लुक़मान हकीम और उनकी कुछ अनमोल नसीहतें, वह हब्शी ग़ुलाम थे परंतु महान ईश्वर ने किस वजह से उन्हें हिकमत से नवाज़ा?
(last modified Tue, 01 Mar 2022 23:45:06 GMT )
Mar ०२, २०२२ ०५:१५ Asia/Kolkata
  • लुक़मान हकीम और उनकी कुछ अनमोल नसीहतें, वह हब्शी ग़ुलाम थे परंतु महान ईश्वर ने किस वजह से उन्हें हिकमत से नवाज़ा?

शायद की कोई ऐसा हो जिसने लुक़मान हकीम का नाम न सुना हो। सबसे पहले हम बहुत ही संक्षेप में यह बताना चाहते हैं कि लुक़मान हकीम कौन थे।

लुक़मान हकीम के बारे में विभिन्न रिवायतें हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से जो रियावत आई है उसके मुताबिक़ लुक़मान हकीम एक काले इंसान थे। न पैसे वाले थे न खुबसूरत। एक रिवायत के अनुसार वह हब्शी ग़ुलाम थे।

एक बार किसी ने उनसे कहा कि तुम कितने बदशक्ल हो? उसके जवाब में हज़रत लुक़मान ने कहा तुम्हें रचना पर एतराज़ है या रचनाकार पर? हज़रत लुक़मान हकीम के जवाब से यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि किसी को भी यह नहीं कहना चाहिये कि फला व्यक्ति या फलां चीज़ कितनी बदसूरत है। क्योंकि जो भी इस प्रकार एतराज़ करता है वास्तव में वह रचना व पैदा करने वाले पर एतराज़ करता है। यह महान व सर्वसमर्थ ईश्वर है जिसने हर चीज़  व प्राणी की रचना की है और करता है।

ब्रह्मांड के विधाता ने सबकी रचना की है। हर चीज़ की रचना उसी अंदाज़ में की है जिसमें ज़रूरत थी और यह ज़रूरत वही जानता है जिसने रचना की है। अगर इंसान हर चीज़ से पहले यह सोचे कि इसे किसने बनाया है इसका बनाने वाला कौन है तो उसे कोई भी चीज़ बुरी नहीं लगेगी। महान ईश्वर को मानने वाले को कोई भी चीज़ बुरी नहीं दिखाई देगी चाहे वह कुत्ता और सुअर ही क्यों न हो।

एक सवाल यह है कि जब हज़रत लुक़मान हकीम एक हब्शी ग़ुलाम थे तो महान ईश्वर ने उन्हें हिकमत और ज्ञान क्यों प्रदान किया? उसका जवाब बहुत ही आसान है। महान ईश्वर की नज़र में वह इंसान प्रतिष्ठित है जिसके अंदर सदगुण हैं, उसका बातिन पाक हो और वह महान ईश्वर से डरता हो। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ईश्वर ने लुक़मान को जो हिकमत अता की है वह न माल है न जमाल। वह एक अच्छे व सज्जन इंसान थे। खोमश रहते थे, प्रतिष्ठित और सदगुणों से सुसज्जित थे।

वह दिनों को नहीं सोते थे। वह हमेशा अपने आपको कंट्रोल में रखते थे और वह हमेशा सूक्ष्म आत्म निरीक्षण करते थे। वह गुनाहों के भय से कभी हंसे तक नहीं। न ग़ुस्सा करते थे न मज़ाक़। उन्हें ईश्वर ने बहुत औलाद दी थी और सबके सब उनसे पहले ही मर गये। इस पर उन्होंने सब्र किया और ईश्वर की रज़ा पर राज़ी रहे। किसी के लिए भी आंसू नहीं बहाया। जब भी दो लोगों में विवाद व झगड़ा हो जाता था दोनों में सुलह-सफाई करा देते थे और उनके बीच से दुश्मनी और द्वेष की आग बुझा देते थे।

यद्यपि वह काले थे परंतु उनका दिल ईमान से प्रकाशित था वह खुले विचार के इंसान थे। वह गुलाम थे परंतु बहुत समझदार और होशियार थे जिसकी वजह से उन्हें आज़ाद कर दिया गया था। वह अमीन थे, उन्होंने हराम कार्यों से अपनी नज़रों को बंद कर लिया था और ब्रह्मांड के बारे में बहुत सोचते थे और अपने अमल को ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अंजाम देते थे। वह कभी भी किसी का मज़ाक़ नहीं उड़ाते थे।

दोस्तो लेख अधिक लंबा न हो जाये इसलिए उनके परिचय को यहीं विराम देते हैं और अब उनकी कुछ नसीहतों का उल्लेख करते हैं।

हज़रत लुक़मान हकीम विभिन्न अवसरों पर लोगों और अपने बेटों को नसीहत करते- रहते थे। एक दिन उन्होंने अपने बेटे से कहा बेटा आज तुम्हें तीन नसीहतें कर रहा हूं उन पर अमल करोगे तो कामयाब रहोगे। पहली नसीहत यह है कि कोशिश करो कि ज़िन्दगी में पूरी दुनिया का बेहतरीन खाना खाओ। दूसरी नसीहत यह है कि दुनिया के बेहतरीन बिस्तर पर सोने की कोशिश करो और तीसरी नसीहत यह है कि दुनिया के बेहतरीन महल व मकान में रहने की कोशिश करो।

हज़रत लुक़मान हकीम की इन बातों को सुनने के बाद उनके बेटे ने कहा हे पिता हम बहुत ही गरीब व निर्धन हैं किस तरह दुनिया का बेहतरीन खाना खा सकते हैं? इसके जवाब में लुक़मान हकीम ने कहा अगर थोड़ा देर से और थोड़ा कम खाना खाओ तो दुनिया के बेहतरीन खाने का स्वाद देगा और अगर थोड़ा ज़्यादा काम करो और थोड़ा देर से सोओ तो जहां भी सोओगे वहां यह एहसास करोगे कि दुनिया की बेहतरीन जगह सोये हो और अगर लोगों से दोस्ती करो तो उनके दिलों में जगह बना लोगे उस वक्त दुनिया का बेहतरीन महल व मकान तुम्हारा घर होगा।

बेटा हमेशा ईश्वर का शुक्र अदा करो, किसी को भी ईश्वर का शरीक क़रार मत दो। क्योंकि कमज़ोर और मोहताज मख़लूक़ को महान और आवश्यकतामुक्त ईश्वर का शरीक व समतुल्य करार देना बहुत बड़ा अन्याय व अत्याचार है।

बेटा अगर तुम्हारा अमल कण के बराबर भी छोटा हो और वह सरसों व राई के दाने की भांति ऊंचे पर्वत की चट्टान के अंदर हो या आसमानों में हो या ज़मीन व पाताल में हो तब भी ईश्वर की नज़र से ओझल नहीं है और प्रलय के दिन उसका हिसाब- किताब होगा और उसका प्रतिदान व दंड तुम्हें मिलेगा।

बेटा लोगों से अकड़ कर और घमंड से पेश न आओ। दूसरों पर गर्व न करो। ईश्वर घमंडी इंसान को पसंद नहीं करता है। बेटा लोगों के सामने अपने आपको न गिराओ वरना वे तुम्हें ज़लील करने का प्रयास करेंगे, न इतना मीठे बनो कि लोग तुम्हें खा जायें और न इतने कटु व तल्ख़ बन जाओ कि लोग तुम्हें दूर कर दें।

बेटा जब लोगों से बात करो तो नर्म आवाज़ और अंदाज़ में बात करो क्योंकि सीमा से अधिक ऊंची आवाज़ शिष्टाचार से अलग है।

बेटा दुनिया से दर्स लो और उसे छोड़ो नहीं कि तुम्हें लोगों की रोटी खाने पर मजबूर होना पड़ा और तुम फकीर हो जाओ और बहुत ज़्यादा दुनिया हासिल करने के चक्कर में मत पड़ जाओ। उसके फायदे और नुकसान की सोच में मत पड़ो कि उसका नुकसान तुम्हें आखेरत में पहुंचे और तुम हमेशा की कामयाबी से पीछे रह जाओ।

बेटा दुनिया बहुत गहरा समुद्र है और बहुत से विद्वान उसमें डूब गये। तो मेरे बेटा इस समुद्र को पार करने के लिए ईमान को नाव बनाओ, ईश्वर पर भरोसो को बादबान बनाओ, तक़वे को इस यात्रा का सामान बनाओ, बेटा जान लो कि अगर तुम इस ख़तरनाक रास्ते से निकल गये तो ईश्वर की रहमत का पात्र बनोगे और अगर तुम इस रास्ते में विचलित हो गये तो गुनाहों में ग्रस्त हो जाओगे।

बेटा दिन- रात की जेल में ज्ञान हासिल करने के लिए कोई समय निर्धारित करो और इस रास्ते में विद्वानों व ज्ञानियों के साथ हो जाओ और उनके साथ रहने में शिष्टाचार का ध्यान रखो और अर्थहीन बहस करने और हठधर्मी बनने से परहेज़ करो वरना तुम ज्ञान हासिल करने से वंचित रह जाओगे।

बेटा हज़ार दोस्त बनाओ और जान लो कि हज़ार दोस्त कम हैं और किसी से दुश्मनी न करो कि एक दुश्मन भी ज़्यादा है।

बेटा धर्म पेड़ की भांति है। ईश्वर पर ईमान उस पानी की भांति है जो उस पेड़ को उगाता व बड़ा करता है। नमाज़ उस पेड़ की जड़ है, ज़कात उस पेड़ का तना है, ईश्वर की राह में दोस्ती उसकी शाखायें, अच्छा अखलाक़ उसके पत्ते और हराम कार्यों से दूरी उसके फल हैं। जिस तरह पेड़ अच्छे फलों से परिपूर्ण होता है उसी तरह धर्म भी हराम कार्यों से दूरी से परिपूर्ण होता है।

बेटा कोई भी चीज़ ईश्वर की नज़र से पोशीदा नहीं रहती।

दूसरों द्वारा की गयी नसीहतों को मत भूलो।

बुरे लोगों से भलाई और मर्दानगी की अपेक्षा न रखो।

दूसरों पर चीखो- चिल्लाओ नहीं आराम से बात करो।

जितनी ज़रूरत हो उतनी ही बात करो।

दूसरों के हक को अच्छी तरह अदा करो।

अपने राज़ की रक्षा खुद अपने पास करो।

मुश्किल घड़ी में अपने दोस्त की परीक्षा लो

बुरे लोगों की संगत से बचो।

विद्वान व शिक्षित लोगों के साथ उठो- बैठो

छोटी सोच रखने वालों पर भरोसा न करो।

अक़लमंद ईमानदार लोगों से हमेशा सलाह- मशवेरा करो।

जवानी को ग़नीमत समझो।

दोस्त और दुश्मन दोनों से अख़लाक से पेश आओ।

उस्ताद को मां- बाप की तरह दोस्त रखो।

ख़र्च अपनी आमदनी से कम करो।

कम खाने, कम सोने और कम बोलने की आदत डालो।

अपने से बड़ों से मज़ाक़ न करो।

अपने से बड़ों से ज़्यादा लंबी बात न करो।

एसा काम न करो कि जाहिल व अज्ञानी भी तुमसे बदतमीज़ी करने लगें।

ज़रूरतमंदों को अपने माल से वंचित न करो।

पुरानी दुश्मनी को ज़िन्दा मत करो।

दूसरों के नेक काम को अपना न बताओ।

अपने माल को दोस्त व दुश्मन दोनों को न बताओ।

खड़े हुए लोगों के मध्य न बैठो।  

दूसरों की मौजूदगी में दांत साफ न करो।

सीरियस बात को मज़ाक़ के साथ न कहो।

दूसरों की मौजूदगी में नाक में उंगली मत करो।

किसी को शर्मिन्दा व ज़लील न करो।

बीवी- बच्चों की अनुचित बातों को न मानो। अल्लाह के सिवा किसी को भी अपना मददगार न समझो।

उम्र और रोज़ी का हिसाब- किताब है। तो न डरो न लालच करो।

अगर स्वर्ग चाहते हो तो अत्याचार, भ्रष्टाचार और उददंडता से परहेज़ करो।

दुनिया की मोहब्बत हर बुराई की जड़ है।

दूसरों की दुनिया को भूल जाओ।

दोस्तो अच्छी बातें कभी भी पुरानी नहीं होती हैं और उन्हें किसी ज़मान व मकान से सीमित नहीं किया जा सकता। कितने खुशनसीब वे लोग हैं जो अच्छी बातों पर अमल करते और दूसरों को अच्छी बातों व कार्यों के लिए नसीहत करते और बूरे कार्यों से रोकते हैं। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से दुआ से है कि हम सब को अच्छी बातों पर अमल करने और बूरी बातों व कार्यों से दूर रहने की कृपा करे। आमीन

नोटः ये व्यक्तिगत विचार हैं। पार्सटूडे का इनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है। MM

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