क्या अरब लीग की मौत का समय आ गया है?
(last modified Fri, 09 Oct 2020 11:37:29 GMT )
Oct ०९, २०२० १७:०७ Asia/Kolkata
  • क्या अरब लीग की मौत का समय आ गया है?

अब तक छः देश अरब लीग की अध्यक्षता स्वीकार करने से इन्कार कर चुके हैं और फ़िलिस्तीनी अधिकारियों का कहना है कि अब इसकी कोई उपयोगिता नहीं रह गई है।

फमिस्र, सऊदी अरब, इराक़, सीरिया, लेबनान व जाॅर्डन द्वारा सन 1945 में गठित अरब लीग का मूल उद्देश्य अरब देशों के बीच एकता व एकजुटता स्थापित करना था। आज यह संगठन, अपनी पहचान और अपने मूल उद्देश्य के ही संकट में ग्रस्त है और इसका कोई स्पष्ट भविष्य दिखाई नहीं देता। आजकी दुनिया में क्षेत्रवाद और क्षेत्रीय सहयोग, अनेक सरकारों विशेष कर विकासशील देशों के एजेंडे में शामिल है क्योंकि क्षेत्रीय संगठन देशों की अर्थव्यवस्था के विकास और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसके जुड़ने की राह समतल करते हैं।

 

इस क्षेत्रीय संगठन के गठन को 75 साल गुज़रने के बाद कहा जा सकता है कि न केवल यह कि इसके लक्ष्य पूरे नहीं हुए हैं बल्कि यह कभी कभी तो यह स्वयं अपने लक्ष्यों से दूर होने का कारण बना है। फ़िलिस्तीन समस्या, सीरिया के संकट, यमन के युद्ध, लीबिया के गृह युद्ध और अरब देशों की क्रांतियों में पूरी दुनिया ने वैचारिक व व्यवहारिक दोनों मैदानों में अरब लीग की ढिलाई को देख लिया। मंगलवार को लीबिया की राष्ट्रीय एकता की सरकार ने घोषणा कर दी कि वह अरब संघ की अध्यक्षता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इस संघ में लीबिया के प्रतिनिधि ने कहा कि उनका देश किसी बेहतर समय में अरब लीग की अध्यक्षता स्वीकार करने को प्राथमिकता देता है। अरब लीग की अध्यक्षता हर साल वर्णमाला के हिसाब से हस्तांतरित होती रहती है और अगर कोई देश अध्यक्षता स्वीकार नहीं करता तो अगले देश का नंबर आ जाता है।

 

पिछले दो हफ़्ते में लीबिया छठा देश है जिसने अरब संघ की अध्यक्षता स्वीकार करने से इन्कार किया है। पहली बार फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने इस्राईल के साथ संयुक्त अरब इमारात और बहरैन के संबंध स्थापना के समझौते पर अरब संघ के सचिवालय के व्यवहार पर आपत्ति स्वरूप इस संघ की अध्यक्षता स्वीकार करने से इन्कार किया था। फ़िलिस्तीन के बाद क़तर ने भी अरब लीग का अध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया। फिर कोमोर द्वीप की बारी आई और वह भी किनारे हो गया। इसके बाद कुवैत और लेबनान का नंबर था लेकिन उन्होंने भी कहा कि वे बेहतर परिस्थितियों में अरब संघ का अध्यक्ष बनना पसंद करेंगे।

फ़िलिस्तीन में अरब लीग का जनाज़ा उठाए हुए युवा

 

पिछले 75 बरसों में फ़िलिस्तीन की समस्या, अरब संघ की सबसे बड़ी पहचान थी और इसकी सभी बैठकों में उस पर बल दिया जाता था लेकिन अब फ़िलिस्तीनी काॅज़ ही इस संघ में विवाद और बिखराव का कारण बन गया है। वैसे अरब संघ अब तक अरब देशों के बीच मतभेदों को हल करने में सफल नहीं रहा है बल्कि इसके विपरीत मतभेद, इस संघ के अंदर तक पहुंच चुके हैं। इन सारी बातों ने अरब लीग को एक ऐसे संगठन में बदल दिया है जिसे 75 साल बाद, अरब सोशल मीडियाकर्मियों के शब्दों में दफ़्न कर दिया जाना चाहिए ताकि वह इतिहास का हिस्सा बन जाए। यह संघ, अरब दुनिया के लिए एक प्रभावी तत्व होने के बजाए, ख़ुद ही अरब देशों के बीच पाए जाने वाले मतभेदों से प्रभावित है। फ़िलिस्तीन समस्या के संबंध में इस संगठन पर जो ज़िम्मेदारी थी, उसे भुला कर अरब लीग ने अपने ताबूत में आख़री कील ठोंक ली है। (HN)

 

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