बहरैन में राजनैतिक कार्यकर्ताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारी
(last modified Sat, 21 Oct 2017 11:52:28 GMT )
Oct २१, २०१७ १७:२२ Asia/Kolkata

बहरैन में राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ आले ख़लीफ़ा शासन का पुलिसिया व्यवहार जारी है और बहरैन में विरोधियों की विभिन्न बहानों से गिरफ़्तारी का क्रम भी जारी है।

इस परिप्रेक्ष्य में बहरैन के मानवाधिकार व प्रजातंत्र को बढ़ावा देने के लिए गठित शांति संगठन ने पिछले 7 साल में 15000 लोगों की गिरफ़्तारी की सूचना दी है।

यह आंकड़ा बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में बहरैन में हज़ारों की संख्या में राजनैतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाला गया और यह प्रक्रिया 2017 में तेज़ हो गयी है। पश्चिम एशिया के सबसे छोटे देश के रूप में बहरैन में मानवाधिकार सूत्रों के अनुसार, सबसे ज़्यादा राजनैतिक बंदी हैं और आले ख़लीफ़ा शासन पश्चिमी देशों के समर्थन से दमनकारी नीति अपनाये हुए है।

बहरैन में 14 फ़रवरी 2011 से शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहे हैं। इस देश की जनता, लोकतांत्रिक सरकार का गठन, भेदभाव का अंत, राजनैतिक सुधार, मानवाधिकार का पालन, न्याय की स्थापना और पश्चिम पर निर्भरता का अंत चाहती है, लेकिन आले ख़लीफ़ा शासन जनता की मांगों को पूरा करने के बजाए व्यापक स्तर पर लोगों को गिरफ़्तार कर रहा है।

आले ख़ीफ़ा शासन इस देश की संसद में उस क़ानून के पास होने के बाद कि जिसमें सैन्य अदालतों में राजनैतिक विरोधियों पर मुक़द्दमा चलाने की इजाज़त दी गयी है, लंबे समय से विरोधियों को सैन्य अदालत में घसीट रहा है।

आले ख़लीफ़ा की दमनकारी नीति में और मदद देने के लिए इस देश की संसद ने 2015 में आतंकवाद से संघर्ष के नाम पर एक क़ानून पारित किया है। इसी क़ानून को दस्तावेज़ क़रार देकर आले ख़लीफ़ा शासन वरोधियों को गिरफ़तार कर रहा है। बहरैनी शासन की इसी नीति के कारण यह देश नागरिकों के लिए जेल बन गया है। इसी स्थिति के कारण जनमत में चिंता पायी जाती है।

बहरैन में राजनैतिक कार्यकर्ताओं की दयनीय स्थिति के बारे में विभिन्न रिपोर्टें इन्हीं चिंताओं को दर्शाती हैं। (MAQ/T)

 

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