने एक संयुक्त बयान में कहा: "हमें अपने ग़ज़ा स्थित पत्रकारों की स्थिति की गहरी चिंता है, जो अपने और अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध कर पाने में असमर्थ हैं।"
जब मानवीय सहायता लोगों तक नहीं पहुँच पाती: ग़ज़ा युद्ध और भुखमरी के बीच
इजरायली बलों द्वारा राहत काफिलों पर हमले जारी हैं, और ग़ज़ा पट्टी भोजन व अन्य आवश्यक सहायता के अभाव में एक बड़ी तबाही के कगार पर है। इजरायली सेना द्वारा हजारों टन राहत सामग्री को नष्ट किए जाने के बीच, ग़ज़ा की लगभग 2.3 मिलियन आबादी भुखमरी का सामना कर रही है। यह सब उस समय हो रहा है जब दुनिया भर में इज़राइल पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह ग़ज़ा में राहत सामग्री की आवाजाही की अनुमति दे और दो साल से चल रहे युद्ध को रोके। हाल के दिनों में, दुनिया के कई शहरों में ग़ज़ा पर इजरायली नाकाबंदी और वहाँ के लोगों की भुखमरी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। (AK)
कीवर्ड्ज़: अमरीका, इज़राइल, वेस्टबैंक, फ़िलिस्तीन, ज़ायोनी शासन, ब्रिटेन, फ़्रांस
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