रूस और चीन की बढ़ती दोस्ती से अमेरिका और यूरोपीय देशों की बढ़ी बेचैनी, मास्को और बीजिंग के बीच सैन्य अभ्यास से दुनिया पश्चिम का चढ़ा पारा
पश्चिम देशों के दबाव के मध्य रूस और चीन के बीच गहराते संबंधों के बीच इस सप्ताह कई रूसी युद्धपोत बीजिंग की नौसेना के साथ नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लेंगे।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि मास्को और बीजिंग के बीच 'नौसेना सहयोग को मज़बूत करने' के उद्देश्य से अभ्यास 21 से 27 दिसंबर के बीच पूर्वी चीन सागर में होगा। चीन का कहना है कि बुधवार से शुरू हो रहे चीनी-रूसी नौसैनिक अभ्यास का उद्देश्य उन पक्षों के बीच सहयोग को और गहरा करना है, जिनके अनधिकृत पश्चिमी विरोधी गठबंधन ने यूक्रेन पर मास्को के आक्रमण के बाद से मज़बूती हासिल की है।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वारयाग मिसाइल क्रूज़र, मार्शल शापोशनिकोव विध्वंसक और रूस के प्रशांत बेड़े के दो कार्वेट युद्धाभ्यास में हिस्सा लेंगे। मंत्रालय ने बताया कि चीनी नौसेना ने अभ्यास के लिए कई सतही युद्धपोतों और एक पनडुब्बी को तैनात करने की योजना बनाई है।
सितंबर में, चीन ने रूस के साथ व्यापक संयुक्त अभ्यास में भाग लेने के लिए 300 से अधिक सैन्य वाहनों, 21 लड़ाकू विमानों और तीन युद्धपोतों के साथ 2,000 से अधिक सैनिकों को भेजा था। ताइवान को लेकर अमेरिका के साथ तनाव के बीच रूस ने बदले में चीन का खुलकर समर्थन किया है।
चीन ने पिछले हफ्ते पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में जापान के पास जलडमरूमध्य के माध्यम से नौसेना के जहाज़ों के एक स्क्वाड्रन को भी भेजा था क्योंकि बीजिंग ने टोक्यो की एक नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को अपनाते हुए ख़ुद को और अधिक आक्रामक स्थिति में डाल दिया था।
कुल मिलाकर जानकारों का मानना है कि चीन और रूस दुनिया की ऐसे महा शक्तिशाली देश हैं कि जिनकों नज़रअंदाज़ करना अमेरिका और यूरोपीय देशों के बस की बात नहीं है। जैसे-जैसे अमेरिका और पश्चिमी देश मास्को और बीजिंग पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं वैसे-वैसे दुनिया एक नए युद्ध और एक नए ख़तरे की ओर बढ़ती जा रही है। (RZ)
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