मैक्रां को अब हो रहा है अपने किये पर पछतावा
फ्रांस के राष्ट्रपति के त्यागपत्र की मांग को लेकर पेरिस में व्यापक प्रदर्शन किये गए।
एमैनुएल मैक्रां के त्यागपत्र की मांग करते हुए फ्रांस की राजधानी पेरिस में हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन किये। इन विरोध प्रदर्शनों की काॅल, फ्रांस की दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी पार्टियों ने दी थी।
प्रदर्शनकारी, फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के त्यागपत्र की मांग के साथ ही नेटो से फ्रांस के निकलने की भी मांग कर रहे हैं। एसा लग रहा है कि फ़्रासं में दिन-प्रतिदिन ख़राब होती आर्थिक स्थति के कारण वहां पर इस प्रकार के प्रदर्शन किये जा रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि फ्रांस सहित कई यूरोपीय देशों में ख़राब होती अर्थव्यवस्था का कारण रूस के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंध हैं। प्रतिबंध लगाने वाले देशों में फ्रांस भी शामिल है। प्रतिबंधों की प्रतिक्रिया में अब जबकि रूस ने यूरोपीय देशों के लिए तेल और गैस के निर्यात को बंद या कम कर दिया है तो वहां पर आर्थिक संकट पैदा होने लगा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकतर फ्रांसीसी इस प्रकार के प्रतिबंधों के विरोधी हैं।
अमरीका के नेतृत्व में यूरोपीय देशों ने यूक्रेन युद्ध के बहाने रूस के विरुद्ध यह सोचकर प्रतिबंध लगाए थे कि इससे उसकी अर्थव्यवस्था ख़राब हो जाएगी और वह कमज़ोर हो जाएगी। हालांकि अगर ग़ौर से देखा जाए तो इसका परिणाम उल्टा निकला। वर्तमान समय में वे यूरोपीय देश बहुत बुरी तरह से परेशान हैं जिन्होंने अमरीका के उकसावे में आकर रूस के विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लगाए थे। अब फ्रांस को इस बात की चिंता सता रही है कि जाड़े के मौसम में वह अपनी ज़रूरत की ऊर्जा का प्रबंध कैसे करेगा?
यूरोपीय देशों में तेल और गैस के मूल्यों में काफी वृद्धि हो गई है। रूसी अधिकारियों का मानना है कि यूरोप में ऊर्जा संकट के कारण आने वाले जाड़ों में प्रत्येक हज़ार घनमीटर गैस का मूल्य बढ़कर पांच हज़ार यूरो हो जाएगा। इस बात को यूरोपीय देशों के लिए आर्थिक भूकंप के रूप में देखा जा रहा है जिसमें फ्रांस भी शामिल है। हालत अब यह हो गई है कि बहुत से यूरोपीय नागरिकों के पास गैस और बिजली का बिल अदा करने के लिए पैसा नहीं है। इन्ही बातों के दृष्टिगत फ्रांसीसी लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
इसी बीच फ्रांस के राष्ट्रपति ने अल्जीरिया की यात्रा करके वहां के नेताओं से पेरिस के लिए गैस की सप्लाई को बढ़ाने की मांग की है। हालांकि अल्जीरिया के अधिकारियों ने इसपर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया तो नहीं दिखाई बल्कि फ़्रांस की इस मांग को अपनी कई शर्तों से जोड़ दिया है।
विशेष बात यह है कि फ़्रांस ने आरंभ में रूस के विरुद्ध कड़ी नीति अपनाई लेकिन रूस की ऊर्जा पर यूरोप की 40 प्रतिशत निरभर्ता के कारण उनका रवैया काफी बदल गया है। टीकाकारों का कहना है कि रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद फिलहाल यूरोप में जो ऊर्जा का संकट पैदा हो गया है उसने वहां पर परिस्थतियों को बहुत ही जटिल बना दिया है। एसे में मैक्रां त्यागपत्र की मांग को लेकर किये जाने वाले प्रदर्शन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति के लिए नई समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
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