मानवाधिकार की रक्षा के दावेदारों के मौन के बीच, इराक़ के इस नगर को बनाया गया था भयानक रासायनिक हथियारों का निशाना
इराक़ के " अरबील" नगर में ईरानी वाणिज्य दूतावास के प्रभारी ने कहा है कि " हलबचा" पर रासायनिक हथियारों की बमबारी वास्तव में मानवाधिकार की रक्षा का दावा करने वाली कुछ शक्तियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आपराधिक मौन के साथ हुई थी।
इराक़ी कुर्दिस्तान का " हलबचा " नगर ईज्ञानी सीमा के निकट है जिस पर 15 मार्च सन 1988 में सद्दाम की सेना ने भयानक रासायनिक बम बरसाए थे जिससे 5 हज़ार से अधिक लोग मारे गये थे।
इस भयानक हमले में मारे गये लोगों की 33वीं बरसी के अवसर पर ईरानी वाणिज्य दूतावास के प्रभारी " मुरतुज़ा एबादी" ने एक आलेख में लिखा कि 5 हज़ार से अधिक शहीदों और 10 हज़ार से अधिक प्रभावितों की याद मनाए जाने को, विश्व से रासायनिक शस्त्रों के अंत पर दोबारा बल देने का उचित अवसर समझा जाना चाहिए और निश्चित रूप यह विश्व समुदाय की ज़िम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि यह दुखदायी घटना, कभी भुलायी जाएगी और रासानयिक शस्त्रों सहित आम तबाही फैलाने वाले हथियारों के उत्पादन और प्रयोग पर रोक इस्लामी गणतंत्र ईरान की बुनियादी नीतियों में से है इसलिए ईरान, इस प्रकार के हथियारों के प्रयोग की आलोचना करते हुए सभी देशों के शस्त्रागारों से इस प्रकार के सभी हथियारों को खत्म किये जाने को ज़रूरी समझता है।
इराक़ की ओर से ईरान पर पहला रासायनिक हमला जनवरी सन 1981 में हुआ था उसके बाद से युद्ध के समापन तक सद्दाम सरकार ने 3500 बार रासायनिक बमबारी करके एक लाख से अधिक ईरानियों को निशाना बनाया जिनमे से बहुत से लोग तत्काल रूप से शहीद और बाकी धीरे धीरे विभिन्न रोगों में ग्रस्त होकर शहीद हुए और बहुत से लोग अब भी उससे प्रभावित हैं।
रासायनिक शस्त्रों पर प्रतिबंध के अंतरराष्ट्रीय समझौते के बावजूद अमरीका सहित कई देश इस समझौते का पालन नहीं कर रहे हैं। (Q.A.)