क्या लेबनान के हिज़्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण संभव है?
-
क्या लेबनान के हिज़्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण संभव है?
पार्स टुडे - हाल के हफ्तों में अमेरिका के दबाव और इज़राइली शासन के समर्थन से लेबनान की हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का प्रस्ताव सामने आया है।
हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का यह प्रस्ताव पश्चिम एशिया के सबसे तनावपूर्ण दौर में लेबनान की राजनीतिक गर्मी को उबाल तक पहुंचा रहा है। पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रस्ताव जो अमेरिका के दबाव और इज़राइल व कुछ क्षेत्रीय सरकारों के समर्थन से आया है, कई पर्यवेक्षकों की नजर में न सिर्फ़ लेबनान की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि देश की राजनीतिक व सुरक्षा वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ करने से आंतरिक अस्थिरता और क्षेत्रीय तनाव बढ़ने का खतरा पैदा करता है।
हिज़्बुल्लाह का ऐतिहासिक संदर्भ और भूमिका
हिज़्बुल्लाह का उदय 1980 के दशक में इज़राइली क़ब्ज़े के विरोध में हुआ और यह एक सैन्य, राजनीतिक व सामाजिक शक्ति बनकर उभरा। दक्षिणी लेबनान की आज़ादी (2000) और 33 दिन के युद्ध (2006) में सफलता ने इसे राष्ट्रीय प्रतिरोध का प्रतीक बना दिया। ताएफ़ समझौते (1989) ने भी हिज़्बुल्लाह के हथियारों को प्रतिरोध के साधन के रूप में मान्यता दी। वहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 (2006) और नवंबर 2024 की युद्धविराम सहमति में ग़ैर-सरकारी ग्रुप्स के निरस्त्रीकरण पर ज़ोर दिया गया, लेकिन व्यवहार में यह असफल रहा।
अमेरिकी प्रस्ताव और उसके मकसद
वाशिंगटन का प्रस्ताव हिज़्बुल्लाह के पूर्ण निरस्त्रीकरण, दक्षिणी लेबनान में सेना की तैनाती, इज़राइल द्वारा पाँच मक़बूज़ा इलाकों से हटने का वादा, सीमा विवादों का समाधान और राष्ट्रीय संप्रभुता को मजबूत करने का दावा करता है। हालांकि, ये लक्ष्य मुख्यतः इज़राइल और अमेरिका के हितों को पूरा करते हैं। इज़राइली आक्रमणों के बिना हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण की शर्त, अस्पष्ट प्रतिबद्धताएं और विश्वसनीय सुरक्षा गारंटी का अभाव इस प्रस्ताव को अव्यवहारिक बना देता है।
आंतरिक चुनौतियाँ
साम्प्रदायिक विभाजन: लेबनान की कैबिनेट में शिया मंत्रियों की अनुपस्थिति में हाल के प्रस्ताव को पारित करना देश की राजनीतिक परंपरा का उल्लंघन है और साम्प्रदायिक तनावों को बढ़ावा देता है। हिज़्बुल्लाह और अमल आंदोलन ने इसे अवैध क़रार दिया है, जबकि शिया समुदाय निरस्त्रीकरण को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। 2008 के संकट ने दिखाया है कि ऐसे कदम आंतरिक संघर्ष को जन्म दे सकते हैं।
लेबनानी सेना की कमजोरी: सेना अपने मैनेजमेंट की आवश्यकताओं का केवल आंशिक रूप से पूरा कर पाती है और उसके पास पर्याप्त रक्षात्मक क्षमता का अभाव है। आर्थिक संकट ने इस कमजोरी को और बढ़ा दिया है। इसलिए, हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का मिशन सेना के लिए अव्यवहारिक लगता है।
नेश्नल सावरेन्टी राष्ट्रीय संप्रभुता का कमजोर होना: जब इज़राइल रोजाना लेबनानी भूभाग पर हमला कर रहा है और कई क्षेत्रों पर कब्जा किए हुए है, हिज़्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण देश की एकमात्र रोधक शक्ति को समाप्त करने जैसा होगा।
क्षेत्रीय परिणाम
हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का प्रस्ताव अमेरिका और इज़राइली शासन की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है जिसका उद्देश्य "ऑप्रेशन अल-अक्सा स्टॉर्म" के बाद प्रतिरोध के मोर्चे (Axis of Resistance) को कमजोर करना है। इज़राइली शासन इस प्रस्ताव का उपयोग हिज़्बुल्लाह के खिलाफ अपने हमलों को सही ठहराने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संघर्ष के और बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा, विदेशी हस्तक्षेप और ड्रोन/सैटेलाइट निगरानी लेबनान की सावरेन्टी को कमज़ोर कर रही है।
भविष्य के संभावित परिदृश्य
राजनीतिक गतिरोध जारी रहना और प्रस्ताव का केवल कागजों तक सीमित रह जाना
आंतरिक संघर्ष की स्थिति यदि लेबनान सरकार बलपूर्वक इस योजना को लागू करने पर अड़ी रहती है
एक राष्ट्रीय बातचीत जिसमें साझा रक्षा रणनीति तैयार करने की कोशिश की जाए, हालांकि इजरायली आक्रमणों के बिना रुके और बिना ठोस सुरक्षा गारंटियों के, यह परिदृश्य संभावित नहीं लगता
नतीजा
हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण का यह प्रस्ताव साम्प्रदायिक सहमति के उल्लंघन, सुरक्षा गारंटियों के अभाव और विदेशी हस्तक्षेप के कारण न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि लेबनान को अस्थिरता और विदेशी वर्चस्व के खतरे में डाल देगा। जब तक इजरायली आक्रमण बंद नहीं होते और विश्वसनीय सुरक्षा गारंटियां प्रदान नहीं की जातीं, राष्ट्रीय सुरक्षा के गारंटर के रूप में प्रतिरोध के हथियारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। (AK)
कीवर्ड्ज़: इज़राइल, वेस्टबैंक, फ़िलिस्तीन, ज़ायोनी शासन, हिज़्बुल्लाह, हमास,
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए
हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए