Jan १३, २०२४ १६:४५ Asia/Kolkata

अलअहवाज़िया नामक आतंकी गुट के कुछ सदस्यों को डेनमार्क में कई साल की सज़ा सुनाई गई है।

पूर्वी न्यायालय के नाम से मश्हूर डेनमार्क की अपील कोर्ट ने 12 जनवरी 2024 को अलअहवाज़िया नामक प्रथक्तावादी गुट के तीन सदस्यों को जेल की सज़ा सुनाई है।  इन लोगों पर आतंकी गतिविधियों के लिए लगभग 22 लाख डालर इकटठा करने का आरोप है।  इस न्यायालय ने मंगलवार को इन तीनो लोगों पर आतंकवाद को फैलाने और सऊदी अरब के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया था। 

कोपेनहेगन में स्थित इस न्यायालय का कहना है कि अलअहवाज़िया नामक प्रथक्तावादी गुट के यह सदस्य, डेनमार्क के लोगों और वहां की संस्थाओं की जानकारियां एकत्रित करने में व्यस्त थे और साथ ही वे ईरान की सैन्य जानकारियों को भी एकत्रित करके उनको सऊदी अरब की गुप्तचर सेवा को पहुंचा रहे थे।  डेनमार्क के क़ानून के अनुसार इन लोगों को अधिकतम 12 वर्षों की सज़ा हो सकती है।  न्यायाल ने आदेश दिया है कि इनको देश से निष्कासित कर दिया जाएगा।  हालांकि वे अपनी सज़ा, डेजमार्क की जेल में ही काटेंगे।  अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अलअहवाज़िया नामक प्रथक्तावादी गुट के इन सदस्यों को कब डेनमार्क से निकाला जाएगा? 

डेनमार्क की गुप्तचर सेवा के प्रमुख फिंच बोर्च एंडरसन के अनुसार यह लोग सन 2012 से सऊदी अरब के लिए जासूसी कर रहे थे।  इन लोगों को फरवरी 2022 में डेनमार्क की राजधानी के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र में स्थित रिंगस्टेड काउंटी से गिरफ़्तार किया गया था।  ईरान के अहवाज़ नगर में 22 सितंबर 2018 को परेड के दौरान किये जाने वाली आतंकवादी हमलों में भी इस गुट के लोगों की भूमिका की पुष्टि हुई है।  इस आतंकी हमले में 25 लोग शहीद हुए थे जबकि लगभग 70 अन्य घायल हो गए थे।  विशेष बात यह है कि अहवाज़ में परेड पर आतंकी हमला करने के बाद इस आतंकी गुट ने सऊदी अरब से संबन्धित अलरबिया टीवी चैनेल पर खुले आम अहवाज़ के आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी ली।

अलअहवाज़िया नामक प्रथक्तावादी गुट पिछले कई वर्षों से ईरान के ख़ुज़िस्तान प्रांत को अशांत बनाने के लिए विभिन्न आतंकवादी कार्यवाहियां कर चुका है।  यह गुट इस प्रकार की कार्यवाहियां करके ख़ुज़िस्तान प्रांत को ईरान से अलग करने के प्रयास में लगा हुआ है।  यह वही काम है जिसको करने के लिए इराक़ की बासी सरकार ने ईरान पर हमला किया था जिसके कारण एक लंबा युद्ध चला किंतु इसमें सद्दाम को विफलता हाथ लगी थी।  यूरोपीय देशों डेनमार्क, स्वीडन और हालैण्ड में रहने वाले इस प्रथक्तावादी गुट के सदस्यों को आरंभ में गिरफ़्तार करने की कोई कोशिश नहीं की।  यहां तक कि उन्होंने अहवाज़ की आतंकी घटना की निंदा तक नहीं की जिसपर इस्लामी गणतंत्र ईरान ने कड़ा विरोध किया। 

अब जब इन्ही लोगों को सऊदी अरब के लिए यूरोपीय देशों की जासूसी करते हुए पाया गया तो उनको पकड़कर उनके विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की गई।  इस पूरी कहानी से यह बात समझ में आती है कि आतंकवाद को लेकर पश्चिम ने दोमुखी नीति अपना रखी है। 

जबतक अलहवाज़िया नामक आतंकी गुट, इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध आतंकी कार्यवाहियां करता रहा उस समय तक तो पश्चिमी देशों ने इस ओर से अपनी आंखें मूंदे रखीं और इस प्रकार की कार्यवाही को अंजाम देने वालों को अपने देश में हर प्रकार की गतिविधियों के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया लेकिन जैसे ही अलअज़ाज़िया के सदस्यों की  गतिविधियां, उनके राष्ट्रीय हितों के विपरीत होने लगीं उसी समय उनको गिफ़्तार भी कर लिया गया और उनके विरुद्ध न्यायिक कार्यवाही भी अंजाम दी गई।

इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण फ्रांस का भी है जहां पर मुनाफ़ेंक़ीन नामक आंतकी गुट के सदस्य शांतिपूर्ण ढंग से जीवन गुज़ार रहे हैं जबकि उनके हाथ ईरान और इराक़ जेसे देशों के हज़ारों लोगों के ख़ून से सने हुए हैं।  इस प्रकार के लोग फ़्रांस में बिना किसी रोकटोक के गोपनीय और सार्वजनिक हर प्रकार की गतिविधियां अंजाम दे रहे हैं।

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